Irrfan Khan No More: मकबूल’ होकर दुनिया को अलविदा कह गए इरफान खान
इरफान खान (Photo Credits: Instagram)

नयी दिल्ली: इरफान खान (Irrfan Khan) अब हमारे बीच नहीं रहे …लेकिन सिने प्रेमियों के दिलों में वो हमेशा ‘मकबूल’ रहेंगे. अपनी बोलती आंखों से हर संवाद में जान डाल देने वाला वो कलाकार आज हमेशा के लिये खामोश हो गया. हिंदी सिनेमा से लेकर हॉलीवुड तक अपनी दमदार अदाकारी से दिलों को जीतने वाले इस कलाकार का इस तरह जाने की उम्मीद शायद किसी ने भी नहीं की होगी. बेहद शालीन और शर्मीले इरफान शोबिज की दुनिया में अन्य कलाकारों से यूं ही नहीं अलग थे. टीवी-धारावाहिकों से बड़े पर्दे का सफर और फिर भारतीय फिल्मों से विश्व सिनेमा तक बिना किसी ज्यादा हो-हंगामे के सफर तय करने वाले इस कालाकार की शुरुआत देख शायद ही किसी ने यह सोचा था कि एक नया सितारा अपनी धाक जमाने आ चुका है.

न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर से करीब दो साल तक जंग लड़ने के बाद बुधवार को जब उनका निधन हुआ तो शायद बॉलीवुड को यह समझ में आया होगा कि उनके होने से क्या ‘हासिल’ था और उनके जाने से क्या चला गया है. महज 54 साल की उम्र में तीन दशकों तक सिनेमा में उन्होंने अपने अलग ही अंदाज में कई किरदार जिये और हर किरदार को देखने के बाद लोगों के दिल में यही बात होती कि शायद यह भूमिका उन्हीं के लिये लिखी गयी थी. बात चाहे “लाइफ इन अ मेट्रो” की हो या शेक्सपीयर के नाटक “मैक्बैथ” पर आधारित ‘मकबूल’ की या फिर ‘द लाइफ ऑफ पाई’ की. हर किरदार को उन्होंने जीवंत बना दिया. यह भी पढ़ें: RIP Irfan Khan: इरफान खान के दोनों बेटे अयान और बाबिल खान करते हैं ये काम

उनकी फिल्मों के निर्देशक भी मानते हैं कि लंबे और थोड़े गंवार से नजर आने वाले इरफान पारंपरिक फिल्मी हीरो की तरह खूबसूरत नहीं दिखते थे लेकिन उनकी आंखें बेहद संजीदा और बोलती थीं और हर किरदार के रंग में खुद को रंग लेने की अद्भुत क्षमता भी उन्हें दूसरों से अलहदा करती थी. उनके फिल्मी करियर की शुरुआती फिल्म ‘हासिल’ में एक छात्रनेता के तौर पर उनके अभिनय की गंभीर झलक बॉलीवुड ने देखी. उनका सफर मीरा नायर की ‘द नेमसेक’ में अशोक गांगुली के प्रवासी भारतीय किरदार में और परिपक्वता लेता दिखा तो वहीं एक फौजी खिलाड़ी से डकैत बने ‘पान सिंह तोमर’ पर इसी नाम से बनी फिल्म में उनकी संवाद अदायगी ने हर किसी को उनका कायल बना दिया. इस फिल्म के लिये उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला था.

इरफान जब ‘पीकू’ में पिता-पुत्री के रिश्तों की परतों को ‘राणा’ बनकर समझने की कोशिश करते दिखते हैं या फिर ‘ द लंचबॉक्स’ में एक ऐसी महिला से संभावित रिश्ते की पहल करने वाले जिसे उन्होंने पहले कभी देखा नहीं है तो कई बार बिना बोले ही उनकी आंखें पर्दे पर संवाद अदायगी करती नजर आती हैं. मुख्यधारा की फिल्मों में इरफान नजर आते हैं लेकिन वह इनमें नाचते-गाते कम ही नजर आए हैं. जयपुर में 1966 में एक मुस्लिम पश्तून परिवार में जन्मे इरफान शायद फिल्मों में आते ही नहीं…क्योंकि शुरू में वह क्रिकेट खिलाड़ी बनना चाहते थे. उनके माता-पिता ऐसा नहीं चाहते थे और इरफान ने कारोबार में भी हाथ आजमाया. उनकी माता टोंक के नवाब खानदान से संबंध रखने वाली थीं,जबकि उनके पिता कारोबारी थे. यह भी पढ़ें: अलविदा इरफान खान: संसार से रुखसत होते वक्त जुबां पर था मां का नाम, बोले-अम्मा मुझे लेने आई हैं

इरफान से कारोबार हो नहीं पाया और युवा इरफान एक स्थानीय थियेटर की तरफ आकर्षित हुए. इरफान इतने संकोची थे कि काफी समय तक अपनी इस इच्छा का किसी से वो जिक्र ही नहीं कर पाए. इरफान ने 2017 में पीटीआई- को दिये एक साक्षात्कार में कहा था, “मैं अभिनेता बनने नहीं निकला था. मैं वो आखिरी शख्स था, जो अभिनेता बन सकता था. अगर मैं लोगों को बताता कि मैं अभिनेता बनना चाहता हूं तो वे मेरी हत्या कर देते. मैं इसका जिक्र भी किसी से नहीं कर सका.”