नयी दिल्ली, 22 नवंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने लोगों की जरूरतों के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी के बुनियादी ढांचे को उन्नत करने में विफल रहने के लिए अधिकारियों को शुक्रवार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि नगर प्रशासन ध्वस्त हो गया है।
मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पी.एस. अरोड़ा की पीठ ने टिप्पणी की कि राजनीतिक नेता शहर के विकास के लिए न तो धन जुटा रहे हैं और न ही खर्च कर रहे हैं, बल्कि वे केवल जनता को मुफ्त सुविधाएं उपलब्ध कराने पर पैसा खर्च कर रहे हैं, जिससे कोई बुनियादी ढांचा नहीं बनेगा।
पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी किसी न किसी संकट से गुजर रही है तथा वर्ष भर शहर को सूखे, बाढ़ और गंभीर प्रदूषण का सामना करना पड़ा है।
अदालत ने कहा, ‘‘इस साल हम किस दौर से गुजरे हैं, इस पर गौर करें। पहले हमारे यहां सूखे की स्थिति थी और लोग यह कहते हुए अनशन कर रहे थे कि पानी नहीं है, फिर बाढ़ आई और लोगों की जान चली गई। फिर प्रदूषण और एक्यूआई (वायु गुणवत्ता सूचकांक) के स्तर को देखिए।’’
पीठ ने आगे कहा, ‘‘देखिए कि शहर किस दौर से गुजर रहा है। यह एक संकट से दूसरे संकट की ओर बढ़ रहा और इसके लिए बहुत गंभीर प्रबंधन की आवश्यकता है।’’
न्यायालय ने कहा कि राजनीतिक प्रतिष्ठान प्रभावित पक्षों की बात नहीं सुन रहा है, बल्कि केवल समस्या पैदा करने वालों की बात सुन रहा है।
पीठ ने दुख जताते हुए कहा, ‘‘नागरिकों के रूप में हमें यह तय करना होगा कि शहर 3.3 करोड़ लोगों को समायोजित कर सकता है या नहीं। हमारे पास 3.3 करोड़ लोगों के लिए बुनियादी ढांचा है या नहीं? यह मूल मुद्दा है जिस पर निर्णय लेने की आवश्यकता है।’’
अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि राजनीतिक नेता न तो पैसा जुटा रहे हैं और न ही उसे खर्च कर रहे हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘वे इसे केवल मुफ्त की सुविधाएं (फ्रीबीज) देने पर खर्च कर रहे हैं। मुफ्त की सुविधाएं आपके बुनियादी ढांचे को नहीं बनाएंगी, वे केवल यह सुनिश्चित करेंगी कि आप जहां हैं, वहीं रहें। वर्तमान में, राजनीतिक वर्ग केवल नारे बेच रहा है और हम इसे खरीद रहे हैं।’’
अदालत जंगपुरा स्थित जे जे क्लस्टर मद्रासी कैंप के निवासियों द्वारा बेदखली नोटिस के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है।
मामले की सुनवाई 29 नवंबर को होगी।
अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि नगर प्रशासन अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहा है और सारा बोझ न्यायपालिका पर आ गया है।
पीठ ने कहा, ‘‘हमारे पास बहुत ही अक्षम प्रणाली है और सभी संगठन अलग-अलग काम कर रहे हैं। सारा बोझ न्यायपालिका पर आ रहा है। हमें नालियों और अनधिकृत निर्माणों की देखरेख नहीं करनी चाहिए, लेकिन आधे दिन हम यही काम कर रहे हैं, जो हमारा काम नहीं है, जबकि यह काम (नगर) प्रशासन को करना है।’’
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