अंतरिक्ष में तारों के बीच भटकते हुए ग्रह अपने आप कैसे खत्म हो जाते हैं ?
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मिल्टन केनेस (ब्रिटेन), 16 जनवरी : हम सौर मंडल के बाहर लगभग 5,000 ग्रहों के बारे में जानते हैं. अगर आप कल्पना करते हैं कि दूर की इस दुनिया या एक्सोप्लैनेट (सौर मंडल के बाहर के ग्रह) का वजूद कैसा होगा तो आपके दिमाग में किसी मूल तारे या एक से अधिक तारों की छवि उभरेगी, विशेष रूप से यदि आप ‘स्टार वार्स’ फिल्मों के प्रशंसक हैं. वैज्ञानिकों ने हाल में पता लगाया है कि जितना हमने सोचा था उससे कहीं अधिक ग्रह अपने आप अंतरिक्ष में भटक रहे हैं. ये बर्फीले ‘‘फ्री-फ्लोटिंग प्लैनेट’’ अथवा एफएफपी हैं. लेकिन वे अपने आप कैसे समाप्त हो जाते हैं और ऐसे ग्रह कैसे बनते हैं? इसके बारे में हमें वे बता सकते हैं. अध्ययन करने के लिए अधिक से अधिक एक्सोप्लैनेट खोजने से जैसा कि हमने उम्मीद की होगी, हमारी समझ को व्यापक किया है कि ग्रह क्या है. विशेष रूप से ग्रहों और ‘‘ब्राउन ड्वार्फ्स’’ के बीच की रेखा तेजी से धुंधली होती गई है. ‘‘ब्राउन ड्वार्फ्स’’ ऐसे ठंडे तारे होते हैं जो अन्य तारों की तरह हाइड्रोजन को ‘फ्यूज’ नहीं कर सकते. क्या तय करता है कि कोई वस्तु एक ग्रह है या ‘‘ब्राउन ड्वार्फ्स’’, यह लंबे समय से बहस का विषय रहा है. क्या यह द्रव्यमान का सवाल है? यदि वे परमाणु संलयन से गुजर रहे हैं तो क्या वस्तुएं ग्रह नहीं रह जाती हैं? अथवा, जिस तरह से वस्तु का गठन हुआ वह सबसे महत्वपूर्ण है?

लगभग आधे तारे और ‘‘ब्राउन ड्वार्फ्स’’ अलग-थलग रहते हैं, बाकी कई तारा सौर मंडल में मौजूद हैं. हम आमतौर पर ग्रहों को एक तारे के चारों ओर कक्षा में अधीनस्थ वस्तुओं के रूप में सोचते हैं. दूरबीन तकनीक में सुधार ने हमें अंतरिक्ष में छोटी और अलगाव में रह रही वस्तुओं को देखने में सक्षम बनाया है, जिसमें एफएफपी भी शामिल है. ये एफएफपी ऐसी वस्तुएं हैं जिनका द्रव्यमान या तापमान बहुत कम होता है जिन्हें ‘‘ब्राउन ड्वार्फ’’ माना जाता है. हम अभी भी यह नहीं जानते हैं कि वास्तव में ये वस्तुएं कैसे बनीं. तारे और ‘‘ब्राउन ड्वार्फ’’ तब बनते हैं जब अंतरिक्ष में धूल और गैस का एक क्षेत्र अपने आप गिरने लगता है. यह क्षेत्र सघन हो जाता है, इसलिए गुरुत्वाकर्षण की एक प्रक्रिया में अधिक से अधिक सामग्री उस पर गिरती रहती है. आखिर गैस का यह गोला परमाणु संलयन शुरू करने के लिए गर्म होता जाता है. एफएफपी एक ही तरह से बन सकते हैं, लेकिन फ्यूजन शुरू करने जितना आकार बड़ा नहीं होता है. यह भी संभव है कि ऐसा ग्रह किसी तारे के चारों ओर कक्षा में जीवन शुरू कर सकता है, लेकिन किसी बिंदु पर अंतरताराकीय स्थान से बाहर हो जाता है. यह भी पढ़ें: COVID-19: सीबीएसई की तैयारी, कोरोना लहर बीतने के बाद बोर्ड परीक्षा की बारी

तारों के बीच भटकते ग्रह को कैसे पहचानें?

इस तरह के ग्रहों का पता लगाना मुश्किल होता है क्योंकि वे अपेक्षाकृत छोटे और ठंडे होते हैं. आंतरिक ऊष्मा का उनका एकमात्र स्रोत नष्ट होने की प्रक्रिया से बची शेष ऊर्जा है जिसके परिणामस्वरूप उनका निर्माण हुआ. ग्रह जितना छोटा होगा, उतनी ही तेजी से ऊष्मा विकिरित होगी. अंतरिक्ष में ठंडी वस्तुएं कम प्रकाश उत्सर्जित करती हैं और वे जो प्रकाश उत्सर्जित करती हैं वह लाल रंग का होता है. एफएफपी को सीधे देखने के लिए सबसे अच्छी रणनीति शुरुआती अवस्था में उनका पता लगाना है क्योंकि इस दौरान सबसे ज्यादा चमक रहती है. हाल के अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इसी तरीके से भटकने वाले ग्रहों का पता लगाया है. इन भटकते ग्रहों को पूरी तरह से समझने के लिए हमें अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है. दूरबीन की नयी तकनीक उपलब्ध होने के साथ ही ग्रहों को और अधिक विस्तृत जांच के लिए फिर से देखा जा सकता है. इससे ऐसे ग्रहों की उत्पत्ति के बारे में अधिक जानकारी मिल सकती है.