मौसमी आपदाओं के कारण भारत के आर्थिक नुकसान में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. 2023 में एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.पिछले कुछ सालों में भारत में प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले आर्थिक नुकसान में तेजी से वृद्धि हुई है. 2013-2022 के दशक में हर साल औसतन 8 अरब अमेरिकी डॉलर (लगभग 66,000 करोड़ रुपये) का नुकसान हुआ. यह 2003-2012 के दशक की तुलना में 125 फीसदी अधिक है, जब यह आंकड़ा 3.8 अरब डॉलर था. 2024 के नुकसान की गणना अभी बाकी है, जो इतिहास में भारत का सबसे गर्म साल रहा है.
यह वृद्धि बताती है कि या तो प्राकृतिक आपदाएं अधिक बार आ रही हैं, अधिक गंभीर हो गई हैं, या दोनों ही बातें हो रही हैं. इसके अलावा, यह बढ़ोतरी उन क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों और संपत्तियों की बढ़ती संख्या और बेहतर रिकॉर्डिंग व मूल्यांकन से भी जुड़ी हो सकती है.
50 साल का डेटा
1970 से 2021 तक का डेटा दिखाता है कि समय के साथ प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले आर्थिक नुकसान में लगातार बढ़ोतरी हुई है. कुछ वर्षों में नुकसान की मात्रा में बड़ी छलांग देखी गई, जो विनाशकारी घटनाओं, जैसे कि बड़े चक्रवातों, बाढ़, या सूखे के कारण हुई.
2023 में, भारत को प्राकृतिक आपदाओं से 12 अरब अमेरिकी डॉलर (एक लाख करोड़ रुपये से अधिक) का नुकसान हुआ. यह 2013-2022 के औसत 8 अरब डॉलर से काफी ज्यादा था. स्विस रे की रिपोर्ट के अनुसार, ये बड़े नुकसान उन क्षेत्रों में हुए जहां संपत्तियों और आर्थिक गतिविधियों की संख्या ज्यादा है.
जून 2023 में, चक्रवात बिपरजॉय ने गुजरात के कच्छ जिले में भारी नुकसान पहुंचाया. इसके कारण सौराष्ट्र और कच्छ के सभी बंदरगाह, जैसे कांडला और मुंदरा बंदरगाह, बंद हो गए. तेज हवाओं, भारी बारिश और समुद्री तूफान ने राज्य में भारी तबाही मचाई. इस चक्रवात ने महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे पड़ोसी राज्यों को भी प्रभावित किया.
दिसंबर 2023 में, चक्रवात मिकाउंग के चलते चेन्नई में भारी बारिश और बाढ़ के कारण बड़े नुकसान हुए. इसके अलावा, जुलाई 2023 में उत्तरी भारत और सिक्किम में आई बाढ़ ने हिमाचल प्रदेश और दिल्ली को बुरी तरह प्रभावित किया.
बाढ़, सबसे बड़ा खतरा
स्विस रे के विश्लेषण में पाया गया कि भारत में पिछले दो दशकों में प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले कुल वार्षिक नुकसान का लगभग 63 फीसदी हिस्सा बाढ़ से जुड़ा हुआ है. इसका कारण भारत की जलवायु और भौगोलिक स्थिति है.
भारत में गर्मी का मॉनसून (जून से सितंबर) और पूर्वोत्तर मॉनसून (अक्टूबर से दिसंबर) भारी बारिश लाते हैं, जिससे गंभीर बाढ़ की स्थिति पैदा होती है. कुछ बड़ी घटनाओं में 2005 में मुंबई, 2013 में उत्तराखंड, 2014 में जम्मू और कश्मीर, 2015 में चेन्नई और 2018 में केरल की बाढ़ शामिल हैं. 2023 में उत्तर भारत की बाढ़ ने भी एक अरब डॉलर से अधिक का नुकसान पहुंचाया.
रिपोर्ट कहती है कि नुकसान में वृद्धि के कई कारण हैं. इनमें जलवायु परिवर्तन प्रमुख है. बढ़ते तापमान से चक्रवात, बाढ़ और सूखे जैसी घटनाओं की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ी है. इसके अलावा संवेदनशील क्षेत्रों में बढ़ता निर्माण और आबादी आपदा के समय अधिक नुकसान का कारण बनते हैं.
कृषि क्षेत्र को सबसे ज्यादा नुकसान
भारत की प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों का विश्लेषण करें तो कुछ मुख्य बातें सामने आती हैं. कृषि, जिसमें भारत की बड़ी आबादी काम करती है, अक्सर बाढ़, सूखे और चक्रवातों का सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतती है. फसलें खराब हो जाती हैं, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है.
सड़कों, पुलों और सार्वजनिक उपयोगिताओं जैसे बुनियादी ढांचे को भी कुदरती आपदाओं से भारी नुकसान होता है. इससे ना केवल आर्थिक गतिविधियां बाधित होती हैं बल्कि यह लोगों की जिंदगी को भी प्रभावित करता है.
कुदरती आपदाओं के कारण ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में घरों का बड़े पैमाने पर नुकसान होता है. इससे हजारों लोग बेघर हो जाते हैं और फिर से निर्माण में भारी खर्च आता है.
प्राकृतिक आपदाओं से भारत के कुछ क्षेत्र अधिक प्रभावित हैं. तटीय राज्य, जैसे ओडिशा, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल अक्सर चक्रवात और समुद्री तूफानों का सामना करते हैं. बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे गंगा के मैदान हर साल बाढ़ से प्रभावित होते हैं. राजस्थान और गुजरात बार-बार सूखे का सामना करते हैं. हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे हिमालयी क्षेत्र भूकंप और भूस्खलन के लिए संवेदनशील हैं. साथ ही, मुंबई, चेन्नई और दिल्ली जैसे बड़े शहर बाढ़ और जलभराव के लिए अधिक संवेदनशील हैं.
इतिहास से सबक
2005 की मुंबई बाढ़ और 2015 की चेन्नई बाढ़ भारत की सबसे महंगी प्राकृतिक आपदाओं में से हैं. इनसे क्रमशः 5.3 अरब डॉलर और 6.6 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. रिपोर्ट कहती है कि इन घटनाओं से स्पष्ट है कि बेहतर योजना और आपदा प्रबंधन की सख्त जरूरत है.
जलवायु परिवर्तन के चलते भविष्य में प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता और बढ़ने की संभावना है. स्विस रे के मुताबिक भारत को आपदा प्रबंधन और तैयारी के लिए बेहतर कदम उठाने होंगे और ऐसा इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना होगा जो आपदाओं का सामना कर सके.
स्विस रे ने कहा कि भारत में कई लोग और व्यवसाय बीमा के दायरे में नहीं आते. प्राकृतिक आपदाओं से जुड़ी बीमा सुरक्षा की कमी 90 फीसदी से अधिक है. इसका मतलब है कि आपदा के बाद बहुत से लोग भारी वित्तीय संकट में आ जाते हैं.
इन चुनौतियों का सामना करने के लिए स्विस रे की रिपोर्ट में कुछ उपाय भी सुझाए गए हैं. जैसे कि डेटा और प्रभावित केंद्रों की पहचान कर संवेदनशील क्षेत्रों का विस्तृत नक्शा बनाना होगा. आधुनिक तकनीकों और डेटा का इस्तेमाल कर नुकसान का सटीक आकलन किया जाए. ऐसी बीमा योजनाएं तैयार की जाएं, जो अधिक लोगों तक पहुंच सकें और प्राकृतिक आपदाओं के बाद वित्तीय सुरक्षा प्रदान कर सकें.