मुंबई, तीन दिसंबर उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) जैसे प्रमुख संस्थानों की मौजूदगी के बावजूद किसान संकट में हैं।
धनखड़ ने कहा कि किसान संकट में हैं और आंदोलन कर रहे हैं तथा यह स्थिति देश के समग्र कल्याण के लिए अच्छी नहीं है।
धनखड़ ने कहा, ‘‘आत्मावलोकन की आवश्यकता है, क्योंकि किसान संकट में हैं। यदि ऐसे संस्थान (जैसे आईसीएआर और उसके सहयोगी) सक्रिय होते और योगदान दे रहे होते, तो यह स्थिति नहीं होती...ऐसे संस्थान देश के हर कोने में स्थित हैं, लेकिन किसानों की दशा अभी भी वही है।’’
उपराष्ट्रपति धनखड़ केंद्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरसीओटी) के शताब्दी समारोह को संबोधित कर रहे थे। मुंबई स्थित सीआईआरसीओटी केंद्रीय कृषि मंत्रालय के कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के अंतर्गत आईसीएआर के प्रमुख घटक संस्थानों में से एक है।
उन्होंने कहा कि भारत जल्द ही दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है, लेकिन विकसित राष्ट्र का दर्जा पाने के लिए प्रत्येक नागरिक की आय में आठ गुना वृद्धि करनी होगी, जिसमें से अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों से आएगी।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि आज किसान आंदोलन का सहारा ले रहे हैं। उन्होंने कहा , ‘‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दुनिया को संदेश दिया है कि समाधान केवल बातचीत से ही निकल सकता है।’’
उपराष्ट्रपति ने कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में सक्रिय संस्थानों से किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में काम करने का आग्रह किया।
इस अवसर पर केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि भारत अपने किसानों के बिना एक समृद्ध देश नहीं बन सकता। उन्होंने कहा, ‘‘एक गौरवशाली, समृद्ध भारत का निर्माण किसानों के बिना नहीं हो सकता। आज भी कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और किसान इसकी आत्मा हैं।’’
मंत्री ने कहा कि सीआईआरसीओटी देश का एकमात्र संस्थान है, जो यांत्रिक रूप से चुनी गई कपास के प्रसंस्करण के लिए काम कर रहा है।
चौहान ने कहा, ‘‘यांत्रिक रूप से काटे गए कपास के प्रसंस्करण के लिए संयंत्र और मशीनरी को अनुकूलित करने की आवश्यकता है। इसके लिए यहां (मुंबई) एक प्रायोगिक संयंत्र की व्यवस्था की जाएगी। यह देखने के लिए आवश्यक व्यवस्था की जाएगी कि यह कपास जीनोम के लिए एक अंतरराष्ट्रीय केंद्र कैसे बन सकता है।’’
चौहान ने कहा कि कपास के बीज बहुत महंगे हैं और निजी कंपनियां उन्हें बहुत अधिक कीमत पर किसानों को बेचती हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘आईसीएआर को यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए कि किसानों को कम कीमत पर गुणवत्तापूर्ण बीज मिलें। किसानों पर भी ध्यान दें, ताकि उन्हें कपास की खेती से लाभ मिले और वे अपनी आजीविका कमा सकें।’’
चौहान ने कहा कि 2047 तक के लिए सीआईआरसीओटी के लिए एक रूपरेखा बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘‘हम 2047 तक क्या करेंगे, इसके लिए मुझे इसकी एक रूपरेखा चाहिए। इस पर हमें तेजी से काम करना चाहिए, ताकि हम कपास उत्पादन आदि से जुड़े काम कर सकें। सीआईआरसीओटी को 2047 तक हर हाल में शीर्ष पर होना चाहिए।’’
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