नयी दिल्ली, 23 अक्टूबर : प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने वैवाहिक बलात्कार के मामलों में पतियों को दी गई छूट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई बुधवार को चार सप्ताह के लिए टाल दी. प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) 10 नवंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं. शुरूआत में, प्रधान न्यायाधीश और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने वकीलों से पूछा कि अलग-अलग दलील पेश करने के लिए उन्हें कितना समय चाहिए. पीठ ने याचिकाओं पर 17 अक्टूबर को अंतिम सुनवाई शुरू की थी. एक पक्ष की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण ने कहा कि उन्हें अपनी दलीलें पूरी करने के लिए कम से कम एक दिन का वक्त लगेगा क्योंकि इस तरह के महत्वपूर्ण विषय में जरूरी विस्तृत दलीलों को वह संक्षिप्त नहीं करना चाहते.
केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, महाराष्ट्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी और एक महिला की पैरवी कर रहीं वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने भी कहा कि उनमें से प्रत्येक को दलील पूरी करने के लिए एक-एक दिन का वक्त चाहिए. शीर्ष अदालत दिवाली की छुट्टियों के लिए 26 अक्टूबर को बंद हो रही है और चार नवंबर को खुलेगी. ऐसे में, इस संवेदनशील मामले की सुनवाई करने और फैसला सुनाने के लिए प्रधान न्यायाधीश के पास पांच दिन ही बचेंगे. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यदि इस हफ्तें दलीलें पूरी नहीं हो पाती हैं तो उनके लिए निर्णय सुना पाना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि वह 10 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं. शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘समय के अनुमान को देखते हुए, हमारा मानना है कि निकट भविष्य में सुनवाई पूरी करना संभव नहीं होगा.’’ न्यायालय ने कहा कि याचिकाओं को चार सप्ताह बाद किसी अन्य पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए. शंकरनारायण ने कहा, ‘‘हमें बहुत अफसोस है. हम इसे जारी रखना चाहते हैं.’’ यह भी पढ़ें : चक्रवाती तूफान ‘दाना’ के मद्देनजर ओडिशा सिविल सेवा परीक्षा स्थगित, नंदनकानन चिड़ियाघर बंद
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि केंद्र का यह कहना है कि विवाह सहमति की अवधारणा को समाप्त नहीं करता, लेकिन साथ ही वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में डालने के लिए मामले का विभिन्न दृष्टिकोणों से आकलन करना होगा. एक याचिकाकर्ता की ओर पेश हुईं वरिष्ठ अधिवक्ता करूणा नंदी ने कहा कि याचिका देश की करोड़ों महिलाओं के बारे में हैं और इसकी ‘‘अत्यधिक तात्कालिकता’’ है. उन्होंने दलील दी कि प्रधान न्यायाधीश सुनवाई जारी रखें क्योंकि उन्होंने पूर्व में कई महत्वपूर्ण निर्णय सुनाये हैं.
पीठ ने 17 अक्टूबर को कहा था कि यह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के उन दंडात्मक प्रावधानों की संवैधानिक वैधता पर निर्णय करेगी, जो पत्नी के नाबालिग नहीं होने की स्थिति में उसके साथ जबरन यौन संबंध बनाने पर बलात्कार के अपराध के लिए पति को अभियोजन से छूट प्रदान करते हैं. प्रधान न्यायाधीश ने याचिकाकर्ताओं से केंद्र की इस दलील पर विचार मांगा कि ऐसे कृत्यों को दंडनीय बनाने से वैवाहिक संबंधों पर गंभीर असर पड़ेगा और विवाह नाम की संस्था प्रभावित होगी. भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद खंड को अब निरस्त कर दिया गया है और बीएनएस द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है. इस अपवाद खंड के तहत, पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना, यदि पत्नी नाबालिग न हो, बलात्कार नहीं है. नये कानून के तहत भी, धारा 63 (बलात्कार) के अपवाद खंड 2 में कहा गया है कि ‘‘पति द्वारा पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना, यदि पत्नी 18 वर्ष से कम आयु की न हो, बलात्कार नहीं है.’’