ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स प्रांत में लगभग 600 लोगों को घरेलू हिंसा के आरोपों में गिरफ्तार किया गया है. पुलिस ने पूरे दल-बल के साथ एक अभियान चलाकर घरेलू हिंसा करने वालों को निशाना बनाया है.बीते सोमवार ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर और उसके आसपास पुलिस की गाड़ियों के सायरन जगह-जगह गूंज रहे थे, जिनसे साफ जाहिर हो रहा था कि कोई बड़ा अभियान चल रहा है. चार दिन इस अभियान के जारी रहने के बाद पुलिस ने बताया कि अभियान का नाम था ऑपरेशन अमारोक और निशाना थे वे लोग जिन पर घरेलू हिंसा में शामिल होने का संदेह या आरोप हैं.
चार दिन चले ऑपरेशन अमारोक में पुलिस ने 592 लोगों को गिरफ्तार किया, 1,107 आरोप लगाये और 22 बंदूकें भी जब्त कीं. पुलिस का कहना है कि घरेलू हिंसा के खिलाफ इस तरह का अभियान जरूरी हो गया था क्योंकि यह समस्या अब एक महामारी का रूप ले चुकी है.
पुलिस का कहना है कि सिर्फ न्यू साउथ वेल्स राज्य में होने वाली हत्याओं में आधी से ज्यादा की वजह घरेलू हिंसा होती है. पिछले हफ्ते ही राज्य में पांच महिलाओं की हत्या कर दी गयी, और वे कथित तौर पर घरेलू हिंसा का शिकार बनीं.
इस साल जिस तरह पुलिस घरेलू हिंसा के संदिग्ध आरोपियों को निशाना बना रही है, तय है कि कुल आरोपों की संख्या तीन साल में सबसे अधिक होने जा रही है. जनवरी में राज्य की पुलिस ने ऑपरेशन अमारोक शुरू किया था और तब से 1,884 लोग गिरफ्तार किये जा चुके हैं.
पिछले एक हफ्ते में जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया, उन्हें पुलिस ने "घरेलू हिंसा के सबसे खतरनाक अपराधी" बताया जबकि 103 ऐसे थे जिनके खिलाफ वॉरंट जारी थे.
न्यू साउथ वेल्स पुलिस के उपायुक्त मैल लैनिन ने कहा कि घरेलू हिंसा कायराना अपराध है. वह कहते हैं, "आंकड़े परेशान करने वाले हैं, डराने वाले हैं लेकिन उनमें से हरेक (आंकड़ा) एक इंसान है. घरेलू हिंसा एक कायराना अपराध है. जो लोग घरेलू हिंसा करते हैं वे कायर हैं."
ऑस्ट्रेलिया में घरेलू हिंसा
कई विशेषज्ञों ने घरेलू हिंसा को ऑस्ट्रेलिया की महामारी कहा है. इसी साल मार्च में देश के केंद्रीय सांख्यिकी ब्यूरो ने एक रिपोर्ट जारी कर बताया था कि हर पांच में से दो लोगों ने घरेलू हिंसा झेली है. यानी 18 वर्ष से ऊपर के 80 लाख लोग किसी ना किसी रूप में घरेलू हिंसा का शिकार रहे हैं.
इन पीड़ितों में महिला और पुरुष दोनों शामिल हैं लेकिन महिलाओं की संख्या पुरुषों से कहीं ज्यादा है. हर पांच में से एक महिला ने यौन हिंसा झेली है जबकि पुरुषों में यह संख्या हर 16 में से एक है. इसी तरह हर तीन में से एक महिला ने शारीरिक हिंसा झेली है जबकि पुरुषों में यह संख्या हर पांच में दो है.
पर्सन सेफ्टी सर्वे की एक रिपोर्ट बताती है कि हर छह में एक महिला और हर 18 में से एक पुरुष ने अपने पार्टनर के हाथों शारीरिक या यौन हिंसा झेली है. इसी तरह हर चार में से एक महिला और हर सात में से एक पुरुष ने खुद को अपने पार्टनर द्वारा भावनात्मक हिंसा का शिकार बताया.
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ऑस्ट्रेलिया में आर्थिक हिंसा की स्थिति भी काफी गंभीर है. आर्थिक हिंसा तब मानी जाती है जबकि कोई व्यक्ति आर्थिक रूप से अपने जीवनसाथी पर निर्भर हो और उसका जीवनसाथी उस निर्भरता का लाभ नियंत्रित करने के लिए उठाये. पीएसएस में पाया गया कि हर छह में से एक महिला और हर 13 में से एक पुरुष आर्थिक हिंसा के शिकार हैं.
भारतीय समुदाय और घरेलू हिंसा
ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले विशाल भारतीय समुदाय को घरेलू हिंसा के लिए अक्सर चिह्नित किया जाता है और कई ऐसे अभियान चलाए जा रहे हैं जो खासतौर पर भारतीय समुदाय को जागरूक करने के लिए हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि हाल के सालों में ऐसे कई भयानक मामले सामने आए जबकि भारतीय समुदाय की महिलाओं को घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ा.
इसी हफ्ते एक 2021 में हुई एक भारतीय युवती की हत्या के मामले का मुकदमा शुरू हुआ है जिसमें कई परेशान करने वाली जानकारियां सामने आईं. 21 साल की भारतीय मूल की छात्रा को 2021 में साउथ ऑस्ट्रेलिया राज्य में कत्ल कर दिया गया था. पुलिस के आरोपों में बताया गया है कि जैसमीन कौर नामक पीड़िता के पूर्व बॉयफ्रेंड ने बदला लेने के मकसद से उसके हाथ तार से बांधकर उसे उसे जिंदा ही दफना दिया था.
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इस मामले में 23 वर्षीय तारकजोत सिंह ने फरवरी में अपना अपराध कबूल कर लिया था और वह सजा सुनाये जाने का इंतजार कर रहा है. दो साल पहले भी ऐसा ही एक मामला हुआ था जब एक पूर्व प्रेमी ने भारतीय मूल की एक युवती की हत्या कर उसके शरीर के टुकड़े करके सूटकेस में भरकर रास्ते पर फेंक दिये थे. उसके बाद उस व्यक्ति ने खुदकुशी कर ली थी.
विशेषज्ञ कहते हैं कि भारतीय और अन्य दक्षिण एशियाई समुदायों में घरेलू हिंसा की समस्या कहीं ज्यादा बड़ी हो सकती है क्योंकि इस समुदाय की महिलाएं अक्सर अपनी पीड़ा को छिपाकर रखती हैं. मेलबर्न में रहने वालीं क्लीनिकल साइकॉलजिस्ट मंजुला ओ कॉनर ने भारतीय समुदाय में घरेलू हिंसा के मुद्दे पर खासा काम किया है. इस विषय पर लिखी गयी उनकी किताब डॉटर्स ऑफ दुर्गा खासी चर्चित रही है.
डॉ. ओ'कॉनर दलील देती हैं कि महिलाओं के खिलाफ पुरुषों की हिंसा को जड़ से, सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य के साथ समझे जाने की जरूरत है. वह कहती हैं कि इसके लिए सामाजिक तौर पर सोच बदलने और लैंगिक समानता की अवधारणा को स्थापित किये जाने की जरूरत है.