देश की खबरें | जीवन को लेकर आयुर्वेद, योग और नाथपंथ की मान्यता एक : आदित्यनाथ

गोरखपुर, 13 जनवरी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को आयुर्वेद, योग और नाथपंथ के गहरे संबंध पर बल देते हुए कहा कि तीनों में एक समान विश्वास प्रणाली है, जो आध्यात्मिक विकास के लिए स्वस्थ शरीर के महत्व पर केंद्रित है।

एक बयान के मुताबिक मुख्यमंत्री सोमवार को महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय, आरोग्यधाम के ‘गुरु गोरक्षनाथ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आयुर्वेद कॉलेज)’ की तरफ से आयुर्वेद, योग और नाथपंथ के पारस्परिक अंतरसंबंधों पर आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन विशेष व्याख्यान दे रहे थे। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ इस विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी हैं।

उन्होंने कहा कि भारतीय मनीषा मानती है कि ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ अर्थात धर्म की साधना के लिए शरीर ही माध्यम है।

उन्होंने कहा कि धर्म के सभी साधन स्वस्थ शरीर से ही संभव हो सकते हैं तथा धर्मपरक जीवन से ही अर्थ, कामनाओं की सिद्धि और फिर मोक्ष प्राप्ति संभव है।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आयुर्वेद, योग और नाथपंथ के सिद्धांत आध्यात्मिक उन्नति के लिए अनुशासित और स्वस्थ जीवन शैली को बनाए रखने के महत्व पर जोर देते हैं।

योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘‘ शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आयुर्वेद, योग और नाथपंथ, तीनों नियम-संयम पर जोर देते हैं। आयुर्वेद में जहां व्याधियों को दूर करने के लिए औषधियों और पंचकर्म की पद्धतियां हैं, वहीं योग में भी हठयोग, राजयोग, ज्ञानयोग, लययोग और क्रियायोग की विशिष्ट विधियां हैं।

उन्होंने कहा कि इसी क्रम में शरीर की आरोग्यता के लिए नाथपंथ का हठयोगी योग को खट्कर्म से जोड़ता है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि आयुर्वेद, योग और नाथपंथ तीनों ही व्यवहारिकता के स्तर पर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं तथ तीनों ने ही शरीर को पंचभौतिक माना है।

उन्होंने कहा कि आयुर्वेद, योग और नाथपंथ की पद्धतियां, तीनों ही वात, पित्त और कफ से जनित रोगों के निदान के लिए एक मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं और वह मार्ग है नियम-संयम।

मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने कहा ,‘‘ नियम-संयम का जीवन में बड़ा महत्व है। योग ने उसी को जोड़ा है। अंतःकरण की शुद्धि नियम-संयम से ही हो सकती है। नाथ योगियों ने क्रियात्मक योग के माध्यम से नियम संयम की विशिष्ट विधा दी है। कौन सी क्रिया का लाभ कब प्राप्त होगा, नाथ योगियों ने इसे विस्तार से समझाया है।’’

उन्होंने कहा कि योग के कई आसनों के नाम नाथ योगियों के नाम पर हैं जैसे गोरखआसन, मत्स्येंद्रआसान, गोमुखआसन आदि।

उन्होंने कहा कि नाथ परंपरा में हर नाथ योगी जनेऊ धारण करता है जो उसे शरीर की नाड़ियों से अवगत कराता है।

उन्होंने कहा कि जिस प्रकार जीवन के लिए प्राण आवश्यक है उसी प्रकार मन की वृत्तियों और शरीर के बीच तारतम्य स्थापित करने के लिए प्राणायाम भी आवश्यक है।

योगी आदित्यनाथ ने कहा,‘‘अपने प्राचीन ज्ञान के धरोहरों से हमने दूरी बनानी प्रारंभ की तो एक समय ऐसा भी आ गया कि भारतीय हीन भावना का विषय बन गए। पर, आज यह सुखद है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन में भारत की प्राचीन ज्ञान धारा, आयुर्वेद और योग को फिर से प्राचीन गौरव प्राप्त हो रहा है।’’

स्वागत संबोधन महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सुरिंदर सिंह और आभार ज्ञापन आयुर्वेद कॉलेज के प्राचार्य डॉ. गिरिधर वेदांतम ने किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री के सलाहकार अवनीश अवस्थी, मुख्यमंत्री के सलाहकार एवं भारत सरकार के पूर्व औषधि महानियंत्रक डॉ. जीएन सिंह, आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एके सिंह, बनारस हिन्दू विश्वविदयालय के वरिष्ठ आचार्य डॉ. के. रामचंद्र रेड्डी,इजराइल के आयुर्वेद औषधि विशेषज्ञ वैद्य गुई लेविन, श्रीलंका से आए आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. टी. वीररत्ना, महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. प्रदीप कुमार राव सहित संगोष्ठी में देश और दुनिया से प्रतिभागी, शिक्षक और विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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