नयी दिल्ली, 26 नवंबर दो सौ चौहत्तर सदस्यों के बीच 167 दिनों तक चली बहस और लगभग 36 लाख शब्दों के तौर पर सामने आये विचारों के बाद दुनिया के सबसे लंबे लिखित भारतीय संविधान का स्वरूप सामने आया था, जिसे संविधान सभा ने 1949 में आज ही के दिन अपनाया था।
उस वक्त 1.45 लाख शब्दों में समाहित संविधान के हर अनुच्छेद पर संविधान सभा के सदस्यों ने बहस की थी। इन्होंने संविधान निर्माण के लिए दो साल, 11 महीने और 18 दिनों की अवधि में 11 सत्र और 167 दिन तक बैठक की थी।
संविधान के मुख्य वार्ताकार माने जाने वाले बी.आर. अंबेडकर को उनकी अध्यक्षता वाली मसौदा समिति के सदस्यों ने सहायता प्रदान की थी।
भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद 75 साल पहले इस ऐतिहासिक दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने वाले पहले व्यक्ति थे।
यह दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है और इसका पहला संस्करण न तो मुद्रित किया गया था और न ही टाइप किया गया था-- इसे हिंदी और अंग्रेजी दोनों में हाथ से सुलेख के रूप में लिखा गया था।
लोकसभा की वेबसाइट पर उपलब्ध तथ्यों और थिंक टैंक पीआरएस इंडिया द्वारा संविधान सभा की बहसों के विश्लेषण के अनुसार, संविधान की पांडुलिपि प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने हाथ से लिखी थी और देहरादून में उनके द्वारा प्रकाशित की गई थी।
हर पृष्ठ को शांति निकेतन के कलाकारों ने सजाया था, जिसमें बेहर राममनोहर सिन्हा और नंदलाल बोस शामिल थे।
अंतिम प्रारूप को पूरा करने में दो साल, 11 महीने और 18 दिन लगे। वर्तमान में, इसमें 395 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां हैं। संविधान में अब तक 106 बार संशोधन किया जा चुका है।
संविधान सभा ने नवंबर 1948 से अक्टूबर 1949 तक, संविधान के प्रारूप पर खंड-दर-खंड चर्चा के लिए बैठकें कीं। इस अवधि के दौरान सदस्यों ने 101 दिनों तक बैठकें कीं।
संविधान के मसौदे के भाग-तीन में मौलिक अधिकारों को शामिल किया गया और इस पर 16 दिनों तक चर्चा हुई थी।
कुल खंड-दर-खंड चर्चाओं में से 14 प्रतिशत मौलिक अधिकारों के लिए समर्पित थी।
राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों को भाग-चार में शामिल किया गया था और इस पर छह दिनों तक चर्चा हुई थी।
खंड-दर-खंड चर्चा का चार प्रतिशत निर्देशक सिद्धांतों के लिए समर्पित था।
नागरिकता से संबंधित प्रावधानों को भाग-दो में शामिल किया गया था। इस भाग पर चर्चा का दो प्रतिशत समर्पित था।
छह सदस्यों ने एक लाख से अधिक शब्द बोले। आंबेडकर ने 2.67 लाख से अधिक शब्दों का योगदान दिया।
संविधान सभा के सदस्य, भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 73,804 शब्द बोले।
मसौदा समिति ने संवैधानिक सलाहकार बीएन राव द्वारा बनाए गए मसौदे की पड़ताल की और उसमें संशोधन किया तथा इसे सभा के समक्ष विचार के लिए प्रस्तुत किया।
समिति के सदस्यों ने चर्चा के दौरान अन्य सदस्यों द्वारा की गई टिप्पणियों पर अक्सर प्रतिक्रिया दी।
कुछ वैसे सदस्य जो मसौदा समिति का हिस्सा नहीं थे, (फिर भी) उन्होंने संविधान सभा की बहसों में व्यापक रूप से भाग लिया। ऐसे पांच सदस्यों ने एक-एक लाख से ज्यादा शब्दों का योगदान किया।
संविधान सभा के पूरे कार्यकाल के दौरान पंद्रह महिलाएं इसका हिस्सा थीं। उनमें से 10 ने बहस में भाग लिया और चर्चाओं में दो प्रतिशत का योगदान दिया।
महिलाओं में सबसे ज्यादा भागीदारी जी. दुर्गाबाई ने की, जिन्होंने लगभग 23,000 शब्दों का योगदान किया। उन्होंने बहस के दौरान न्यायपालिका पर विस्तार से बात की।
अम्मू स्वामीनाथन, बेगम ऐजाज रसूल और दक्ष्याणी वेलायुधन ने मौलिक अधिकारों पर बहस में भाग लिया।
हंसा मेहता और रेणुका रे ने महिलाओं के लिए न्याय से संबंधित बहस में हिस्सा लिया।
दिलचस्प बात यह है कि संविधान सभा की बहसों में प्रांतों के सदस्यों ने 85 प्रतिशत योगदान दिया।
संविधान सभा में प्रांतों से चुने गए 210 सदस्यों और रियासतों द्वारा मनोनीत 64 सदस्यों ने चर्चा में हिस्सा लिया।
औसतन, प्रांतों के प्रत्येक सदस्य ने 14,817 शब्द और रियासतों के एक सदस्य ने 3,367 शब्द बोले।
पीठासीन अधिकारियों द्वारा दिए गए भाषणों और हस्तक्षेपों ने चर्चाओं में नौ प्रतिशत का योगदान दिया।
संविधान सभा की पहली बैठक नौ दिसंबर, 1946 को दिल्ली में ‘संविधान सदन’ में हुई। इसे पुराने संसद भवन के केंद्रीय कक्ष के रूप में भी जाना जाता है।
सदस्य राष्ट्रपति के मंच के सामने अर्धवृत्ताकार पंक्तियों में बैठे थे। अगली पंक्ति में बैठने वालों में नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, आचार्य जेबी कृपलानी, प्रसाद, सरोजिनी नायडू, हरे-कृष्ण महताब, गोविंद बल्लभ पंत, आंबेडकर, शरत चंद्र बोस, सी. राजगोपालाचारी और एम. आसफ अली थे।
नौ महिलाओं सहित दो सौ सात प्रतिनिधि भी उपस्थित थे।
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