नयी दिल्ली, 16 मार्च दिल्ली की एक अदालत ने शहर के उत्तर पूर्वी हिस्सों में फरवरी 2020 में भड़के दंगों के व्यापक षडयंत्र के मामले में छात्र कार्यकर्ता गुलफिशा फातिमा को बुधवार को जमानत देने से मना कर दिया।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने मामले के एक अन्य सह-आरोपी-तसलीम अहमद की जमानत याचिका भी खारिज कर दी।
फातिमा और अहमद तथा कई अन्य लोगों के खिलाफ आतंकवाद रोधी कानून-गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया है। उनपर उत्तर पूर्वी दिल्ली के इलाकों में फरवरी 2020 में भड़के दंगों का मुख्य षडयंत्रकारी होने का आरोप है। इस हिंसा में 53 लोगों की मौत हुई थी और 700 से ज्यादा लोग जख्मी हो गये थे।
कांग्रेस की पूर्व निगम पार्षद इशरत जहां को 14 मार्च को जमानत देते हुए अदालत ने कहा था कि आरोपपत्र में विभिन्न समूहों और व्यक्तियों द्वारा एक ‘‘पूर्व नियोजित साजिश’’ का जिक्र किया गया है, जिन्होंने हिंसा भड़काने के लिए ‘‘चक्का-जाम और पूर्व-नियोजित विरोध प्रदर्शनों’’ के माध्यम से व्यवधान पैदा किया।
हालांकि, अदालत ने कहा कि आरोप पत्र या गवाहों के बयान के अनुसार, इशरत जहां वह व्यक्ति नहीं थी, जिसने ‘‘चक्का-जाम का विचार रखा’’ और न ही वह किसी भी व्हाट्सएप समूह या संगठन की सदस्य थी। इशरत जहां पर भी यूएपीए के तहत मामला दर्ज है।
उनके अलावा, कार्यकर्ता खालिद सैफी, उमर खालिद, जेएनयू छात्रा नताशा नरवाल और देवांगना कलिता, जामिया समन्वय समिति की सदस्य सफूरा जरगर, आप के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन और कई अन्य के खिलाफ भी यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया था।
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