नयी दिल्ली, 25 जनवरी: दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक वकील द्वारा कथित दुष्कर्म के मामले में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए दायर याचिका को ‘दुर्भावनापूर्ण’ करार देते हुए उसे खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया. वकील ने आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी से उसके रिश्ते के भाई (वकील के रिश्ते के साले) ने तब दुष्कर्म किया था जब वह नाबालिग थी. उसने मामले में प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध किया था। अब वकील के साथ नहीं रह रही महिला ने हालांकि आरोपों से इनकार किया था.
न्यायमूर्ति अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली के चक्र को बेवजह की शिकायतों से अवरुद्ध करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, वह भी तब जब कथित पीड़िता को खुद कोई शिकायत नहीं है. अदालत ने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता आठ सप्ताह के भीतर दिल्ली उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति को लागत का भुगतान करे. न्यायाधीश ने कहा कि ऐसी शिकायतें न केवल जीवनसाथी को बल्कि उस व्यक्ति को भी परेशान कर सकती हैं जिसे निर्दोष होने के बावजूद फंसाया गया हो.
अदालत ने अपने हालिया आदेश में कहा, ‘‘ बलात्कार का ऐसा कोई भी आरोप न केवल 'अमुक' व्यक्ति(इस मामले में पत्नी) की गरिमा पर सवालिया निशान लगाता है, बल्कि उसके उत्पीड़न का कारण भी बन सकता है और दूसरे व्यक्ति की प्रतिष्ठा और जीवन को प्रभावित कर सकता है.’’ मजिस्ट्रेट अदालत के साथ-साथ सत्र अदालत द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) के तहत प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देने से इनकार करने के बाद याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय का रुख किया था.
मजिस्ट्रेट धारा 156(3) के तहत किसी मामले में संज्ञान लेकर कथित अपराध की जांच का आदेश दे सकता है. याचिकाकर्ता ने दावा किया कि 2017 में उनकी शादी के बाद पत्नी ने खुलासा किया कि जब वह 16 साल की थी तो उसके रिश्ते के भाई ने उसके साथ दुष्कर्म किया था. अदालत ने रेखांकित किया कि पुलिस द्वारा दायर की गई कार्रवाई रिपोर्ट को ‘‘हल्के ढंग से खारिज नहीं किया जा सकता’’ जिसमें पत्नी ने आरोप से इनकार किया और दावा किया कि याचिकाकर्ता ने उसे दहेज के लिए परेशान किया, तथा घरेलू हिंसा, भरण-पोषण तथा तलाक की कार्यवाही लंबित है.
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