क्या नारीवादियों को सच में पुरुषों से नफरत होती है?
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

कोई खुद को नारीवादी कहे, तो पहली प्रतिक्रिया मिलती है, “यह तो जरूर मर्दों के खिलाफ होगी.” यह एक बड़ी वजह है कि कई महिलाएं खुद को नारीवादी कहने से कतराती हैं. क्या सच में नारीवादी होने का मतलब पुरुषों से नफरत करना है?तमाम कोशिशों के बावजूद नारीवादी आंदोलन एक जगह आज भी कामयाब नहीं हो पाया. "नारीवादी मर्दों से नफरत करते हैं,” फेमिनिज्म के खिलाफ यह सबसे मशहूर मिथकों में से एक है. इसे दूर करने में नारीवादी आंदोलन अब तक असफल रहा है. साल 2023 का एक अध्ययन इस मिथक पर सवालिया निशान लगाता है.

साइकॉलजी ऑफ वीमन क्वॉटरली में छपे एक अध्ययन के मुताबिक नारीवादी, पुरुषों के प्रति एक सकारात्मक रवैया रखते हैं. खासकर उन पुरुषों के प्रति भी, जो खुद को नारीवादी नहीं मानते. इस अध्ययन में नौ देशों के 9,000 से ज्यादा लोगों को शामिल किया गया था. शोधकर्ताओं ने पाया कि अमेरिका, ब्रिटेन, इटली और पोलैंड जैसे देशों में नारीवादियों में पुरुषों के प्रति एक सकारात्मक रवैया देखने को मिला.

इस अध्ययन में चीन, हांगकांग, जापान, दक्षिण कोरिया और भारत भी शामिल थे. यहां भी नारीवादी और गैर-नारीवादियों की सोच में पुरुषों को लेकर कोई बड़ा अंतर नजर नहीं आया. यह अध्ययन इस बात पर जोर डालता है कि नारीवाद का काम पुरुषों के खिलाफ काम करना नहीं, बल्कि लैंगिक समानता की वकालत करना है.

लैंगिक बराबरी से परे नारीवाद, पुरुषों से नफरत करनेवाली विचारधारा के रूप में अधिक जाना जाता है. नारीवादी होने के मायने को पुरुषों को नापसंद करने तक सीमित कर दिया गया है. लेकिन इस अध्ययन के शोधकर्ताओं का मानना है कि यह नारीवाद को नकारने का एक तरीका है. नारीवादी आंदोलन जिन अधिकारों की मांग करता है, उन्हें नकारने के लिए अक्सर इस मिथक का इस्तेमाल किया जाता है.

क्या नारीवाद सिर्फ औरतों के लिए है?

नारीवाद का मतलब हर जेंडर से आनेवाले लोगों के अधिकारों की बात करना है. चाहे कोई महिला हो या पुरुष, नारीवाद सभी के लिए बराबर अधिकारों की वकालत करता है. लेकिन समानता की पैरोकार इस विचारधारा को हर स्तर पर समर्थन की जगह मिलती हैं बस चुनौतियां.

महिला विरोधी सोच को खत्म करने की जगह इस आंदोलन की पुरुष विरोधी विचारधारा के रूप में ब्रैंडिग कर दी गई. धीरे-धीरे यह एक बड़ी वजह बनी कि लोग, खासकर महिलाएं इस आंदोलन से खुद को जोड़ने में असहज महसूस करने लगीं. उन्हें डर था कि कहीं लोग उन्हें पुरुषों से नफरत करनेवाला न समझ लें. अमेरिका और ब्रिटेन में हुए एक सर्वे के मुताबिक हर पांच में से केवल एक युवा महिला ही खुद को नारीवादी मानती है.

वहीं, मार्केटिंग रिसर्च कंपनी इप्सोस के एक ग्लोबल सर्वे के मुताबिक, हर तीन में से एक पुरुष यह मानता है कि नारीवादी विचारधारा फायदे से अधिक नुकसान करती है. सर्वे में शामिल 33 फीसदी पुरुषों का मानना है कि नारीवाद के कारण 'मर्दानगी' खतरे में है.

जबकि मशहूर नारीवादी लेखिका बेल हुक्स का मानना था कि अगर नारीवादी आंदोलनों से पुरुषों को अलग रखा गया, तो यह आंदोलन को कमजोर कर सकता है. नारीवाद किसी एक जेंडर के खिलाफ नहीं है. इसका मकसद उस पितृसत्तात्मक सोच से लड़ना है, जो महिलाओं और पुरुषों दोनों का नुकसान करती है. लेकिन नारीवादी, पुरुषों से नफरत करते हैं, इस सोच को खत्म करना अब तक इस आंदोलन के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है.