देश की खबरें | अक्षय ऊर्जा विकास और संरक्षण का संतुलन जरूरी: आईबीसीए महानिदेशक

नयी दिल्ली, 11 सितंबर ‘इंटरनेशनल बिग कैट अलायंस’ (आईबीसीए) के महानिदेशक एस. पी. यादव ने कहा है कि भारत को आर्थिक विकास और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अक्षय ऊर्जा की तत्काल आवश्यकता है, लेकिन प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक उपयोग की कीमत पर विकास नहीं होना चाहिए।

भारत में ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ और ‘प्रोजेक्ट लॉयन’ जैसे अनेक पर्यावरण संरक्षण प्रयासों का नेतृत्व करने वाले यादव ने ‘पीटीआई’ के संपादकों के साथ बातचीत में ऐसे मॉडल तलाशने की आवश्यकता पर बल दिया, जो ऊर्जा की जरूरतों को वन्यजीव संरक्षण के साथ संतुलित करते हैं।

संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि खाड़ी देश कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से सफलतापूर्वक होबारा बस्टर्ड का प्रजनन करता है और उन्हें जंगल में छोड़ देता है तथा इसके लिए कोई ‘बर्ड डायवर्टर’ नहीं लगाए गए या जमीन के अंदर बिजली की लाइन नहीं बिछाई गईं। ‘बर्ड डायवर्टर’ पक्षियों को बिजली के तारों से दूर रहने का संकेत देने वाले उपकरण हैं।

अक्षय ऊर्जा के उपयोग और वन्यजीव संरक्षण के बीच गतिरोध के बारे में पूछे जाने पर यादव ने कहा, ‘‘ऊर्जा सुरक्षा महत्वपूर्ण है और जलवायु परिवर्तन पर ध्यान देने की जरूरत है। हमें सौर ऊर्जा, विकास, रोजगार और वृद्धि की आवश्यकता है, लेकिन विकास और प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के बीच संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है।’’

इस वर्ष अप्रैल में उच्चतम न्यायालय ने अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं की वजह से डाली जाने वाली ओवरहेड बिजली लाइन के ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ पर पड़ने वाले प्रभाव पर चिंताओं से उत्पन्न एक मामले की सुनवाई करते हुए जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के विरुद्ध अधिकार को एक अलग मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी।

यह मामला जलवायु कार्रवाई को अन्य संरक्षण उपायों के साथ संतुलित करने पर एक व्यापक चर्चा में बदल गया था, जिसमें सरकार ने तर्क दिया था कि भारत की जलवायु परिवर्तन प्रतिक्रिया के लिए बिजली पारेषण लाइन आवश्यक हैं।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के पूर्व सदस्य सचिव यादव ने कहा, ‘‘मैंने अबू धाबी में होबारा बस्टर्ड प्रजनन केंद्र का दौरा किया है, जहां कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से प्रतिवर्ष 40,000 चूजों का प्रजनन किया जाता है और उन्हें जंगल में छोड़ दिया जाता है।’’

उन्होंने सुझाव दिया कि भारत भी इसी तरह की रणनीति अपना सकता है।

यादव ने कहा, ‘‘वे किसी भी पक्षी डायवर्टर का उपयोग नहीं कर रहे हैं या भूमिगत केबल नहीं बिछा रहे हैं (बस्टर्ड को टकराने से बचाने के लिए)। फिर भी, वे बस्टर्ड संरक्षण में सफल हैं। हमें उसी मॉडल का पालन क्यों नहीं करना चाहिए?’’

राजस्थान और गुजरात, सौर और पवन ऊर्जा विकास के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं और दुनिया के सबसे लुप्तप्राय पक्षियों में से एक ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ भी यहां प्रमुखता से पाए जाते हैं।

पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार, भारत में केवल 150 बस्टर्ड ही बचे हैं।

राजस्थान में बड़ी सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता (6,464 गीगावॉट) है, जबकि गुजरात में विशाल पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता (212 गीगावॉट) है।

प्रजातियों के संरक्षण के लिए, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के वन विभागों द्वारा एक सहयोगात्मक प्रजनन कार्यक्रम शुरू किया गया है, जिसे भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा समर्थन दिया गया है।

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार, वन विभागों और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के परामर्श से ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और लेसर फ्लोरिकन के संरक्षण प्रजनन केंद्रों के लिए स्थलों की पहचान की गई है।

राजस्थान में जैसलमेर के रेगिस्तानी इलाके में भी एक प्रजनन केंद्र स्थापित किया गया है।

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