मात्र तीन महीने पहले फ्रांस के पीएम बने मिशेल बार्निए की सरकार गिरने की कगार पर है. संसद भंग कर फिर चुनाव कराने की नौबत आ सकती है. ऐसा क्या हुआ कि लेफ्ट अविश्वास प्रस्ताव लाया और धुर-दक्षिणपंथी धड़ा इसे समर्थन दे रहा है?फ्रांस की संसद में 4 दिसंबर की शाम पीएम मिशेल बार्निए के लिए निर्णायक साबित होगी. उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान होना है. पहले ही अल्पमत में आ चुके पीएम बार्निए के पास पर्याप्त संख्याबल नहीं है. वामपंथी धड़ा और धुर-दक्षिणपंथी पक्ष, दोनों ही बार्निए के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन कर रहे हैं.
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अगर बार्निए बहुमत हासिल नहीं कर पाए, तो एक अनचाहा कीर्तिमान बनाएंगे. वो आधुनिक फ्रांस के इतिहास में सबसे कम वक्त तक पद पर रहे प्रधानमंत्री बन जाएंगे. फ्रेंच मीडिया के मुताबिक, इससे पहले यह रिकॉर्ड बेरनार्ड केजनोव के पास था, जो कार्यकाल के बस पांच महीने पूरे कर पाए थे.
अविश्वास प्रस्ताव की नौबत कैसे आई?
बार्निए की सरकार गिर सकती है, इसका संकेत पिछले हफ्ते से ही मिलने लगा था. पीएम, साल 2025 के लिए प्रस्तावित सामाजिक सुरक्षा बजट का विधेयक संसद में पारित कराना चाहते थे.
इस विधेयक के पास ना होने की स्थिति में लोगों पर क्या असर पड़ सकता है, इन आशंकाओं पर बात करते हुए फ्रांस की पूर्व प्रधानमंत्री एलिजाबेथ बोर्न (मई 2022 से जनवरी 2024) ने 24 नवंबर को टीवी पर एक कार्यक्रम में कहा, "अगर सामाजिक सुरक्षा बजट को सेंसर किया जाता है, तो इसका मतलब होगा कि 1 जनवरी 2025 से आपका कैट्ट विटाल कार्ड (सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा) काम नहीं करेगा. पेंशनों का भुगतान नहीं किया जा सकेगा." बोर्न, राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों की रेनेसां पार्टी से हैं.
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बजट पर 2 दिसंबर को संसद में चर्चा होनी थी. समर्थन हासिल करने की मंशा से बार्निए ने कुछ कदम पीछे खींचे. मसलन, पिछले हफ्ते उन्होंने बिजली पर टैक्स बढ़ाने की योजना रद्द कर दी. इसके बावजूद सहमति नहीं बनी.
बार्निए ने कहा कि फ्रांस को सामाजिक सुरक्षा योजनाएं जारी रखने के लिए वित्तीय योजना की जरूरत है और इसे हासिल करने के लिए उन्होंने सभी राजनीतिक समूहों से बातचीत करने की काफी कोशिश की. आखिरकार, विधेयक पास कराने के लिए बार्निए ने एक जोखिमभरा विकल्प चुना. उन्होंने संविधान के एक विशेष प्रावधान का इस्तेमाल किया, जिसमें मतदान की जरूरत नहीं पड़ती. यह प्रावधान है: अनुच्छेद 49.3.
क्या कहता है फ्रेंच संविधान के अनुच्छेद 49 का पैराग्राफ तीन?
फ्रांसीसी संविधान के आर्टिकल 49 का पैराग्राफ तीन सरकार को एक विशेष अधिकार देता है. इसका इस्तेमाल कर सरकार फ्रेंच संसद के निचले सदन 'नेशनल असेंबली' में बिना मतदान के विधेयक पास करवा सकती है.
ये अनुच्छेद संविधान के "टाइटल पांच" का हिस्सा है, जिसका शीर्षक है, "संसद और सरकार के संबंधों पर." इसके अनुसार "प्रधानमंत्री, मंत्रियों के परिषद से विचार-विमर्श के बाद, किसी वित्त विधेयक या सामाजिक सुरक्षा को फंड देने से जुड़े विधेयक को पास कराने के लिए" नेशनल असेंबली के समक्ष 'वोट ऑफ कॉन्फिडेंस' का विषय ला सकता है.
ऐसी स्थिति में विधेयक को पास माना जाएगा, बशर्ते अगले 24 घंटे में अविश्वास प्रस्ताव ना लाया जाए. अगर प्रस्ताव लाया गया, तो 48 घंटे की मियाद के भीतर उसपर मतदान कराना होगा.
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यानी अगर प्रधानमंत्री इस प्रावधान का इस्तेमाल करते हुए बिना मतदान के विधेयक पास करवाने की कोशिश करते हैं, तो बिल को पास होने से रोकने का एकमात्र विकल्प है सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाना. एक ओर जहां यह प्रावधान प्रधानमंत्री को बिना मतदान के बिल पास कराने की गुंजाइश देता है, वहीं साथ-ही-साथ बिल का विरोध कर रहे लोगों के पास सरकार गिराने की राह बचती है.
इसके आगे की राह संख्याबल से तय होती है. अगर अविश्वास प्रस्ताव को बहुमत मिला, तो विधेयक खारिज हो जाएगा और सरकार गिर जाएगी.
फ्रेंच अखबार 'ल मोंद' के अनुसार, इस स्थिति में अगला कदम होगा कि राष्ट्रपति नेशनल असेंबली को भंग करें और मध्यावधि चुनाव करवाएं. अगर अविश्वास प्रस्ताव सफल नहीं होता, तो सरकार जीत जाएगी और विधेयक पारित हो जाएगा. हालांकि, बार्निए के मामले में इस दूसरी सूरत की संभावना बहुत कम है.
कौन लाया है अविश्वास प्रस्ताव?
'नो-कॉन्फिडेंस मोशन' न्यू पॉपुलर फ्रंट की तरफ से आया है. यह चार लेफ्ट-ग्रीन पार्टियों का गठबंधन है. मरीन ल पेन की धुर-दक्षिणपंथी नेशनल रैली (आरएन) ने इस प्रस्ताव को समर्थन देने की घोषणा की है. 577 सीटों की नेशनल असेंबली में न्यू पॉपुलर फ्रंट के पास 188 सीटें हैं. आरएन के पास 142 और माक्रों के इन्सैंबल गठबंधन की 161 सीटें हैं. यानी, पॉपुलर फ्रंट और आरएन को मिलाकर 330 का आंकड़ा निकलता है, जो कि बहुमत हासिल करने के लिए जरूरी 289 की संख्या से कहीं अधिक है.
हालांकि, बार्निए अब भी किसी करिश्मे की उम्मीद बांध रहे हैं. 'पॉलिटिको' की एक खबर के मुताबिक, 3 दिसंबर को भी बार्निए सांसदों का समर्थन जुटाने की कोशिश करते रहे. टीवी पर दिए गए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "ये पल गंभीर और मुश्किल है, लेकिन चुनौती नामुमकिन नहीं है." बहुमत साबित ना कर पाने की आशंका पर उन्होंने कहा, "अगर अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो सबकुछ और ज्यादा मुश्किल, कहीं ज्यादा गंभीर हो जाएगा."
सरकार गिरी, तो क्या माक्रों को फायदा हो सकता है?
सऊदी अरब की यात्रा पर गए राष्ट्रपति माक्रों को भी उम्मीद है कि बार्निए सरकार नहीं गिरेगी. फ्रेंच वेबसाइट 'पॉलिटिक' के मुताबिक, सऊदी अरब में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें "लोगों की एकजुटता" पर यकीन है. माक्रों ने कहा, "मेरी प्राथमिकता है स्थिरता."
माक्रों ने आरएन के रुख की आलोचना की और उसे "असहनीय रूप से स्वार्थी" बताया. माक्रों ने कहा कि अगर आरएन, वाम धड़े द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में वोट देती है, तो वो "मतदाताओं का अपमान करेगी."
संसद के घटनाक्रम का हासिल फ्रांस में राजनीतिक स्थिरता का भविष्य तय करेगा. यूरोपीय संसद के चुनाव में बेहद खराब प्रदर्शन के बाद राष्ट्रपति माक्रों ने जून में औचक ही संसद भंग कर दी और समय पूर्व चुनाव करवाने की घोषणा की. इस दांव से माक्रों को जिस जनाधार की उम्मीद थी, वो हासिल नहीं हुआ.
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किसी पार्टी या गठबंधन को बहुमत नहीं मिला. ना ही माक्रों का धड़ा सबसे बड़ी पार्टी बन सका. न्यू पॉपुलर फ्रंट को सबसे ज्यादा सीटें मिलीं, लेकिन वो सरकार बनाने के लिए नाकाफी थी. माक्रों महीनों तक प्रधानमंत्री की नियुक्ति टालते रहे. आखिरकार सितंबर में जब उन्होंने बार्निए को नियुक्त किया, तो लेफ्ट खेमा साथ नहीं आया. और, इस तरह धुर-दक्षिणपंथी धड़े के सहयोग पर टिकी बार्निए सरकार की शुरुआत ही कमजोर हुई.
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हालांकि, कई विश्लेषकों का यह भी अनुमान है कि सरकार गिरने की स्थिति में माक्रों को तात्कालिक फायदा हो सकता है. वो फ्रांसीसी जनता को ये संदेश देने की कोशिश करेंगे कि आरएन ने स्थिरता की जगह "मौकापरस्त राजनीति" को चुना. इससे ल पेन की राजनीति और छवि थोड़ी रगड़ खा सकती है.