देश की खबरें | एनएमसी से निष्पक्ष तरीके से काम करने की अपेक्षा की जाती है: उच्चतम न्यायालय

नयी दिल्ली, 11 सितंबर उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) सरकार का एक अंग है और उससे निष्पक्ष तथा तर्कसंगत तरीके से काम करने की अपेक्षा की जाती है। इसके साथ ही, शीर्ष अदालत ने केरल उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज कर दी और याचिकाकर्ताओं पर 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।

न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ एक मेडिकल कॉलेज को शिक्षण वर्ष 2023-24 के लिए सीट की संख्या 150 से बढ़ाकर 250 करने की दी गई मंजूरी वापस लेने संबंधी मामले में एनएमसी और अन्य की ओर से दायर याचिकाओं पर विचार कर रही थी।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि किसी पक्ष को मंजूरी के लिए एक अदालत से दूसरी अदालत का चक्कर लगवाना, खासतौर पर जब संस्थान 18 वर्षों से संचालित होता रहा है, केवल उस संस्थान को परेशान करने का प्रयास है।

पीठ ने नौ सितंबर को पारित अपने आदेश में कहा, ‘‘प्रथम दृष्टया हमें लगता है कि एनएमसी का रवैया आदर्श याचिकाकर्ता का नहीं है। एनएमसी सरकार का एक अंग है और उससे निष्पक्ष और उचित तरीके से कार्य करने की अपेक्षा की जाती है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए हमारा मानना ​​है कि वर्तमान विशेष अनुमति याचिकाएं कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग हैं और इसलिए इन्हें खारिज किया जाता है तथा 10,00,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया जाता है, जिसका भुगतान इस आदेश की तिथि से चार सप्ताह के भीतर किया जाना चाहिए।’’

पीठ ने कहा कि एनएमसी एवं अन्य ने उच्च न्यायालय के 13 अगस्त के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें मेडिकल कॉलेज को लिखित वचन देने (अंडरटेकिंग) का निर्देश दिया गया था। अदालत ने आयोग को यह भी निर्देश दिया था कि अंडरटेकिंग प्राप्त करने के बाद आयोग संबंधित संस्थान को मंजूरी प्रदान करेगा।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि रिकॉर्ड पर उपलब्ध दस्तावेजों को देखने से पता चला है कि ‘मेडिकल असेसमेंट एंड रेटिंग बोर्ड’ (एमएआरबी) की ओर से 27 फरवरी 2023 को एक पत्र जारी करके मेडिकल कॉलेज को शैक्षणिक वर्ष 2023-24 के लिए सीट की संख्या 150 से बढ़ाकर 250 करने की प्रारंभिक मंजूरी दी गई थी।

पीठ ने कहा, ‘‘बाद में एमएआरबी की ओर से पांच अप्रैल 2023 को जारी एक पत्र में इसे वापस ले लिया गया।’’

पीठ ने कहा कि मामला न्यायालय में विचाराधीन है, इसलिए प्रस्ताव को अस्वीकृत नहीं किया जा सकता।

पीठ ने कहा कि यदि एनएमसी को कोई संदेह था तो वह संबंधित अदालत से संपर्क कर स्पष्टीकरण मांग सकता था।

वहीं एनएमसी के वकील ने पीठ को बताया कि अनुमति की प्रक्रिया को लेकर वार्षिक आधार पर विचार किया जाना है और पहले की अस्वीकृति शैक्षणिक वर्ष 2023-2024 के लिए थी।

पीठ ने कहा कि पांच लाख रुपये का जुर्माना ‘सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन’ में तथा शेष राशि ‘सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन एडवोकेट्स वेलफेयर फंड’ में जमा किया जाए।

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