गूगल को सर्च मार्केट पर गैरकानूनी ढंग से एकाधिकार स्थापित करने का दोषी पाया गया. इसके बाद, अमेरिका के एंटी-ट्रस्ट अधिकारियों ने प्रस्ताव रखा है कि कंपनी को उसका क्रोम ब्राउजर बेचने पर बाध्य किया जाना चाहिए.इस साल अगस्त में ऑनलाइन जगत की बड़ी कंपनियों में शुमार अल्फाबेट को बड़ा झटका लगा. कंपनी अपना अब तक का सबसे बड़ा एंटी-ट्रस्ट मुकदमा हार गई. एक अमेरिकी जज ने पाया कि अल्फाबेट की सहायक कंपनी गूगल ने गैरकानूनी ढंग से सर्च मार्केट पर एकाधिकार स्थापित किया.
अमेरिका की संघीय अदालत के जज अमित मेहता ने फैसला सुनाया कि गूगल ने अपने इंटरनेट सर्च इंजन को स्मार्टफोन और वेब ब्राउजरों पर डिफॉल्ट विकल्प बनाने के लिए दूसरी कंपनियों को 26.3 अरब डॉलर का भुगतान किया. इस तरह किसी भी अन्य प्रतियोगी को बाजार में सफलता हासिल करने से रोक दिया गया. अगस्त में आए इस फैसले के परिणामस्वरूप, अमेरिका के न्याय विभाग ने प्रस्ताव रखा है कि गूगल को उसका क्रोम ब्राउजर बेचने पर बाध्य किया जाए.
रूस ने गूगल पर इतना जुर्माना लगाया जो है दुनिया की कुल दौलत से भी ज्यादा
न्याय विभाग और राज्य के एंटी-ट्रस्ट अधिकारियों ने बुधवार को अदालत में इससे संबंधित दस्तावेज दाखिल किए. इसमें कहा गया, "गूगल के गैरकानूनी व्यवहार ने प्रतिस्पर्धियों को ना केवल जरूरी वितरण माध्यमों, बल्कि वितरण साझेदारों से भी वंचित किया है. जो नए और अभिनव तरीकों से प्रतिस्पर्धियों को इन बाजारों में प्रवेश करने में सक्षम बना सकते थे.”
पिछले महीने, न्याय विभाग ने अदालत में दस्तावेज प्रस्तुत करते हुए कहा था कि वह गूगल को उसके कुछ उत्पादों का इस्तेमाल करने से रोकने के लिए ‘संरचनात्मक उपायों' को लागू करने पर विचार कर रहा है. एंटी-ट्रस्ट नियामकों ने क्रोम बेचने के अलावा, कथित तौर पर यह मांग भी रखी है कि गूगल द्वारा आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस (एआई) और उसके एंड्रॉयड स्मार्टफोन ऑपरेटिंग सिस्टम के संबंध में भी नए कदम उठाए जाएं.
गूगल फैसले के खिलाफ करेगा अपील
यह मामला मूल रूप से डॉनल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान दायर किया गया था. फिर इसमें अमेरिका के एंटी-ट्रस्ट अधिकारी और कई राज्य भी शामिल हो गए. यह मामला राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यकाल में भी चलता रहा. इसे दशक का सबसे बड़ा मुकदमा कहा गया. हालिया प्रस्ताव को एक प्रौद्योगिकी कंपनी की ताकत पर लगाम लगाने के लिए सरकार का महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है.
न्याय विभाग ने दो दशक पहले माइक्रोसॉफ्ट को भी तोड़ने की कोशिश की थी, लेकिन उसमें सफलता नहीं मिली थी. अगस्त में गूगल ने भी कहा था कि वह इस फैसले के खिलाफ अपील करेगा. क्योंकि यह दिखाता है कि सरकार अपने अधिकारों के परे जाकर काम कर रही है, जिससे उपभोक्ताओं को नुकसान होगा.
क्रोम से चलता है गूगल का विज्ञापन कारोबार
क्रोम का छिनना गूगल के लिए एक बड़ा झटका होगा. दुनिया की लगभग 90 फीसदी सर्च क्वेरी गूगल के जरिए की जाती हैं. 60 फीसदी से ज्यादा उपयोगकर्ता सर्च करने के लिए गूगल के क्रोम ब्राउजर पर निर्भर रहते हैं. क्रोम इंटरनेट की दुनिया में गूगल के प्रवेश द्वार की तरह काम करता है. यह अपने उत्पादों को बढ़ावा देने और ग्राहकों को बनाए रखने में कंपनी की मदद करता है. जीमेल और आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस मॉडल जेमिनी को भी इससे फायदा होता है.
लेकिन सबसे जरूरी बात यह है कि क्रोम गूगल के ऑनलाइन विज्ञापन बेचने के मुख्य कारोबार का महत्वपूर्ण हिस्सा है. दूसरे ब्राउजरों पर होने वाली खोजों के उलट, क्रोम गूगल को ज्यादा डेटा इकट्ठा करने की अनुमति देता है. जैसे कि सर्च करने का व्यवहार क्या है और वरीयता वाली वेबसाइट्स कौनसी हैं. इन सूचनाओं की मदद से गूगल विज्ञापनों को ज्यादा प्रभावशाली तरीके से लोगों तक पहुंचाता है.
"क्रोम छिनने से गूगल को हो जाएगी परेशानी”
गूगल और उसकी मूल कंपनी अल्फाबेट के लिए विज्ञापन बहुत जरूरी हैं. साल 2023 में अल्फाबेट का कुल राजस्व 307 अरब डॉलर रहा था. इसमें से 230 अरब डॉलर से ज्यादा की कमाई तो सिर्फ विज्ञापनों के जरिए हुई थी.
नील्स जीबख डिजिटल कंसल्टेंसी फर्म ईट्राइब्स के सह-सीईओ और सीएफओ हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "अगर क्रोम छिनता है तो गूगल को काफी परेशानी उठानी पड़ेगी. अपने मौजूदा सेटअप में क्रोम गूगल के बिजनेस मॉडल का अभिन्न अंग है, लेकिन यह सिर्फ अपने दम पर काम नहीं कर पाएगा. इसी तरह, क्रोम के बिकने से अल्फाबेट के सामने भी एक बड़ी चुनौती खड़ी हो जाएगी. इस तरह की घटना एक बड़ी समस्या होगी, यहां तक कि (डिजिटल) बाजार के लिए भी.”
एकाधिकार के खिलाफ काम करने वाली एनजीओ ‘री-बैलेंस' के उलरिश मुलर इस प्रस्ताव का समर्थन करते हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "क्रोम के बिकने से गूगल की विज्ञापन आय कम हो जाएगी और बाजार में इसके प्रभुत्व पर अंकुश लगेगा. इससे कंपनी को उसकी सेवाओं की गुणवत्ता के आधार पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है.” मुलर इसमें वैकल्पिक व्यवसाय मॉडलों की संभावना भी देखते हैं, जैसे- सबस्क्रिप्शन आधारित सर्च इंजन.
जीबख कहते हैं, "यह स्पष्ट नहीं है कि गूगल के खिलाफ कानूनी लड़ाई कब तक चलेगी और संभावित टूट वास्तव में कब जाकर होगी. आज हम ब्राउजर और सर्च इंजनों को जिस रूप में देखते हैं, वे तब तक अप्रचलित हो सकते हैं.”
अमेरिका के एंटी-ट्रस्ट समर्थकों की जीत
गूगल के खिलाफ आया यह फैसला, अमेरिका के एंटी-ट्रस्ट कानून के लंबे इतिहास की याद दिलाता है. 1911 में इन कानूनों की वजह से ‘स्टैंडर्ड ऑयल' कंपनी में टूट हुई थी. यह जॉन डी. रॉकफेलर की एकाधिकार वाली ऑयल कंपनी थी.
उलरिष मुलर कहते हैं कि 1960 और 1970 के दशक के शुरुआती सालों में, एकाधिकार वाली कंपनियों की बहुत गहन विनियामक जांच हुआ करती थी. लेकिन 1980 के दशक में यह सिलसिला रुक गया जब शिकागो स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की नव-उदारवादी शिक्षाओं ने एकाधिकार वाली कंपनियों के निपुण होने पर बाजार में उनकी ज्यादा हिस्सेदारी को उचित ठहराया था. इसकी वजह से आने वाले सालों में कम संरचनात्मक हस्तक्षेप देखने को मिले.
हालांकि, 1980 के दशक में टेलीकम्युनिकेशन क्षेत्र की बड़ी कंपनी ‘एटी एंड टी' के खिलाफ सफलतापूर्वक एक बड़ा एंटी-ट्रस्ट मामला चलाया गया. इसकी वजह से 1982 में कंपनी टूट गई. इसके करीब 20 साल बाद, माइक्रोसॉफ्ट एकाधिकार नियामकों के निशाने पर आ गई. तब एक अमेरिकी अदालत ने फैसला सुनाया था कि माइक्रोसॉफ्ट को उसके एकाधिकार वाले कामों की वजह से विभाजित किया जाना चाहिए.
कंपनी का विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम, उसके इंटरनेट एक्सप्लोरर ब्राउजर से इतनी गहराई से जुड़ा हुआ था कि उसने प्रतिस्पर्धी नेटस्केप को ब्राउजर बाजार से बाहर कर दिया था. माइक्रोसॉफ्ट ने उस फैसले के खिलाफ अपील की थी, जिसके बाद कंपनी टूटने से बच गई. लेकिन इसके लिए माइक्रोसॉफ्ट को अपने सिस्टम के हिस्सों को प्रतिस्पर्धियों के लिए उपलब्ध करवाना पड़ा था.