नयी दिल्ली, 15 नवंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने सात साल की बच्ची के यौन उत्पीड़न के अपराध में एक व्यक्ति की सात साल कैद की सजा बरकरार रखी है। न्यायालय ने कहा कि पीड़िता की गवाही विश्वास पैदा करने वाली है और दोषी यह साबित करने में असमर्थ रहा है कि उसे (लड़की को) कुछ सिखाया-पढ़ाया गया था।
उच्च न्यायालय ने कहा कि यौन अपराध के मामलों में पीड़ित बच्चे के बयान पर विचार करते समय अदालत को संवेदनशील होना चाहिए, लेकिन बच्चे संवेदनशील होते हैं और उन्हें सिखाए-पढ़ाए जाने की संभावना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति अमित महाजन ने अपने हालिया फैसले में कहा, ‘‘ जब सुनवाई अदलतों ने पीड़िता के बयान को विश्वसनीय पाया है और जब पीड़िता पूरी सुनवाई के दौरान अपने बयान पर अड़ी रही है तो ऐसे में अपीलकर्ता की यह आशंका कि पीड़िता को बहकाया गया है, पीड़िता के साक्ष्य को नजरअंदाज करने के लिए पर्याप्त नहीं है।’’
उच्च न्यायालय ने व्यक्ति की उस अपील को खारिज कर दिया जिसमें उसने एक नाबालिग लड़की के यौन उत्पीड़न के लिए उसे दोषी ठहराने और सात साल की सजा सुनाए जाने के निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी थी।
सजा के संबंध में उच्च न्यायालय ने कहा कि निचली अदालत ने अपराध की गंभीरता को सही ढंग से समझा है और इस बात को ध्यान में रखा है कि घटना के समय पीड़िता की उम्र मात्र सात वर्ष थी जबकि आरोपी 37 वर्ष का वयस्क व्यक्ति था।
यह घटना दिसंबर 2016 में हुई थी जब बच्ची माचिस लेने के लिए अपने मकान मालिक के कमरे में जा रही थी और आरोपी ने उसे अपने कमरे में खींच लिया था।
अभियोजन पक्ष ने बताया कि आरोपी ने उसके साथ छेड़छाड़ की और नाबालिग के साथ बलात्कार का भी प्रयास किया। तभी बच्ची का भाई उसे खोजते हुए आया और उसने अपनी बहन को बचाया।
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