नयी दिल्ली, 18 दिसंबर संसद की एक स्थायी समिति ने 2022-23 के दौरान विशेष रूप से संवेदनशील जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) के विकास की योजना के तहत प्रमुख राज्यों को वितरित धन की कमी पर चिंता व्यक्त की है।
झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, केरल, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों को कोई आवंटन नहीं किया गया, जिनमें बड़ी जनजातीय आबादी है। इसके मद्देनजर समिति ने सवाल उठाया कि संसाधनों के अभाव में योजनाबद्ध विकास कार्य कैसे किए गए।
जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा अनुदान की मांग के लिए सामाजिक न्याय और अधिकारिता पर संसदीय समिति की रिपोर्ट में आवंटित धन के कम उपयोग, राज्यों द्वारा उपयोग प्रमाण पत्र जमा करने में देरी तथा प्रक्रियात्मक अक्षमताओं का हवाला देते हुए पिछले कार्यक्रमों के नुकसान से बचने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
रिपोर्ट बुधवार को संसद में पेश की गई।
समिति ने कहा, ‘‘ 2020-21 से 2022-23 की अवधि के दौरान विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) के विकास के तहत किए गए बजटीय आवंटन में संशोधन के चरण में काफी कमी की गई थी। इसके अलावा, समिति ने यह भी पाया कि 2022-23 के दौरान अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, बिहार, झारखंड, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड आदि को कोई धनराशि जारी नहीं की गई।’’
समिति ने आगे कहा कि वह इन राज्यों को धनराशि जारी न करने के कारणों को ‘समझने में असमर्थ’ है, खासकर तब जब इन राज्यों में बड़ी संख्या में जनजातीय आबादी निवास करती है। समिति के अनुसार वह यह समझने में भी असमर्थ है कि धन के अभाव में पीवीटीजी योजना के विकास के तहत प्रस्तावित कार्य कैसे किया गया।
उसने समय पर वितरण और धन के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए एकल नोडल खाता (एसएनए) प्रणाली जैसे तंत्र को मजबूत करने की सिफारिश की।
लोकसभा में पेश की गई रिपोर्ट में भूमि अधिग्रहण और परियोजना प्रस्तावों में देरी सहित राज्य-स्तरीय बाधाओं को महत्वपूर्ण बाधाओं के रूप में इंगित किया गया है।
समिति ने कार्यान्वयन एजेंसियों के लिए मजबूत क्षमता निर्माण के साथ-साथ राज्यों को बेहतर समन्वय और तकनीकी सहायता देने का आह्वान किया।
प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महा अभियान की सफलता सुनिश्चित करने के लिए, समिति ने जनजातीय मामलों के मंत्रालय से स्वतंत्र ऑडिट सहित कठोर निगरानी प्रणालियों को लागू करने और नियोजन और कार्यान्वयन चरणों में आदिवासी समुदायों और जमीनी स्तर के संगठनों को सक्रिय रूप से शामिल करने का आग्रह किया।
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