देश की खबरें | गोविंद पानसरे हत्याकांड की जांच की अदालती निगरानी अब जरूरी नहीं : उच्च न्यायालय

मुंबई, दो जनवरी बंबई उच्च न्यायालय ने लेखक और तर्कवादी गोविंद पानसरे की 2015 में हुई हत्या की जांच की अदालती निगरानी बृहस्पतिवार को यह कहते हुए बंद कर दी कि अब इसकी जरूरत नहीं है।

हालांकि, उच्च न्यायालय ने कोल्हापुर की सत्र अदालत को मामले की सुनवाई में तेजी लाने और दैनिक आधार पर सुनवाई करने का निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति एएस गडकरी और न्यायमूर्ति कमल खट्टा की खंडपीठ ने यह कहते हुए जांच की निगरानी बंद करने का फैसला किया कि आतंकवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) की ओर से पेश रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि मामले की सभी पहलुओं से जांच की गई है।

एटीएस की रिपोर्ट के मुताबिक, दो फरार आरोपियों की गिरफ्तारी के अलावा ऐसा कुछ भी बाकी नहीं है, जिसकी जांच किए जाने की जरूरत है।

खंडपीठ ने कहा कि इस तरह स्पष्ट है कि जांच का एकमात्र पहलू दो फरार आरोपियों का पता लगाना है।

उसने कहा, “हमारे हिसाब से सिर्फ फरार आरोपियों की गिरफ्तारी के मकसद से इस अदालत द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद-226 के तहत आगे की जांच की लगातार निगरानी किया जाना जरूरी नहीं है।”

खंडपीठ ने कहा कि आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद जांच एजेंसी इसकी रिपोर्ट सुनवाई अदालत को दे सकती है।

इसी के साथ खंडपीठ ने एक आरोपी की उच्च न्यायालय द्वारा मामले की लगातार निगरानी को चुनौती देने वाली याचिका का निपटारा कर दिया।

गोविंद पानसरे और उनकी पत्नी उमा को 15 फरवरी 2015 को सुबह की सैर के दौरान कोल्हापुर शहर में गोली मार दी गई थी। गोविंद पानसरे ने अस्पताल में पांच दिन बाद दम तोड़ दिया था।

शुरू में अपराध जांच विभाग (सीआईडी) के एक विशेष जांच दल (एसआईटी) ने इस हत्याकांड की जांच की थी, लेकिन बाद में 2022 में यह मामला एटीएस को सौंप दिया गया था।

उच्च न्यायालय 2016 से मामले की जांच की निगरानी कर रहा है। जांच एजेंसियां ​​नियमित रूप से जांच में प्रगति के सिलसिले में अपनी रिपोर्ट पेश कर रही हैं।

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