देश की खबरें | आबकारी नीति मामला: सीबीआई ने केजरीवाल की गिरफ्तारी का उच्चतम न्यायालय में किया बचाव

नयी दिल्ली, 23 अगस्त केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी का शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय में यह कहते हुए बचाव किया कि यह (गिरफ्तारी) जरूरी थी, क्योंकि उन्होंने कथित आबकारी नीति घोटाले में अपनी भूमिका से जुड़े सवालों के जवाब में “टालमटोल और असहयोग” का रास्ता चुना।

केजरीवाल ने केंद्रीय एजेंसी द्वारा की गई उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की है। इस याचिका के जवाब में सीबीआई ने दायर अपने विस्तृत हलफनामे में आरोप लगाया कि अब रद्द कर दी गई आबकारी नीति के निर्माण में सभी महत्वपूर्ण निर्णय उनके इशारे पर तत्कालीन उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की मिलीभगत से लिए गए थे।

यह दावा करते हुए कि केजरीवाल मामले को "राजनीतिक रूप से सनसनीखेज" बनाने का प्रयास कर रहे हैं, सीबीआई ने कहा कि वह आबकारी नीति के निर्माण और क्रियान्वयन में आपराधिक साजिश में शामिल थे और जांच के न्यायोचित निष्कर्ष के लिए 26 जून को उनकी गिरफ्तारी आवश्यक थी क्योंकि वह “जानबूझकर जांच को पटरी से उतार रहे थे।”

हलफनामे में कहा गया है, “गिरफ्तारी की आवश्यकता रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री के आधार पर भी उत्पन्न हुई और चूंकि याचिकाकर्ता ने 25 जून को अपनी पूछताछ के दौरान टालमटोल और असहयोग करने का विकल्प चुना।”

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने सीबीआई के हलफनामे को रिकॉर्ड पर लिया और मामले की अगली सुनवाई के लिए पांच सितंबर की तारीख तय की।

एजेंसी ने कहा, “याचिकाकर्ता का प्रभाव और दबदबा स्पष्ट है और वह न केवल दिल्ली के मुख्यमंत्री होने के नाते दिल्ली सरकार पर प्रभाव रखते हैं, बल्कि आम आदमी पार्टी के प्रमुख एवं राष्ट्रीय संयोजक होने के नाते पार्टी से संबंधित किसी भी या सभी प्रासंगिक निर्णयों, गतिविधियों पर भी प्रभाव रखते हैं। अधिकारियों और नौकरशाहों के साथ उनकी साठगांठ है।”

उसने कहा कि हिरासत में पूछताछ के दौरान केजरीवाल का सामना संवेदनशील दस्तावेजों और गवाहों के बयानों से कराया गया है और इस तरह की जानकारी होने पर, उनके द्वारा गवाहों को प्रभावित किये जाने की आशंका भी है।

संघीय जांच एजेंसी ने कहा कि केजरीवाल दिल्ली आबकारी नीति 2021-22 के निर्माण और कार्यान्वयन में आपराधिक साजिश में उनकी भूमिका को देखते हुए अन्य सह-आरोपियों के साथ समानता के हकदार नहीं हैं, खासकर तब जब सरकार और पार्टी के कोई भी या सभी निर्णय केवल उनके निर्देशों के अनुसार लिए गए थे।

उसने कहा, “वैसे भी, सह-आरोपी को दी गई जमानत का याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर कोई असर नहीं पड़ता है।”

उसने कहा कि केजरीवाल की जमानत पर रिहायी मामले की सुनवाई को "गंभीर रूप से प्रभावित" करेगी, जो कि अभी शुरुआती चरण में है और मुख्य गवाहों की गवाही अभी बाकी है।

इसने कहा कि कथित धनशोधन से संबंधित आबकारी नीति मामले में केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने के 12 जुलाई के आदेश का सीबीआई के उस मामले पर कोई असर नहीं पड़ेगा जिसमें उन पर भ्रष्टाचार का आरोप है।

एजेंसी ने कहा, ‘‘जहां तक ​​चिकित्सा आधार पर अंतरिम जमानत के बारे में दावों का सवाल है, यह विनम्रतापूर्वक प्रस्तुत किया जाता है कि बीमारियों के संबंध में, जेल नियमों और नियमावली के अनुसार तिहाड़ जेल अस्पताल या इसके किसी भी रेफरल अस्पताल में उपचार प्रदान किया जा सकता है, जो पहले से ही किया जा रहा है। याचिकाकर्ता द्वारा चिकित्सा जमानत पर रिहा किए जाने का कोई मामला नहीं बनाया गया है, जिसे केवल तभी दिया जाना चाहिए जब जेल में उपचार संभव न हो।"

सीबीआई ने कहा कि हालांकि केजरीवाल के पास कोई मंत्री पद नहीं है, लेकिन समय के साथ यह सामने आया कि अब समाप्त हो चुकी आबकारी नीति के निर्माण में सभी महत्वपूर्ण निर्णय उनके इशारे पर तत्कालीन उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की मिलीभगत से लिये गए थे, जिनके पास आबकारी विभाग भी था।

उसने कहा, "याचिकाकर्ता को शुरू में सीआरपीसी की धारा 160 के तहत जांच में शामिल होने के लिए कहा गया था, क्योंकि वह मामले के तथ्यों से परिचित व्यक्तियों में से एक थे। हालांकि, कुछ ऐसी सामग्री थी जो उन पर संदेह की सुई घुमा रही थी। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, यह स्पष्ट होने लगा कि याचिकाकर्ता (अरविंद केजरीवाल) की नयी आबकारी नीति के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका है।"

सीबीआई ने कहा कि मुख्यमंत्री के खिलाफ आगे बढ़ने और उनके खिलाफ जांच करने के लिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17-ए के तहत सक्षम प्राधिकारी से अनुमति मांगी गई थी और 23 अप्रैल को अनुमति मिल गई थी।

उसने कहा, ‘‘संक्षेप में, याचिकाकर्ता दिल्ली आबकारी नीति 2021-22 के निर्माण और क्रियान्वयन में आपराधिक साजिश में शामिल रहा है, विशेष रूप से तब जब सरकार और पार्टी के कोई भी या सभी निर्णय केवल उसके निर्देशों के अनुसार लिए गए थे। आबकारी नीति के निजीकरण का उसके पास पहले से ही पूर्वकल्पित विचार था।" जांच एजेंसी ने आरोप लगाया कि केजरीवाल ने अन्य आरोपियों की मिलीभगत से, आबकारी नीति में "जानबूझकर" बदलाव और "हेरफेर" किया और बिना किसी तर्क के थोक विक्रेताओं के लाभ मार्जिन को 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत करवा लिया, जिससे गोवा में आम आदमी पार्टी (आप) के चुनाव संबंधी खर्चों को पूरा करने के लिए 'साउथ ग्रुप' से 100 करोड़ रुपये की अवैध रिश्वत के बदले थोक विक्रेताओं को "अनुचित अप्रत्याशित लाभ" हुआ।

एजेंसी ने दावा किया कि 25 जून को तिहाड़ जेल में पूछताछ के दौरान, आप नेता 'साउथ ग्रुप' से 100 करोड़ रुपये मांगने में अपनी भूमिका के बारे में पूछे गए सवालों के संतोषजनक जवाब देने में विफल रहे। 'साउथ ग्रुप' के बारे में एजेंसी ने दावा किया है कि यह व्यापारियों और नेताओं का एक गिरोह है।

एजेंसी ने कहा कि "उन्होंने आपराधिक साजिश रचने के संबंध में अपनी भूमिका और अन्य सह-आरोपियों की भूमिका के बारे में टालमटोल वाले जवाब दिए। उनके जवाब जांच के दौरान सीबीआई द्वारा एकत्र किए गए मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य के विपरीत थे और सबूतों से सामना कराये जाने के बावजूद वह तथ्यों का सच्चाई से खुलासा करने में विफल रहे।"

आबकारी नीति के निर्माण और क्रियान्वयन से जुड़ी कथित अनियमितताओं एवं भ्रष्टाचार की सीबीआई जांच का दिल्ली के उपराज्यपाल द्वारा आदेश दिये जाने के बाद 2022 में आबकारी नीति को रद्द कर दिया गया था।

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