देश की खबरें | न्यायिक समीक्षा की शक्तियों के तहत कॉलेजियम को फैसले पर पुनर्विचार के लिये नहीं कह सकते : न्यायालय

नयी दिल्ली, 10 फरवरी उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि वकीलों, वादकारियों और जनता द्वारा एक न्यायाधीश को हर रोज “जज” (आंका) किया जाता है, क्योंकि अदालतें एक खुला मंच हैं।

न्यायालय ने यह भी कहा कि वह न्यायिक समीक्षा के अधिकार का प्रयोग करते हुए सिफारिशों को रद्द नहीं कर सकता और न ही न्यायाधीशों की नियुक्ति के फैसले पर पुनर्विचार के लिये कॉलेजियम से कह सकता है।

शीष्र् अदालत ने मद्रास उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने से लक्ष्मण चंद्रा विक्टोरिया गौरी को रोकने संबंधी दो याचिकाओं पर सात फरवरी को विचार करने से इनकार की वजह शुक्रवार को बताई।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह स्वीकार किया गया कि राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले कई व्यक्तियों को उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के रूप में पदोन्नत किया गया है, और “यह अपने आप में, हालांकि एक प्रासंगिक विचार है, अन्यथा उपयुक्त व्यक्ति की नियुक्ति के लिए एक पूर्ण प्रतिबंध नहीं है।”

शीर्ष अदालत ने कहा कि इसी तरह, ऐसे मामले सामने आए हैं जहां पदोन्नति के लिए अनुशंसित लोगों ने आपत्ति व्यक्त की है या यहां तक कि नीतियों या कार्यों की आलोचना की है, लेकिन इसे उन्हें अनुपयुक्त मानने का आधार के तौर पर नहीं देखा गया है।

पीठ ने कहा, “यह बिना कहे माना जाता है कि न्यायाधीश के आचरण और उसके निर्णयों को स्वतंत्रता, लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों के पालन को प्रतिबिंबित और प्रदर्शित करने वाला होना चाहिए।” पीठ ने कहा कि यह आवश्यक है, क्योंकि न्यायपालिका लोकतंत्र की रक्षा, मजबूती और मानवाधिकारों और कानून के शासन को बनाए रखने में केंद्रीय भूमिका रखती है।

शीर्ष अदालत के पिछले कई फैसलों का जिक्र करते हुए, जिसमें नौ न्यायाधीशों की पीठ के दो फैसले भी शामिल हैं। पीठ ने कहा, “यह माना जाता है कि न्यायिक समीक्षा तब होती है, जब पात्रता की कमी या 'प्रभावी परामर्श की कमी' होती है। न्यायिक समीक्षा परामर्श की 'सामग्री' पर आधारित नहीं होती है।”

पीठ ने कहा, “हमारी स्पष्ट राय है कि न्यायिक समीक्षा की शक्ति का प्रयोग करते हुए यह न्यायालय सिफारिश को रद्द करने के लिए उत्प्रेषण रिट जारी नहीं कर सकता है, या सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए परमादेश जारी नहीं कर सकता है, क्योंकि यह ऊपर संदर्भित इस न्यायालय के पहले के निर्णयों के विपरीत होगा, जो हम पर बाध्यकारी हैं।”

पीठ ने कहा, “ऐसा करना घोषित कानून का उल्लंघन होगा, क्योंकि यह कॉलेजियम के निर्णय का मूल्यांकन और प्रतिस्थापन उपयुक्तता और व्यक्ति की योग्यता के बजाय व्यक्तिगत या निजी राय के साथ होगा।”

शीर्ष अदालत ने कहा कि शपथ लेने पर व्यक्ति संविधान और कानूनों को बनाए रखने के लिए न्यायाधीश के रूप में काम करने की प्रतिज्ञा करता है।

उच्चतम न्यायालय में दो याचिकाएं दायर करके अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में गौरी की नियुक्ति का विरोध किया गया था। इनमें से एक याचिका मद्रास उच्च न्यायालय के तीन वकीलों की ओर से दायर की गयी थी।

शीर्ष अदालत ने सात फरवरी को गौरी की नियुक्ति के खिलाफ याचिकाएं खारिज कर दी थी, उसके चंद मिनट बाद ही उन्हें मद्रास उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश टी राजा द्वारा एक अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पद की शपथ दिलाई गई थी।

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