नयी दिल्ली, 22 नवंबर उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा एक अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के खिलाफ की गई प्रतिकूल टिप्पणियों को हटा दिया और कहा कि उच्च न्यायालयों को न्यायिक अधिकारियों के व्यक्तिगत आचरण पर टिप्पणी करते समय संयम बरतना चाहिए।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश सोनू अग्निहोत्री को राहत प्रदान की तथा अपीलीय अदालतों द्वारा संयम बरतने की आवश्यकता पर बल दिया।
न्यायमूर्ति ओका ने पीठ के लिए 21 पृष्ठ का फैसला लिखते हुए कहा, “न्यायाधीश भी मनुष्य हैं और उनसे गलतियां हो सकती हैं। हालांकि, उन गलतियों को व्यक्तिगत आलोचना के बिना सुधारा जाना चाहिए।”
एडीजे ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था, जिसमें उन टिप्पणियों को हटाने से इनकार कर दिया गया था, जिनमें उनके न्यायिक आचरण को “न्यायिक दुस्साहस” बताया गया था और उन्हें “सावधानी और सतर्कता” बरतने की सलाह दी गई थी।
उच्च न्यायालय की यह टिप्पणी चोरी के एक मामले में अग्रिम जमानत आवेदन पर अग्निहोत्री के आदेशों के संबंध में की गई।
न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि अपीलीय या पुनरीक्षण अदालतों के पास त्रुटियों को सुधारने का अधिकार है, लेकिन ऐसी आलोचना न्यायिक आदेशों के गुण-दोष पर केंद्रित होनी चाहिए और व्यक्तिगत निंदा से बचना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कहा, “न्यायिक अधिकारियों के व्यक्तिगत आचरण और योग्यता पर प्रतिकूल टिप्पणियों से बचा जाना चाहिए। आलोचना न्यायिक आदेशों में त्रुटियों पर केंद्रित होनी चाहिए, न कि व्यक्तिगत न्यायाधीश पर।”
यह मामला दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दो मार्च, 2023 के आदेश में एडीजे के खिलाफ दर्ज की गई टिप्पणियों से उपजा है।
उच्च न्यायालय ने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ एडीजे द्वारा की गई टिप्पणियों को हटा दिया था और भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत आरोपी विकास गुलाटी की अग्रिम जमानत याचिका पर न्यायाधीश के व्यवहार की आलोचना की थी।
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