मुंबई, 12 जुलाई : मुंबई की एक अदालत ने भ्रष्टाचार के एक मामले में महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख को स्वत: जमानत (डिफॉल्ट बेल) देने से इनकार करते हुए कहा है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो का आरोपपत्र सभी आवश्यकताओं को पूरा करता है. विशेष सीबीआई अदालत ने सोमवार को कहा कि निर्धारित अवधि के भीतर आरोपपत्र दाखिल नहीं करने के लिए जमानत याचिकाओं पर विचार करते समय अदालतें बहुत तकनीकी नहीं हो सकतीं. अदालत का विस्तृत आदेश मंगलवार को उपलब्ध कराया गया. न्यायाधीश एस एच ग्वालानी ने भ्रष्टाचार के मामले में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता देशमुख और दो अन्य आरोपियों - राकांपा नेता के पूर्व निजी सचिव संजीव पलांडे और पूर्व निजी सहायक कुंदन शिंदे की स्वत: जमानत याचिका खारिज कर दी थी. तीनों ने इस आधार पर स्वत: जमानत मांगी थी कि सीबीआई ने 60 दिनों की निर्धारित अवधि के भीतर अपना आरोपपत्र दाखिल नहीं किया था और जब आरोपपत्र दाखिल किया गया तो वह अधूरा था.
याचिकाओं में यह भी दावा किया गया कि सीबीआई ने आरोपपत्र के साथ प्रासंगिक दस्तावेज जमा नहीं किए थे और वे अनिवार्य समय अवधि के बाद जमा किए गए थे. सीबीआई ने दलीलों का विरोध किया था और तर्क दिया था कि उसने निर्धारित समय अवधि में आरोपपत्र दायर किया था. दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 के तहत आरोपी की गिरफ्तारी के 60 दिनों के भीतर आरोपपत्र दायर किया जाना चाहिए. ऐसा ना किए जाने पर आरोपी व्यक्ति स्वत: जमानत का अनुरोध कर सकता है. अदालत ने कहा कि सीबीआई द्वारा दो जून को दायर आरोपपत्र में कानून की सभी आवश्यकताओं का अनुपालन किया गया था और इसलिए यह एक उचित रिपोर्ट थी, जिसे सीआरपीसी की धारा 167 के तहत निर्दिष्ट अवधि के भीतर दायर किया गया था. न्यायाधीश ने कहा कि रिपोर्ट के साथ दस्तावेज और गवाहों के बयान दाखिल नहीं करने से यह अधूरा आरोपपत्र नहीं बन जाता. अदालत ने कहा कि चूंकि सीआरपीसी की धारा 173 के तहत अपेक्षित रिपोर्ट समय के भीतर दायर की गई थी, इसलिए स्वत: जमानत लेने का अधिकार कभी भी आवेदकों (आरोपी) के पक्ष में अर्जित नहीं हुआ. यह भी पढ़ें : चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए बैलेट बॉक्स, सामग्री का वितरण शुरू किया
मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह ने मार्च 2021 में आरोप लगाया था कि राज्य के तत्कालीन गृह मंत्री देशमुख ने पुलिस अधिकारियों को शहर में रेस्तरां और बार से प्रति माह 100 करोड़ रुपये एकत्रित करने का लक्ष्य दिया था. उच्च न्यायालय ने पिछले साल अप्रैल में एक वकील द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सीबीआई को प्रारंभिक जांच करने का निर्देश दिया था. सीबीआई ने अपनी जांच के आधार पर देशमुख और उनके सहयोगियों के खिलाफ भ्रष्टाचार और आधिकारिक शक्ति के दुरुपयोग के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की थी. ईडी ने देशमुख को नवंबर 2021 में गिरफ्तार किया था और वह फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं. उन्हें इस साल अप्रैल में सीबीआई द्वारा दर्ज भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार किया गया था. इस मामले में भी वह फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं.