नयी दिल्ली, चार दिसंबर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने बुधवार को कहा कि जवाहरलाल नेहरू के आलोचक और प्रशंसक दोनों ही उनके प्रभाव में हैं। उन्होंने कहा कि 2014 के बाद से कहानी यह है कि देश के पहले प्रधानमंत्री की अधिकतम आलोचना के माध्यम से शासन चल रहा है।
कांग्रेस महासचिव ने लेखक आदित्य मुखर्जी की किताब ‘नेहरूज इंडिया’ के विमोचन के अवसर पर कहा कि पुस्तक की सबसे बड़ी सीख यह है कि ‘‘न केवल भारत के विचार की रक्षा की जानी चाहिए, बल्कि नेहरू के विचार की भी रक्षा की जानी चाहिए।’’
राज्यसभा सदस्य रमेश ने कहा, ‘‘...इसकी पुराने और नए आलोचकों से रक्षा की जानी चाहिए और इसे बदलते भारत के लिए पुनर्व्याख्यायित किया जाना चाहिए। मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि हम सभी नेहरू की छाया में हैं। हममें से कई लोगों ने नेहरू को आत्मसात किया है और हममें से कई लोग नेहरू का विरोध करते हैं। यहां तक कि जो लोग नेहरू का विरोध करते हैं, वे भी नेहरू की छाया से दूर नहीं भाग सकते।’’
पेंगुइन द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक नेहरू की इतिहास और भारत के सांस्कृतिक अतीत की समझ पर केंद्रित है, साथ ही सांप्रदायिकता की उनकी समझ और धर्मनिरपेक्षता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर भी प्रकाश डालती है।
रमेश ने बुधवार को राज्यसभा में पारित बॉयलर्स विधेयक, 2024 का उदाहरण देते हुए कहा कि कई मायनों में, ‘‘2014 के बाद की कहानी नेहरू की अधिकतम आलोचना के माध्यम से शासन की है’’।
रमेश ने दावा किया, ‘‘वास्तव में, आज मैं संसद से आ रहा हूं, जहां उन्होंने बॉयलर्स विधेयक नामक एक विधेयक पारित किया है। आप जानते हैं, यह कारखानों में भाप उत्पन्न करने वाले बॉयलरों को विनियमित करने वाला विधेयक है और इस बहस में नेहरू का भी जिक्र था। मुझे आश्चर्य हुआ कि मंत्री किसी तरह इस आधार पर विधेयक को उचित ठहराएंगे कि नेहरू के समय में ऐसा नहीं किया गया था। यह नेहरूवादी गलती थी।’’
चीन द्वारा 1962 में किये गए आक्रमण को याद करते हुए कांग्रेस नेता ने कहा कि जब अटल बिहारी वाजपेयी सहित सात सांसदों ने स्थिति पर चर्चा करने के लिए कहा तो नेहरू ने संसद का सत्र तय समय से पहले बुला लिया था।
उन्होंने कहा कि विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों ने नेहरू पर ‘‘तीखा हमला’’ किया और रक्षा मंत्री ने चीन का आक्रमण जारी रहने के दौरान ही इस्तीफा दे दिया।
तत्कालीन रक्षा मंत्री वी.के. कृष्ण मेनन की युद्ध से निपटने के तरीके को लेकर आलोचना हुई थी। उन्होंने युद्ध शुरू होने के लगभग 10 दिन बाद 31 अक्टूबर 1962 को इस्तीफा दे दिया था।
रमेश ने कहा, ‘‘और आज, हमारे सामने एक असाधारण दृश्य था, जब विदेश मंत्री ने चीन के साथ सीमा की स्थिति पर आठ पन्नों का बयान पढ़ा, जिसमें किसी भी राजनीतिक दल को एक भी सवाल उठाने या मंत्री से स्पष्टीकरण मांगने की अनुमति नहीं दी गई। जब संबंधित लोगों को इसके बारे में याद दिलाया गया, तो उनका जवाब बस इतना ही था कि ‘वह नेहरू का जमाना था।’ यहां तक कि उन्हें वहां भी नेहरू की याद दिलानी पड़ी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हम समूचे दक्षिणपंथी तंत्र को नेहरू विरोधी के रूप में चित्रित करते हैं, लेकिन मेरा अनुभव है कि दक्षिणपंथी तंत्र का एक बड़ा हिस्सा वास्तव में इसके बारे में दुविधा में है। यदि आप उन्हें थोड़ा कुरेदें, तो वे कहेंगे, ‘‘हां, यह सही है’’। और वे कहेंगे, ‘‘हां, उस समय इसकी मांग की गई थी’’।
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