नयी दिल्ली, 17 फरवरी दिल्ली नगर निगम के नए महापौर के चुनाव कराने में तीन बार विफल रहने के बाद शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय ने महापौर, उप महापौर और स्थायी समिति के सदस्यों के चुनाव की तारीख तय करने के लिए एमसीडी की पहली बैठक बुलाने को लेकर 24 घंटे के भीतर नोटिस जारी करने का आदेश दिया. यह भी पढ़ें: केजरीवाल ने न्यायालय के आदेश को लोकतंत्र की जीत बताया
न्यायालय ने कहा कि दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के मनोनीत सदस्य महापौर के चुनाव में मतदान नहीं कर सकते हैं. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जे बी परदीवाला की पीठ ने निर्देश दिया कि दिल्ली के महापौर का चुनाव एमसीडी की पहली बैठक में कराया जाएगा और महापौर के निर्वाचन के बाद वह उपमहापौर के चुनाव की अध्यक्षता करेंगे.
एमसीडी पिछले तीन मौकों पर हंगामे के बीच महापौर का चुनाव नहीं कर सकी क्योंकि मनोनीत सदस्यों के मतदान के अधिकार को लेकर आम आदमी पार्टी (आप) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पार्षदों के बीच टकराव हो गया. शीर्ष अदालत का आदेश सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी की महापौर पद की उम्मीदवार शैली ओबेरॉय द्वारा जल्द चुनाव कराने के लिये दायर याचिका पर आया है.
पीठ ने उपराज्यपाल की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और नगर निगम का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) संजय जैन की इस दलील को खारिज कर दिया कि महापौर चुनाव में एल्डरमैन (उपराज्यपाल द्वारा एमसीडी में नामित सदस्य) मतदान कर सकते हैं.
पीठ ने मौखिक टिप्पणी में कहा, ‘‘दिल्ली नगर निगम एक महत्वपूर्ण वैश्विक निकाय है और यह वांछनीय है कि महापौर पद का चुनाव जल्द से जल्द हो. राष्ट्रीय राजधानी के रूप में यह ठीक नहीं है कि महापौर का चुनाव रूका रहे.’’
शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 243आर का जिक्र करते हुए कहा कि संविधान ने एक प्रतिबंध लगाया है जिसके तहत मनोनीत सदस्यों को वोट देने का अधिकार नहीं है.
पीठ ने कहा, ‘‘हमने विभिन्न पक्षों के वकीलों की दलीलों को सुना। हम नगर निगम की ओर से प्रस्तुत दलीलें स्वीकार करने में असमर्थ हैं. संविधान ने मनोनीत सदस्यों को मतदान से प्रतिबंधित करने का प्रावधान किया हुआ है. मनोनीत सदस्यों के मताधिकार पर प्रतिबंध पहली बैठक पर लागू होता है.’’
पीठ ने कहा, ‘‘महापौर के चुनाव और एमसीडी की पहली बैठक के लिए नोटिस 24 घंटे के भीतर जारी किया जाएगा और नोटिस में उस तारीख का निर्धारण होगा, जब महापौर, उपमहापौर और स्थायी समिति के सदस्यों के चुनाव होंगे.’’
सुनवाई की शुरुआत में आप की महापौर पद की उम्मीदवार शैली ओबेरॉय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी ने कहा कि मनोनीत व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद 243आर के तहत मतदान नहीं कर सकते हैं. सिंघवी ने कहा, ‘‘पहले आप महापौर का चुनाव करते हैं और फिर महापौर शेष बैठक की अध्यक्षता करते हैं. चुनाव के लिए तारीख तय होनी चाहिए. जो भी हो उन्हें चुनाव कराना चाहिए.’’
एएसजी ने सिंघवी की दलील का विरोध किया और कहा कि नगर निगम की बैठक, पहली बैठक से अलग है जो महापौर के चुनाव के लिए बनाया गया एक विशेष प्रावधान है.
नगर निगम की संरचना के मुद्दे से संबंधित अनुच्छेद 243आर में कहा गया है: ‘‘खंड (2) में प्रदान किए गए को छोड़कर, निगम क्षेत्र में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों से सीधे चुनाव द्वारा चुने गए व्यक्तियों द्वारा निगम में सभी सीटों को भरा जाएगा और इस उद्देश्य के लिए प्रत्येक निगम क्षेत्र को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाएगा जिन्हें वार्ड के रूप में जाना जाएगा.’’
शीर्ष अदालत ने आठ फरवरी को ओबेरॉय की याचिका पर उपराज्यपाल कार्यालय, एमसीडी की अस्थायी पीठासीन अधिकारी सत्या शर्मा और अन्य से जवाब मांगा था.
भाजपा और आप दोनों ने एक दूसरे पर महापौर के चुनाव को रोकने का आरोप लगाया था. ‘एल्डरमैन’ की नियुक्ति और सदन में उनके मतदान के अधिकार को लेकर विवाद शुरू हुआ था. एमसीडी के 250 निर्वाचित सदस्यों में से 134 के साथ बहुमत वाली आप ने आरोप लगाया कि भाजपा मनोनीत सदस्यों को मतदान का अधिकार देकर उसके जनादेश को चुराने की कोशिश कर रही है. एमसीडी के नवनिर्वाचित सदन की पहली बैठक छह जनवरी को आप और भाजपा सदस्यों के बीच झड़पों के बीच स्थगित कर दी गई थी.
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