नयी दिल्ली, 21 अक्टूबर : उच्चतम न्यायालय ने तीन माह की बच्ची से बलात्कार और हत्या के आरोप में मृत्युदंड की सजा का सामना कर रहे व्यक्ति की दोषसिद्धि को यह कहकर खारिज कर दिया कि मामला ‘‘जल्दबाजी में’’ सुना गया और व्यक्ति को अपने बचाव का पर्याप्त अवसर नहीं दिया गया. शीर्ष अदालत ने मामले में नए सिरे से सुनवाई करने को कहा है. शीर्ष अदालत ने कहा कि संबंधित मुकदमा 2018 में दर्ज हुआ था, जिसे आरोप पत्र दायर होने की तारीख से महज 15 दिनों के भीतर पूरा कर लिया गया. आरोपी को निचली अदालत ने कई अपराधों के लिए दोषी ठहराया. न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि निचली अदालत ने मामले में आरोपी को अपने खुद के बचाव के लिए उचित अवसर दिए बिना सुनवाई में जल्दबाजी की.’’
पीठ में न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा भी शामिल थे. पीठ ने 19 अक्टूबर को दिये अपने फैसले में कहा कि यह तय है कि मुकदमे में सुनवाई जल्दबाजी में हुई, जिसमें अभियुक्त को अपना बचाव करने के लिए उचित और पर्याप्त अवसर नहीं दिया गया. पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए दोषसिद्धि का फैसला और निचली अदालत द्वारा दी गई उस सजा को खारिज किया जाता है, जिसकी उच्च न्यायालय ने भी पुष्टि की है. मामले में नए सिरे से सुनवाई के लिए इसे फिर से निचली अदालत को भेजा जाता है और याचिकाकर्ता को अपने बचाव के लिए पर्याप्त अवसर दिए जाने का निर्देश दिया जाता है.’’ शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता नवीन द्वारा दायर याचिका पर अपना फैसला सुनाया, जिसमें मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के दिसंबर 2018 के फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसने हत्या और बलात्कार सहित भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं एवं यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के प्रावधान के तहत अपराधों के लिए उसकी सजा को बरकरार रखा था. यह भी पढ़ें : Heinrich Klaasen Half Century: हेनरिक क्लासेन ने जड़ा ताबड़तोड़ अर्धशतक, मार्को जेन्सन के साथ मिलकर पारी को संभाला
उच्च न्यायालय ने इंदौर की एक निचली अदालत द्वारा व्यक्ति को दी गई मौत की सजा की पुष्टि की थी. उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता को तीन महीने की बच्ची से बलात्कार और हत्या का दोषी ठहराया गया और सजा सुनाई गई. शीर्ष अदालत के समक्ष बहस के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने दलील दी थी कि 27 अप्रैल, 2018 को आरोप-पत्र दायर किए जाने की तारीख से 15 दिनों के भीतर 12 मई, 2018 तक सुनवाई पूरी हो गई थी, जब निचली अदालत द्वारा फैसला सुनाया गया था.