नयी दिल्ली, 11 जून मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने बृहस्पतिवार को कहा कि बैंकिंग क्षेत्र में अवरुद्ध ऋण (एनपीए) के संकट को दूर करने के लिये एनपीए जमा करने वाले बैड बैंक का गठन कोई कारगर रास्ता शायद ही दे सके।
सुब्रमण्यन ने कहा कि जब कोई बैंक एनपीए बेचता है, तो उसे नुकसान (हेयरकट) उठाना पड़ता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जब 100 रुपये एनपीए हो जाते हैं, तो इसके बदले जिस वास्तविक राशि की उम्मीद की जा सकती है, वह 100 से कम होती है।
उन्होंने कहा, ‘‘इसलिये जब बैंक को उस ऋण को एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी को या किसी नयी संस्था को बेचना होता है, तो उस स्थिति में उसे हेयरकट लेना पड़ता है। जब वह हेयरकट लेता है, तो यह लाभ एवं हानि के खाते को प्रभावित करेगा। यह ऋणों की बिक्री को प्रभावित करने वाले प्रमुख पहलुओं में से एक है। अत: जब तक इस विशेष पहलू को सही नहीं किया जाता है, एक नयी संरचना का निर्माण समस्या का हल निकालने में खास प्रभावी नहीं हो सकता है।’’
अभी भारतीय रिजर्व बैंक के मानदंडों के अनुसार, बैंक एआरसी को अपने खराब ऋण बेचते हैं। सुब्रमण्यन ने कहा कि अभी 28 एआरसी हैं और उनका काम बैंकों से खराब ऋण लेना और बैड बैंक के रूप में कार्य करना है।
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इस महीने की शुरुआत में वित्तीय क्षेत्र के नियामक एफएसडीसी की बैठक में भी बैड बैंक के विचार पर चर्चा हुई थी।
बैंकिंग क्षेत्र के उद्यमी उदय कोटक ने इस सप्ताह की शुरुआत में ट्वीट कर कहा था कि बढ़ते एनपीए की समस्या से निपटने के लिये बैड बैंक की स्थापना एक अच्छा विचार नहीं है। जब तक पारदर्शिता और वसूली दर जैसे कुछ प्रमुख पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया जाता है, तब तक वांछित परिणाम नहीं मिलेंगे।
सरकार ने 2016 में एक बैड बैंक स्थापित करने का विचार सामने रखा था। यहां तक कि 2017 की आर्थिक समीक्षा में भी इस तरह का प्रस्ताव किया गया था।
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