देश की खबरें | दिल्ली दंगे : अदालत ने कहा कि विचाराधीन कैदियों के निर्दोष होने की धारणा को मीडिया ट्रायल से समाप्त नहीं किया जाना चाहिए

नयी दिल्ली, 22 जनवरी जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद की एक याचिका पर शुक्रवार को अदालत ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया की शुरुआत में ‘‘निर्दोष होने की धारणा’’ को मीडिया ट्रायल से समाप्त नहीं किया जाना चाहिए। याचिका में उसने आरोप लगाया कि उत्तरपूर्वी दिल्ली में हुए दंगों में उसके खिलाफ ‘‘विद्वेषपूर्ण मीडिया अभियान’’ चलाया गया।

अदालत ने कहा कि उसे उम्मीद है कि जिस मामले में जांच चल रही है या सुनवाई चल रही है उसमें रिपोर्टिंग करते समय मीडिया ‘‘स्वनियमन तकनीक’’ का अनुसरण करेगा।

मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेटट दिनेश कुमार ने कहा, ‘‘स्वनियमन नियमन का बेहतर प्रारूप है।’’

उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक समाज में प्रेस और समाचार मीडिया को ‘‘चौथा स्तंभ’’ बताया जाता है, लेकिन अगर वे अपना काम सावधानी से करने में विफल रहते हैं तो पूर्वाग्रह का खतरा पैदा हो जाता है और इसी तरह का खतरा है ‘मीडिया ट्रायल’।

खालिद की तरफ से पेश याचिका में दावा किया गया है कि मीडिया की खबरों में यह दिखाने के लिए उसके कथित खुलासा वाले बयान का हवाला दिया गया है कि उसने दंगों में अपनी संलिप्तता के बारे में स्वीकार किया है और निष्पक्ष सुनवाई के उसके अधिकार के प्रति पूर्वाग्रह है।

खालिद ने अदालत से कहा था कि कथित खुलासा वाले बयान के नीचे लिखा गया था कि आरोपी ‘इस पर दस्तखत करने से इंकार’ करता है। यह बयान उसके खिलाफ आरोपपत्र का हिस्सा बनाया गया।

अदालत ने मीडिया की खिंचाई करते हुए कहा कि संवाददाता के पास कानून की मूलभूत जानकारी होनी चाहिए क्योंकि पाठक/दर्शक समाचार के तथ्यों को परखे बगैर इसे सच मानते हैं।

अदालत ने कहा, ‘‘साथ ही आम आदमी को उपरोक्त वर्णित कानून के बारे में जानकारी नहीं हो सकती है। इसलिए यह प्रेस और मीडिया का कर्तव्य है कि समाचार चैनल पर दिखाए जाने वाले या प्रकाशित की वाली खबरों की परिस्थितियों और संबंधित तथ्यों के बारे में अपने पाठकों और दर्शकों को सूचित करे और उन्हें जानकारी दे।’’

अदालत ने कहा कि एक समाचार ‘कट्टरपंथी इस्लामी और हिंदू विरोधी दिल्ली दंगों के आरोपी उमर खालिद’ शब्द के साथ शुरू किया गया और इसमें दिल्ली दंगों को पूरी तरह हिंदू विरोधी दंगे के तौर पर पेश किया गया जबकि सभी समुदायों ने इसके दुष्परिणामों को महसूस किया।

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘तथ्यों पर विचार करते हुए कि आरोपी ने आवेदन में कोई विशेष आग्रह नहीं किया, मुझे उम्मीद है कि संवाददाता लंबित जांच या सुनवाई वाले मामलों में समाचार प्रकाशित या प्रसारित करते समय स्वनियमन तकनीक का इस्तेमाल करेंगे ताकि किसी आरोपी या किसी अन्य पक्ष के प्रति पूर्वाग्रह पैदा नहीं हो। नियमन का बेहतर प्रारूप स्वनियमन है।’’

खालिद ने आरोप लगाए थे कि खजूरी खास इलाके में दंगे से जुड़े मामले में मीडिया ने उसके खिलाफ ‘‘जानबूझकर योजना’’ बनाई और उसके खिलाफ पूर्वाग्रह युक्त विचार बनाने में ‘‘लगातार प्रयास’’ किए।

उसने आरोप लगाया कि उसके खिलाफ दायर आरोपपत्र पर अदालत द्वारा संज्ञान लिए जाने से पहले ही मीडिया को लीक कर दिया गया।

उत्तरपूर्वी दिल्ली में पिछले वर्ष 24 दिसंबर को नागरिकता कानून सीएए के समर्थकों और विरोधियों के बीच संघर्ष होने के बाद सांप्रदायिक दंगे भड़क गए जिसमें कम से कम 53 लोग मारे गए और करीब 200 जख्मी हो गए।

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