नयी दिल्ली, चार नवंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत आरोपी व्यक्ति को यह कहते हुए जमानत दे दी कि वह प्रथम दृष्टया संतुष्ट है कि कथित पीड़िता मामले के आरोपी के साथ खुशी-खुशी रह रही थी और अपने परिवार का पालन-पोषण कर रही थी।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कथित पीड़िता के बयान पर संज्ञान लेते हुए कहा कि उसने स्वेच्छा से स्वीकार किया है कि वह अपनी मर्जी से आरोपी के साथ फरार हुई थी, उससे शादी की और तब से वह अपने दो बच्चों के साथ ‘‘शांति से रह रही है।’’
न्यायाधीश की राय थी कि आरोपी को हिरासत में रखने से महिला और बच्चे भुखमरी के शिकार हो जाएंगे। इसलिए उन्होंने निर्देश दिया कि आरोपी को 5,000 रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि की दो जमानत पर रिहा किया जाए।
न्यायालय ने कहा, ‘‘यह अदालत प्रथम दृष्टया संतुष्ट है कि याचिकाकर्ता और पीड़िता एक-दूसरे के साथ खुशी-खुशी रह रहे थे और अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे थे।’’
अदालत ने यह भी माना कि आरोपी से हिरासत में पूछताछ की अब कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आरोप पत्र दायर किया जा चुका है और सभी सबूत एकत्र कर लिये गये हैं।
महिला के पिता ने 2017 की शुरुआत में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि उसकी बेटी का अपहरण कर लिया गया। तब वह 17 साल की थी। पीड़िता का पिता दिल्ली से बाहर रह रहा है।
दिसंबर 2020 में, महिला ने अपनी मां को फोन करके कहा था कि उसकी शादी को चार साल बीत चुके हैं और तीन महीने पहले उसने एक बच्चे को जन्म दिया था। उसके बाद पुलिस को इसकी सूचना दी गई, जिसने उसे मध्य प्रदेश में पीड़िता को ढूंढ निकाला और उसे वापस दिल्ली लाया गया।
इसके बाद आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 366, 376 (विवाह और बलात्कार के लिए अपहरण), पॉक्सो अधिनियम की धारा- चार और छह (यौन संबंध बनाने) तथा बाल विवाह निरोधक कानून की धारा 10 (बाल विवाह करने) के तहत कथित अपराध के लिए दर्ज प्राथमिकी के मद्देनजर गिरफ्तार किया गया था।
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