नयी दिल्ली, दो जनवरी दिल्ली उच्च न्यायालय ने यहां जिला अदालतों में महिला शौचालयों की “चिंताजनक” स्थिति पर संज्ञान लेते हुए प्राधिकारियों को आदेश दिया है कि वे पुरुषों और दिव्यांग व्यक्तियों के शौचालयों सहित ऐसी सभी सुविधाओं में स्वच्छता और रखरखाव का एक समान मानक सुनिश्चित करें।
न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने दिल्ली की सभी जिला अदालतों में महिला शौचालयों की स्थिति के संबंध में एक रिपोर्ट का संज्ञान लिया और कहा कि इन सुविधाओं के रखरखाव में बरती गई लापरवाही को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता तथा स्वच्छता उत्पादों की कमी और अवसंरचना संबंधी कमियों पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
न्यायमूर्ति नरूला ने सभी जिला अदालतों के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीशों को रिपोर्ट की समीक्षा करने, सुधारात्मक उपायों की पहचान करने, उनका कार्यान्वयन सुनिश्चित करने तथा प्रगति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया।
अदालत ने कहा कि रिपोर्ट के अनुसार वकीलों के चैंबर खंड के शौचालयों की स्थिति बदतर है। इसने सभी जिला न्यायालयों के बार एसोसिएशनों को चैंबर खंड के भीतर शौचालयों के रखरखाव को सुनिश्चित करने और अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने को भी कहा।
अदालत आयुक्त द्वारा दाखिल रिपोर्ट में बताया गया कि वकीलों के चैंबर खंड में अधिकांश महिला शौचालयों में पर्याप्त बुनियादी ढांचे का अभाव है, जिसमें उचित प्रकाश व्यवस्था, हवा के प्रवाह, साबुन और कार्यात्मक स्वच्छता सुविधाएं शामिल हैं। सफाई कर्मचारियों की अपर्याप्त संख्या के कारण नियमित रखरखाव और सफाई नहीं होती है।
इसमें आगे कहा गया कि साकेत अदालतों में भी जलापूर्ति की समस्या देखी गई तथा कड़कड़डूमा में स्वच्छता एवं सफाई कर्मचारियों की भारी कमी थी।
अदालत ने लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) को संबंधित निविदाओं के अनुसार शौचालयों के निर्माण और मरम्मत का काम शुरू करने का निर्देश दिया और सभी अदालत परिसरों के मुख्य अभियंताओं को संबंधित प्रमुख जिला एवं सत्र न्यायाधीशों के साथ निकट समन्वय स्थापित करने को कहा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी शौचालयों में पानी की निर्बाध आपूर्ति हो।
यह आदेश एक महिला वकील की याचिका पर पारित किया गया, जिसमें साकेत जिला न्यायालय में वकीलों के चैंबर खंड में शौचालय सुविधाओं की दयनीय और अस्वास्थ्यकर स्थिति को उजागर किया गया था।
मामले की अगली सुनवाई फरवरी में होगी।
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