महिला की परिभाषा पर ऑस्ट्रेलिया की अदालत का बड़ा फैसला
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

ट्रांसजेंडर महिला को महिला माना जाए या नहीं, इस सवाल पर ऑस्ट्रेलिया की अदालत ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है.एक ऑस्ट्रेलियाई अदालत के एक फैसले से महिला अधिकारों पर नई बहस छिड़ गई है. फेडरल कोर्ट ने बीते शुक्रवार को फैसला सुनाया कि एक ट्रांसजेंडर महिला को सिर्फ महिलाओं के लिए बनाए गए सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म "गिगल फॉर गर्ल्स" से हटाना भेदभाव है.

यह फैसला देश में लैंगिक पहचान से संबंधित मामलों के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है. अदालत ने कहा कि कानूनन किसी व्यक्ति का लिंग सिर्फ महिला या पुरुष नहीं हो सकता.

2022 में न्यू साउथ वेल्स राज्य में रहने वालीं रॉक्सैन टिकल ने इस ऐप और इसकी संस्थापक सैली ग्रोवर के खिलाफ अवैध लैंगिक भेदभाव का मुकदमा दायर किया था. टिकल ने आरोप लगाया कि ग्रोवर ने उनकी तस्वीर देखकर उन्हें "पुरुष" मानते हुए उनका अकाउंट बंद कर दिया था.

ऑस्ट्रेलिया की दूसरी सबसे बड़ी अदालत, फेडरल कोर्ट ने "गिगल फॉर गर्ल्स" को टिकल को 10,000 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (लगभग साढ़े पांच लाख रुपये) का हर्जाना और कानूनी खर्च देने का आदेश दिया. हालांकि कंपनी से लिखित माफी मांगने का टिकल का अनुरोध अस्वीकार कर दिया गया.

जज रॉबर्ट ब्रॉमविच ने कहा, "टिकल का सीधे लैंगिक भेदभाव का दावा विफल रहा, लेकिन उनके साथ अप्रत्यक्ष लैंगिक भेदभाव का दावा सही है."

यह मामला 2013 में सेक्स डिस्क्रिमिनेशन एक्ट में किए गए बदलावों के बाद लैंगिक भेदभाव के नए नियमों के आधार पर सुनाया गया पहला फैसला है.

ऐतिहासिक फैसला

मोनाश यूनिवर्सिटी के कानून विभाग की प्रोफेसर पाउला गेरबर ने कहा, "यह फैसला ऑस्ट्रेलिया की ट्रांसजेंडर महिलाओं के लिए एक बड़ी जीत है." उन्होंने कहा, "यह मामला सभी ऑस्ट्रेलियाई लोगों को स्पष्ट संदेश देता है कि ट्रांसजेंडर महिलाओं के साथ अन्य महिलाओं से अलग व्यवहार करना गैरकानूनी है. कोई व्यक्ति महिला है या नहीं, यह फैसला केवल उसके बाहरी रूप के आधार पर नहीं किया जा सकता."

‘गिगल फॉर गर्ल्स' सिर्फ महिलाओं के लिए बनाया गया एक सोशल मीडिया एप था. उसे महिलाओं के लिए एक "सुरक्षित जगह" के रूप में प्रचारित किया गया था, जहां महिलाएं अपने अनुभव साझा कर सकती थीं. 2021 में इसके लगभग 20,000 यूजर्स थे. कोर्ट में पेश दस्तावेजों के अनुसार, 2022 में इसे बंद कर दिया गया था. हालांकि ग्रोवर ने कहा कि इसे जल्द ही फिर से लॉन्च करने की योजना है.

जस्टिस ब्रॉमविच ने कहा कि "गिगल फॉर गर्ल्स" केवल जन्म के समय के लिंग को मान्य आधार मानता है, जिसके अनुसार कोई व्यक्ति पुरुष या महिला हो सकता है. टिकल का जन्म के समय पुरुष लिंग था, लेकिन उन्होंने सेक्स-चेंज सर्जरी करवाई थी और उनका जन्म प्रमाण पत्र अपडेट किया गया था.

रूप से महिला या पुरुष मानना अनुचित

ग्रोवर ने कोर्ट के फैसले को महिला अधिकारों का विरोधी बताया. सोशल मीडिया साइट एक्स पर एक पोस्ट में उन्होंने लिखा, "दुर्भाग्य से, हमें वही फैसला मिला जिसकी हमें उम्मीद थी. महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ाई जारी है."

टिकल ने इस फैसले को "जख्म भरने वाला" बताया और कहा कि उन्हें ऑनलाइन नफरत भरे कॉमेंट्स का सामना करना पड़ा है और उनके उपहास के लिए विशेष रूप से अभियान चलाया गया.

ऑस्ट्रेलियाई मीडिया के अनुसार, टिकल ने कोर्ट के बाहर कहा, "हमारे जैसे ट्रांस और लैंगिक विविधता वाले लोगों के खिलाफ केवल हमारी पहचान के कारण इतनी नफरत और गालियां फैलाई जाती हैं."

एप जॉइन करने के लिए यूजर्स को एक सेल्फी अपलोड करनी होती थी, जिसे काइरोजएआई जेंडर डिटेक्शन सॉफ्टवेयर द्वारा और फिर ग्रोवर द्वारा महिला के रूप में सत्यापित किया जाता था. टिकल ने जब एप जॉइन की, तब तो उन्हें अनुमति मिल गई, लेकिन छह महीने बाद उन्हें एप से हटा दिया गया.

अप्रैल में तीन दिन तक चली सुनवाई के दौरान बताया गया कि टिकल 2017 से एक महिला के रूप में जीवन जी रही थीं, उनका महिला के नाम पर जन्म प्रमाण पत्र था, और वह "अपने मन में महसूस करती हैं कि मनोवैज्ञानिक रूप से वह एक महिला हैं."

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जज ने कहा कि सबूतों से यह साबित नहीं हुआ कि टिकल को सीधे तौर पर उनकी लैंगिक पहचान के कारण गिगल से बाहर किया गया था, हालांकि ऐसी संभावना है. लेकिन अप्रत्यक्ष भेदभाव का मामला इसलिए सफल रहा क्योंकि टिकल को सोशल मीडिया एप का उपयोग करने से इसलिए रोका गया क्योंकि वे "पर्याप्त रूप से महिला नहीं दिखती थीं."

सिर्फ महिला या पुरुष नहीं हो सकता लिंग

जज ब्रॉमविच ने ग्रोवर और गिगल के उस तर्क से असहमति जताई जिसमें उन्होंने कानून में लैंगिक पहचान की सुरक्षा की संवैधानिकता पर सवाल उठाए थे.

गिगल और ग्रोवर की टीम ने तर्क दिया कि मामला केवल जैविक लिंग पर केंद्रित होना चाहिए. वकील ब्रिडी नोलन ने कहा, "लिंग भेदभावपूर्ण है, हमेशा से था और हमेशा रहेगा... जैविक लिंग को प्राथमिकता मिलनी चाहिए."

ग्रोवर ने अदालत से कहा कि वह टिकल को "सुश्री" के रूप में संबोधित नहीं करेंगी, और यहां तक कि अगर कोई ट्रांसजेंडर, महिला के रूप में सामने आती है, जेंडर अफर्मेशन सर्जरी करवा चुकी है, महिला के रूप में जी रही है, और महिला पहचान वाले दस्तावेज रखती है, तो भी ग्रोवर उसे "जैविक पुरुष" के रूप में देखेंगी.

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ऑस्ट्रेलियाई मानवाधिकार आयोग ने अदालत के फैसले का समर्थन किया. वकील जेली हेगर ने अदालत से कहा कि सेक्स डिस्क्रिमिनेशन एक्ट में अब लिंग को परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन "महत्वपूर्ण बात यह है कि यह अधिनियम मान्यता देता है कि किसी व्यक्ति का लिंग केवल (पुरुष या महिला) होने तक सीमित नहीं है."

रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)