बांग्लादेश के हिंदू संत और इस्कॉन चटगांव के पुंडरीक धाम के अध्यक्ष चिन्मय कृष्ण दास को बांग्लादेश की अदालत से बड़ा झटका लगा है. उन्हें राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, और अब उनकी जमानत याचिका को अदालत ने खारिज कर दिया है. बांग्लादेश पुलिस ने उनकी रिमांड नहीं मांगी, जिसके बाद अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश दिया है. साथ ही कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया है कि उन्हें जेल में सभी धार्मिक लाभ प्राप्त हों.
क्या है पूरा मामला?
यह मामला 25 अक्टूबर को ढाका के न्यू मार्केट क्षेत्र में हुई एक रैली से जुड़ा हुआ है. इस रैली में हिंदुओं के समूह 'सनातन जागरण मंच' ने प्रदर्शन किया था. रैली के दौरान कुछ युवाओं ने बांग्लादेशी राष्ट्रीय ध्वज के ऊपर भगवा झंडा लगा दिया था, जिसे बांग्लादेश की पुलिस ने चिन्मय प्रभु से जोड़कर उनकी गिरफ्तारी की वजह बताया. पुलिस का कहना है कि इस घटना ने देश के राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया, जिससे चिन्मय प्रभु को आरोपी बनाया गया.
चिन्मय प्रभु कौन हैं?
चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी, जिन्हें लोग चिन्मय प्रभु के नाम से भी जानते हैं, बांग्लादेश सनातन जागरण मंच के प्रमुख नेता हैं. इसके अलावा, वह इस्कॉन चटगांव के पुंडरीक धाम के अध्यक्ष भी हैं. बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ वह लगातार सशक्त आवाज उठाते रहे हैं. इस्कॉन के बांग्लादेश में 77 से ज्यादा मंदिर हैं और लगभग 50,000 से अधिक लोग इस संगठन से जुड़े हुए हैं. चिन्मय प्रभु का संबंध अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण चेतना समाज (ISKCON) से भी है, और वह इस संगठन के प्रवक्ता भी रह चुके हैं.
चिन्मय प्रभु की गिरफ्तारी ने बांग्लादेश के हिंदू समुदाय में एक हलचल मचा दी है. यह घटना बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के खिलाफ बढ़ते अत्याचारों और धार्मिक भेदभाव को उजागर करती है. चिन्मय प्रभु की गिरफ्तारी ने यह सवाल उठाया है कि क्या बांग्लादेश में धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा की जा रही है?
अदालत का फैसला और बांग्लादेश पुलिस की कार्रवाई यह दर्शाती है कि देश में धार्मिक और राजनीतिक तनाव अब भी अपने चरम पर है. चिन्मय प्रभु के खिलाफ मामले में आगे की कानूनी कार्रवाई पर सबकी नजरें हैं, और यह देखना होगा कि क्या उन्हें न्याय मिलता है या नहीं.