मुंबई, 28 दिसंबर : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) महंगाई को काबू में लाने, असुरक्षित माने वाले कर्ज से जुड़े जोखिम पर अंकुश लगाने, नया ऋण लेकर पुराने कर्ज चुकाने (एवरग्रिनिंग) पर लगाम लगाने तथा बैंकों में ग्राहक सेवा और बेहतर बनाने को लेकर उपाय जैसे कदमों को लेकर पूरे वर्ष सुर्खियो में रहा. वहीं अगले साल सभी की नजर नीतिगत दर रेपो में कटौती पर होगी. साथ ही आरबीआई केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (सीबीडीसी) को जोर-शोर से बढ़ावा दे सकता है. आरबीआई ने मुद्रास्फीति की चुनौतियों का हवाला देते हुए लगातार पांच मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दर रेपो को यथावत रखा है. हालांकि, महंगाई कुछ कम हुई है, लेकिन केंद्रीय बैंक ने साफ कहा कि उसका लक्ष्य खुदरा मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत पर लाना है और खाद्य महंगाई को लेकर जोखिम बना हुआ है. नए साल की ओर बढ़ते कदम के साथ सभी की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि आरबीआई नीतिगत दर रेपो में कब कटौती करेगा. यह बात इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के एक सदस्य ने अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के दर में कमी करने के संकेत के बाद इस तरह के कदम की जरूरत बतायी है.
कुछ विश्लेषकों का यह भी कहना है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति (सीपीआई) 2024 के मध्य में चार प्रतिशत से नीचे आ सकती है. उसके बाद नीतिगत दर में कटौती की संभावना है. केंद्रीय बैंक को खुदरा मुद्रास्फीति दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत पर रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है. आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास मुद्रास्फीति को दीर्घकालीन और भरोसेमंद आधार पर चार प्रतिशत पर लाने की बात कही है. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति अक्टूबर में चार महीने के निचले स्तर 4.87 प्रतिशत पर आ गई. हालांकि, नवंबर में यह बढ़कर 5.55 प्रतिशत हो गई. दास ने दिसंबर की मौद्रिक नीति समीक्षा की घोषणा करने के बाद कहा कि जबतक मुद्रास्फीति पर लगाम नहीं लगती और यह दीर्घकालीन स्तर पर चार प्रतिशत या उससे नीचे नहीं आती, तबतक नीतिगत दर में कमी की बात करने का कोई मतलब नहीं है. उन्होंने दिसंबर में कहा था कि भविष्य ‘बहुत अस्थिर’ है, ऐसे में कोई भी झटका अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है. दास ने कहा था कि पूरे साल नीतिगत दर के उदार स्वरूप को वापस लेने के रुख पर बना रहेगा. इसपर तभी दोबारा विचार किया जाएगा जब मुद्रास्फीति भरोसेमंद रूप से लक्ष्य के दायरे में होगी. यह भी पढ़ें : COVID-19: कर्नाटक हाई कोर्ट का कोविड के मामले बढ़ने के कारण नए साल के जश्न पर रोक से इनकार
इस साल टमाटर और प्याज की आसमान छूती कीमतों ने खाद्य महंगाई के मोर्चे पर चुनौतियों को लेकर रिजर्व बैंक की चेतावनी को सही साबित किया है. केंद्रीय बैंक आम चुनाव के बाद अपनी नीतिगत दर और नकदी रणनीतियों पर निर्णय लेने के लिए नई सरकार के कामकाज पर नजर रखेगा. दास ने वित्तीय प्रणाली में जोखिमों को भी चिह्नित किया है. और इसे दूर करने के लिए मई, 2023 से बैंक के निदेशक मंडलों और उनके प्रबंधन के साथ बैठकें शुरू कीं. उन्होंने कहा था कि केंद्रीय बैंक के समय-समय पर निरीक्षण से कॉरपोरेट संचालन, मुनाफा बढ़ाने के लिए स्मार्ट अकाउंटिंग गतिविधियों और पुराने कर्ज को लौटाने के लिए नये कर्ज (लोन एवरग्रिनिंग) के स्तर पर खामियों का पता चला. केंद्रीय बैंक ने इसी महीने अधिसूचना जारी कर वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ) के जरिये पुराने ऋण को लौटाने के लिये नया कर्ज लेने की व्यवस्था पर लगाम लगाने को लेकर कदम उठाया है. इसके तहत बैंक और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) उस वैकल्पिक निवेश कोष की किसी भी योजना में निवेश नहीं कर सकतीं, जिसने वित्तीय संस्थान से पिछले 12 महीनों में कर्ज लेने वालों की कंपनी में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निवेश कर रखा है.
इसके अलावा, शीर्ष बैंक ने असुरक्षित माने जाने वाले कर्ज के मोर्चे पर संभावित जोखिम से निपटने को लेकर भी कदम उठाया. इसके तहत बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के लिये असुरक्षित माने जाने वाले व्यक्तिगत कर्ज, क्रेडिट कार्ड जैसे कर्ज से जुड़े नियम को सख्त करते हुए जोखिम भार में 25 प्रतिशत की वृद्धि की गई. इसके साथ ही, बड़ी कंपनियों के अपनी कम रेटिंग वाली संबद्ध इकाइयों के लिए सस्ते ऋण जुटाने के लिए उठाये जाने पर कदमों पर लगाम लगाने की बात कही है. इसके अलावा, आरबीआई ने बैंकों में ग्राहक सेवा बेहतर बनाने पर जोर दिया है और इसके लिए बैंकों से हर जरूरी कदम उठाने को कहा. केंद्रीय बैंक ने यह सुनिश्चित किया कि एचडीएफसी बैंक और एचडीएफसी लि. का विलय सुचारू रूप से हो. नये साल में आरबीआई का केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा को बढ़ावा देने पर भी जोर होगा.