Canada: दीर्घकालिक बीमारियों को रोकने के लिए COVID-19 महामारी सिखा सकती है हमें तीन पाठ, यहां पढ़े पूरी डिटेल्स
कोरोना वायरस (Photo Credits: PTI)

वैंकूवर: कनाडा में 44 प्रतिशत वयस्कों को हृदय रोग, मधुमेह या मानसिक विकार जैसी कम से कम एक दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्या है. इनमें से 80 प्रतिशत स्थितियों को रोका जा सकता है.हालांकि, दीर्घकालिक रोग नियंत्रण और स्वास्थ्य प्रोत्साहन को पर्याप्त रूप से गंभीरता से नहीं लिया जाता. इसकी जगह, कनाडा की स्वास्थ्य देखरेख प्रणाली गंभीर और दीर्घकालिक स्वास्थ्य स्थितियों के उपचार पर केंद्रित है. परिणामस्वरूप, दीर्घकालिक रोगों के उपचार पर हमारी स्वास्थ्य प्रणाली को सालाना 68 अरब डॉलर का खर्च वहन करना पड़ता है और स्वास्थ्य देखरेख उपलब्ध कराने वालों पर इससे अतिरिक्त भार बढ़ता है.

कोरोना वायरस महामारी ने जहां विश्व का ध्यान इस ओर केंद्रित किया है कि संक्रामक रोग को कैसे रोका जा सकता है, वहीं कोविड-19 नियंत्रण से सीखे गए कई पाठ दीर्घकालिक रोग नियंत्रण पर भी लागू किए जा सकते हैं. हमने-बतौर एक वैज्ञानिक जो स्वास्थ्य व्यवहार-परिवर्तन हस्तक्षेप को लेकर काम करता है, और एक पारिवारिक डॉक्टर जो नियंत्रात्मक दवा को तवज्जो देता है, महामारी संबंधी कई पाठों का संज्ञान लिया है जिन्हें दीर्घकालिक रोग नियंत्रण सुधार के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. यहां तीन चीजों का जिक्र है. यह भी पढ़े: Coronavirus Update: कनाडाई PM जस्टिन टड्रो ने कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच की लोगों से सतर्क रहने की अपील

असमानताओं का समाधान:

कोविड-19 संक्रमण की दर कनाडाइयों में समान नहीं है. उन क्षेत्रों में संक्रमण दर ज्यादा है जहां कम आय अर्जित करने वाले और अश्वेत लोग रहते हैं. इसी तरह, स्वास्थ्य असमानताओं का मतलब है कि नस्लभेद के शिकार और मूल निवासियों, आव्रजकों, दिव्यांगों और गरीबी से प्रभावित लोगों को दीर्घकालिक रोग होने का अधिक जोखिम है.इन समूहों की स्वास्थ्यप्रद आहार, पारिवारिक डॉक्टर, स्वास्थ्य निगरानी और स्वास्थ्य प्रोत्साहन कार्यक्रमों जैसे नियंत्रात्मक संसाधनों तक पहुंच नहीं हो पाती. इसके अतिरिक्त, गरीबी, कटु अनुभव और भेदभाव शरीर को प्रभावित कर सकते हैं जिससे दीर्घकालिक रोग होने की आशंका बढ़ जाती है.

कोविड-19 आने के बाद लंबे समय से व्याप्त स्वास्थ्य असमानताएं सामने आई हैं। प्रतिक्रिया में, हमने देखा है कि सामुदायिक समूहों, जनस्वास्थ्य एजेंसियों और सरकार ने कम आय वाले और नस्लभेद के शिकार समुदायों को नि:शुल्क मास्क, सामुदायिक जांच स्थल, टीके और अन्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए मिलकर काम किया है। अति जरूरतमंद लोगों को इस तरह की सेवाएं उपलब्ध कराना जारी रखकर दीर्घकालिक रोगों का जोखिम बढ़ाने वाली स्वास्थ्य असमानताओं को खत्म किया जा सकता है.

सभी के लिए एक ही तरह का तरीका काम नहीं करता:

भौतिक दूरी कोविड-19 का जोखिम कम कर सकती है, लेकिन यदि आप बहु-पीढ़ी घर में रहते हैं, सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करते हैं या अक्षमता के शिकार हैं और देखरेख उपलब्ध कराने वालों पर निर्भर हैं तो यह असंभव है। मास्क से लेकर भौतिक दूरी तक, भौतिक अवरोधकों तक, विभिन्न तरह के सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है जिससे कि विभिन्न परिस्थितियों में लोगों में कोविड-19 के प्रसार के जोखिम को कम किया जा सके। यहां तक कि यह तब बेहतर है जब समुदायों को इसमें शामिल किया जाए और खुद की संस्कृति के हिसाब से उचित परामर्श और संदेश विकसित करने में उन्हें सशक्त बनाया जाए.

इसी तरह दीर्घकालिक रोग नियंत्रण कार्यक्रम समुदायों की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किए जाएं. यह सर्वश्रेष्ठ होगा कि जिन समुदायों के लिए कार्यक्रम और नीतियां तैयार की जाएं, उसमें उन समुदायों की भागीदारी ली जाए। सामुदायिक भागीदारी से यह सुनिश्चित होने में मदद मिलती है कि कार्यक्रम उन समुदायों के सदस्यों की आवश्यकताओं के हिसाब से तैयार हों जो उनका इस्तेमाल करेंगे.

उदाहरण के लिए, ‘यूनिवसिर्टी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया सेंटर फॉर क्रोनिक डिसीज प्रीवेंशन एंड मैनेजमेंट’ के अनुसंधानकर्ताओं ने खासकर अक्षमता पीड़ित लोगों के लिए भौतिक दूरी का कार्यक्रम तैयार करने के वास्ते समुदाय के लगभग 300 सदस्यों के साथ काम किया। छह महीनों में, कार्यक्रम में शामिल लोगों ने अपनी साप्ताहिक भौतिक गतिविधि 363 प्रतिशत तक बढ़ाई और अपने हृदय तथा फेफड़ों के स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण सुधार किया। यदि विशिष्ट चुनौतियों और दिव्यांगता से पीड़ित लोगों की आवश्यकताओं के अनुरूप कार्यक्रम तैयार करने में समुदाय के सदस्यों ने मदद नहीं की होती तो कार्यक्रम इतना सफल नहीं होता.

हम अनुसंधान को तेजी से चलन में ला सकते हैं और लाना चाहिए:

महामारी ने प्रदर्शित किया है कि प्रयोगशाला से लेकर समुदायों और व्यक्तिगत नागरिकों तक नवोन्मेष को आगे बढ़ाने के लिए विज्ञान का त्वरित इस्तेमाल किया जा सकता .  महामारी की वजह से अनेक अनुसंधानकर्ताओं ने अपनी खुद की परियोजनाओं को रोक दिया और वायरस का पता लगाने तथा पहचान के लिए, इसके प्रसार का अध्ययन करने और टेस्ट वैक्सीन बनाने के लिए विश्व का सहयोग किया। अनुसंधान सहयोग को बढ़ाने के लिए फंडिंग आवंटित की गई. इन कार्रवाइयों ने अनुसंधान प्रक्रिया की गति तेज की. सामने आई चीजें तेजी से जनस्वास्थ्य परामर्श, चिकित्सा देखरेख और टीकों के लिए दिशा-निर्देशों में तब्दील हुईं, जिन्हें पूरी दुनिया में साझा और इस्तेमाल किया गया है.

अनुसंधान इस बारे में दिशा-निर्देशित कर सकता है कि साक्ष्य आधारित कौन सा दीर्घकालिक रोग नियंत्रण कार्यक्रम चलन में लाया जाए. हालांकि, स्वास्थ्य अनुसंधान साक्ष्य को चलन में तब्दील करने का काम प्रत्यक्ष रूप से धीमा है. एक अध्ययन में कहा गया कि किसी स्वास्थ्य अनुसंधान को चलन में लाने के लिए 17 साल का वक्त लगता है। इस विलंब का एक मुख्य कारण यह है कि जो वैज्ञानिक दीर्घकालिक रोग नियंत्रण कार्यक्रम विकसित करते हैं या इसका परीक्षण करते हैं, और जो समुदाय, स्वास्थ्य देखरेख तथा सरकारी संगठन इन कार्यक्रमों की प्रदायगी करते हैं, वे आम तौर पर मिलकर काम नहीं करते.

महामारी ने विज्ञान की संस्कृति को बदल दिया है. हमने तब लाभ देखे हैं जब वैज्ञानिक व्यवस्थागत रूप से सहयोग करते हैं, और उद्योग एवं सरकारी साझेदार नई खोजों को तुरत-फुरत चलन में लाने के लिए तैयार होते हैं. यदि हम समान तात्कालिकता के साथ दीर्घकालिक रोग नियंत्रण पर काम करें तो साक्ष्य आधारित चीजों की गति तेजी से बढ़ाई जा सकती है और इन्हें देशभर में समुदायों को उपलब्ध कराया जा सकता है.

कोविड-19 से सीखे गए पाठों को दीर्घकालिक रोग नियंत्रण के लिए लागू करने संबंधी कदमों में कनाडा के लाखों लोगों को लाभ पहुंचाने और स्वास्थ्य देखरेख पर खर्च होने वाली अरबों डॉलर की राशि को बचाने की क्षमता है.कोविड-19 रोधी प्रतिक्रिया ने साबित किया है कि केंद्रित एवं सहयोगात्मक प्रयासों के रोग नियंत्रण और उपचार में प्रभावी परिणाम निकल सकते हैं.

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