दक्षिण अफ्रीका को पहली बार जी-20 समूह की अध्यक्षता सौंपी गई है. जलवायु परिवर्तन, देशों के कर्ज और खनिजों पर खास ध्यान रहेगा. लेकिन सदस्य देशों के बीच मतभेद होने की वजह से इन मुद्दों पर कोई फैसला होना बहुत मुश्किल होगा.जी-20 समूह का गठन 1999 में हुआ था. यह दुनिया की 19 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं और यूरोपीय संघ का समूह है. इसके सदस्य व्यापार, स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन और अन्य मुद्दों से जुड़ी वैश्विक नीतियों पर बातचीत और महत्वपूर्ण फैसले लेने के लिए नियमित रूप से मिलते हैं. इस अनौपचारिक मंच का कोई स्थायी सचिवालय नहीं है.
पूरे साल रियो डे जेनेरो में ब्राजील ने जी-20 की मेजबानी की और दिसंबर 2024 में इसकी अध्यक्षता दक्षिण अफ्रीका को सौंप दी गई है. दक्षिण अफ्रीका जी-20 की अध्यक्षता संभालने वाला इस समूह का बचा हुआ आखिरी सदस्य है.
अफ्रीकी संघ को 2023 में जी-20 का सदस्य बनाया गया था और अब आखिरकार उसे इस समूह की अध्यक्षता करने का मौका मिला है. दक्षिण अफ्रीका लगभग 130 बैठकों और मंचों की मेजबानी करेगा. इसके बाद, नवंबर 2025 में जोहानसबर्ग में समूह के सदस्यों के राष्ट्र प्रमुखों और सरकारों के शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा.
अफ्रीकी धरती पर जी-20 का प्रीमियर
साउथ अफ्रीकन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स की मुख्य कार्यकारी अधिकारी एलिजाबेथ सिदिरोपोलोस ने डीडब्ल्यू को बताया कि दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा उन लक्ष्यों को पूरा करने की कोशिश करेंगे जो पहले के अध्यक्षों ने तय किए हैं.
मोदी का नाइजीरिया दौराः अफ्रीका में पहुंच गहरी करने की कोशिश में भारत
उन्होंने कहा, "यह पहला मौका है जब अफ्रीका जी-20 की अध्यक्षता करेगा, लेकिन इस दौरान उन मुद्दों पर भी ध्यान दिया जाएगा जिन्हें इंडोनेशिया, भारत और ब्राजील ने महत्वपूर्ण माना है. इनमें से कई मुद्दे अफ्रीका के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं. हालांकि, इसमें अफ्रीका का अपना अलग दृष्टिकोण होगा.”
जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड सिक्योरिटी अफेयर्स (एसडब्ल्यूपी) में अफ्रीकी मामलों की विशेषज्ञ मेलानी मुलर के मुताबिक, जी-20 पूरे महाद्वीप का ध्यान आकर्षित करेगा, क्योंकि दक्षिण अफ्रीका अन्य अफ्रीकी सरकारों के साथ आम सहमति बनाने की कोशिश करेगा.
जलवायु, कर्ज और न्याय को प्राथमिकता
दक्षिण अफ्रीका का जी-20 एजेंडा कई ऐसे मुद्दों पर जोर देता है जो पूरे महाद्वीप के लिए भी महत्वपूर्ण हैं. रामाफोसा ने दिसंबर की शुरुआत में जी-20 की अपनी प्राथमिकताओं के बारे में कहा, "जलवायु परिवर्तन से जुड़ा संकट गंभीर हो रहा है. दुनिया भर में अरबों लोग गरीबी, असमानता, भूख और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं. वैश्विक आर्थिक विकास के लिए भविष्य अभी भी अनिश्चित है. वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति भी अच्छी नहीं है और कई देश कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं.”
डॉनल्ड ट्रंप के आने से अफ्रीका में भी है चिंता
दक्षिण अफ्रीका की जी-20 अध्यक्षता का लक्ष्य अर्थव्यवस्था को ऐसी तकनीकों की ओर ले जाना है जो पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाए. अर्थव्यवस्था को इस तरह से आगे बढ़ाना है कि पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचे.
दक्षिण अफ्रीका में इसी तरह का बदलाव देखने को भी मिल रहा है. यहां सौर ऊर्जा का तेजी से इस्तेमाल बढ़ रहा है, भले ही ऐसा निजी स्तर पर और निजी घरों में हो रहा है. बहुत से लोग अपने घर की छत पर सोलर पैनल लगा रहे हैं, क्योंकि पुरानी और अपर्याप्त आपूर्ति व्यवस्था होने की वजह से बिजली की लगातार कटौती हो रही है.
विकास के लिए जरूरी हैं खनिज संसाधन
आर्थिक विकास के लिए कुछ खास तरह के खनिजों की मांग बहुत तेजी से बढ़ रही है. इनमें से कई खनिज अफ्रीका में पाए जाते हैं. उदाहरण के लिए, कोबाल्ट का सबसे बड़ा भंडार डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में है. हालांकि, कोबाल्ट का अधिकांश हिस्सा चीन में प्रोसेस किया जाता है या इस्तेमाल के लायक बनाया जाता है. जबकि, यूरोपीय संघ और अमेरिका भी ज्यादा से ज्यादा कोबाल्ट पाना चाहते हैं. कोबाल्ट का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक वाहनों, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और स्वच्छ ऊर्जा तकनीकों के लिए बैटरी बनाने में किया जाता है.
26 सबसे गरीब देशों का कर्ज 18 साल के उच्चतम स्तर पर
एसडब्ल्यूपी की मुलर आपूर्ति श्रृंखलाओं पर भी शोध करती हैं. उन्होंने बताया, "कुछ देशों में व्यापार से जुड़ी रोचक स्थितियां बन रही हैं. इस वजह से अब वे खुद तय कर सकते हैं कि वे किन देशों के साथ व्यापार करेंगे. पहले चीन पर उनकी निर्भरता ज्यादा थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब वे अन्य देशों के साथ भी व्यापार करना चाहते हैं.” मुलर ने बताया कि अब इन देशों को अन्य देशों के साथ व्यापार करने के लिए बेहतर समझौते करने के ज्यादा मौके मिल रहे हैं. इसे सकारात्मक रूप से देखा जा सकता है.
दक्षिण अफ्रीका में भी बहुत सारे खनिज निकाले जाते हैं, जैसे कि प्लैटिनम, सोना और क्रोमियम. रामाफोसा ने पत्रकारों से कहा कि वह अपनी जी-20 अध्यक्षता का इस्तेमाल ‘अफ्रीका में वृद्धि और विकास के लिए महत्वपूर्ण खनिजों के उपयोग को बढ़ावा देने' के लिए करना चाहते है.
अन्य देशों के साथ संतुलन बिठाना
इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए, दक्षिण अफ्रीका को जी-20 के विभिन्न सदस्य देशों के साथ तालमेल बैठाने की जरूरत होगी.
सिदिरोपोलोस का कहना है, "दक्षिण अफ्रीका और खुद रामाफोसा को इसका अनुभव है. हमने करीब 30 साल पहले यह देखा था, जब रामाफोसा ने हमारे 1996 के संविधान को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. यह वास्तव में आम सहमति बनाने और सभी की राय लेकर काम करने के बारे में है.”
उन्होंने आगे कहा, "दक्षिण अफ्रीका आम सहमति बनाकर काम करना चाहता है. वह अपनी प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए जी-20 के सभी देशों को एक साथ लेकर चलना चाहता है.”
अफ्रीका को अब क्यों लुभाना चाहते हैं पूरब और पश्चिम?
सिदिरोपोलोस ने संभावना जताई कि दक्षिण अफ्रीका यह चाहेगा कि यूक्रेन या मध्य पूर्व में जारी संघर्ष और युद्ध को लेकर अलग-अलग देशों के विचारों के कारण विकास के कार्य में किसी तरह की बाधा न आए. इसमें कोई शक नहीं है कि इन संघर्षों पर हर बैठक में चर्चा होगी और संभवतः अगले नवंबर में जी-20 की अंतिम घोषणा में भी इनका उल्लेख होगा और वह भी व्यापक तौर पर.
उन्होंने कहा, "दक्षिण अफ्रीका निश्चित रूप से ऐसी स्थिति नहीं चाहता जहां इनमें से कोई एक संघर्ष उसके एजेंडे पर हावी हो जाए और उन अन्य सभी मुद्दों पर छा जाए जो विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण हैं.” दूसरे शब्दों में कहें, तो दक्षिण अफ्रीका नहीं चाहता कि इन युद्धों पर ही सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाए और बाकी के महत्वपूर्ण मुद्दे छूट जाएं.
रामाफोसा 2018 में दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बने हैं और उन्हें विदेश नीति और कूटनीति का पर्याप्त अनुभव मिला है. जैसे, 2023 में दक्षिण अफ्रीका ने ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की मेजबानी की.
रूस-यूक्रेन युद्ध के बावजूद वह रूस के साथ बेहतर संबंध बनाए रखते हैं. इस दृष्टिकोण की वजह से यूरोपीय सहयोगियों को उनसे थोड़ी चिढ़ भी हुई. फिर भी, रामाफोसा को अभी भी एक विश्वसनीय भागीदार के तौर पर देखा जाता है. दिसंबर की शुरुआत में, रामाफोसा ने जी-20 के एजेंडे पर चर्चा करने के लिए जर्मनी के राष्ट्रपति से मुलाकात की थी.
क्या दक्षिण अफ्रीका की जी-20 अध्यक्षता सफल होगी?
मुलर ने ब्राजील की अध्यक्षता वाले पिछले कार्यकाल का हवाला देते हुए कहा, "दक्षिण अफ्रीका की जी-20 अध्यक्षता सफल होगी या नहीं, यह सिर्फ दक्षिण अफ्रीका पर ही निर्भर नहीं करता, बल्कि भू-राजनीति और वैश्विक हालात जैसे कारकों का भी असर पड़ेगा. चीन और अमेरिका का संबंध आने वाले समय में कैसा रहता है, उससे भी काफी चीजें प्रभावित होंगी.”
व्हाइट हाउस में डॉनल्ड ट्रंप की वापसी से राजनीतिक असुरक्षा और भी बढ़ सकती है. नवंबर के आखिर में ट्रंप ने चीनी आयात पर 10 फीसदी तक टैरिफ बढ़ाने की योजना का खुलासा किया था. उन्होंने ब्रिक्स देशों को धमकी दी कि अगर वे डॉलर पर निर्भरता कम करने वाले किसी साझा मुद्रा की योजना को आगे बढ़ाते हैं, तो ब्रिक्स के सदस्य देशों पर 100 फीसदी तक टैरिफ लगाया जा सकता है.
रामाफोसा के लिए ट्रंप से निपटना भी एक बड़ी चुनौती होगी. इसकी वजह यह है कि दक्षिण अफ्रीका की जी-20 अध्यक्षता के दौरान अन्य देशों की तुलना में अमेरिका ज्यादा सक्रिय रहेगा, क्योंकि अगली अध्यक्षता अमेरिका को करनी है.