विदेश की खबरें | यमन में आईएसआईएस, अलकायदा की मौजूदगी से निपटने की जरूरत :भारत

संयुक्त राष्ट्र, चार दिसंबर भारत ने कहा है कि यमन के कुछ हिस्सों में आईएसआईएस और अलकायदा जैसे आतंकवादी तत्वों की मौजूदगी तथा लोगों पर उनके लगातार हमलों से निपटने की जरूरत है।

भारत ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आतंकवाद से वैश्विक स्तर पर लड़ने में तथा इन आतंकी संगठनों का समर्थन करने एवं पनाह देने वालों को जवाबदेह ठहराने के लिए अवश्य ही एकजुट होने की जरूरत है।

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संयुक्त राष्ट्र स्थित भारतीय मिशन में राजदूत एवं भारत के उप स्थायी प्रतिनिधि के. नागराज नायडू ने कहा कि यमन में मानवाधिकार गंभीर संकट में है।

उन्होंने बृहस्पतिवार को यमन पर एक बैठक में इस बात पर जोर दिया कि इसका समाधान राजनीतिक है, जिसे एक व्यापक एवं समावेशी राजनीतिक प्रक्रिया के जरिए ही हासिल किया जा सकता है।

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यमन की राजधानी सना पर विद्रोहियों के कब्जा करने के कुछ महीनों बाद से सऊदी अरब नीत एक गठबंधन हूती विद्रोहियों से संघर्ष कर रहा है।

नायडू ने कहा, ‘‘यमन में व्यापक राजनीतिक संघर्ष पर चर्चा करने के दौरान देश के कुछ हिस्सों में आईएसआईएस और अलकायदा जैसे आतंकवादी तत्वों की मौजूदगी तथा लोगों पर उनके लगातार हमलों से निपटने की जरूरत है। ’’

उन्होंने कहा कि आतंकवाद मानवता के लिए एक खतरा है और आतंकवादी मानवाधिकारों के सबसे बड़े हननकर्ता हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘हम उम्मीद करते हैं कि सभी पक्षों को हिंसा छोड़ देना चाहिए और यथाशीघ्र संयुक्त घोषणापत्र को अंतिम रूप देने के लिए विशेष दूत के साथ सहयोग करना चाहिए। इसके अंत में हम 2018 के स्टॉकहोम समझौता और 2019 के रियाद समझौता को लागू करने की अपील करेंगे। आखिरकार राजनीतिक वार्ता के जरिए शांति एवं सुरक्षा कायम करना ही यमन में एकमात्र रास्ता है। ’’

उल्लेखनीय है कि स्टॉकहोम समझौता, यमन में संघर्ष में शामिल विभिन्न पक्षों के बीच एक स्वैच्छिक समझौता है।

नायडू ने कहा कि महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा की सख्त निंदा करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यमनी महिलाओं, बालिकाओं और बच्चों ने इस संघर्ष में बड़ी कीमत चुकाई है।

उन्होंने कहा, ‘‘इसे फौरन खत्म किया जाना चाहिए। ’’

उन्होंने यमन में अकाल के खतरे को लेकर चिंता जताते हुए कहा कि देश के लोग अत्यधिक खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। बच्चों में कुपोषण अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है, पांच साल से कम उम्र के करीब 98,000 बच्चों को जान का खतरा है।

उल्लेखनीय है कि संघर्ष में इस साल के प्रथम नौ महीने में 3,000 से अधिक बच्चे मारे गए हैं और 1,500 लोग हताहत हुए हैं।

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