नया नियम: सोशल मीडिया अकाउंट बनाने के बच्चों को लेनी होगी माता-पिता की अनुमति, भारत में पेरेंटल कंसेंट होगा अनिवार्य

केंद्रीय सरकार ने शुक्रवार को डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) नियमों का मसौदा जारी किया है, जिसमें 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया अकाउंट बनाने से पहले पेरेंटल कंसेंट लेना अनिवार्य कर दिया गया है. इसके तहत, बच्चों का व्यक्तिगत डेटा प्रोसेस करने से पहले डेटा फिड्यूसियरी को पेरेंट्स का सत्यापित सहमति प्राप्त करनी होगी.

क्या हैं ड्राफ्ट नियमों की प्रमुख बातें?

ड्राफ्ट में कहा गया है, "एक डेटा फिड्यूसियरी को यह सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त तकनीकी और संगठनात्मक उपायों को अपनाना होगा कि बच्चे के व्यक्तिगत डेटा प्रोसेसिंग से पहले माता-पिता की सत्यापित सहमति प्राप्त की जाए और वह उचित सतर्कता बरते." हालांकि, ड्राफ्ट में उल्लंघन के लिए कोई दंडात्मक कार्रवाई का उल्लेख नहीं किया गया है.

इस मसौदे के अनुसार, डेटा कलेक्ट करने वाली संस्था को यह सुनिश्चित करना होगा कि जो व्यक्ति खुद को माता-पिता के रूप में पहचान रहे हैं, वह एक वयस्क हों और यदि आवश्यकता हो, तो भारत में लागू किसी कानून के पालन से संबंधित पहचान जांच के लिए पहचान योग्य हों. इसके लिए डेटा फिड्यूसियरी को सरकारी निकाय से जारी पहचान और उम्र से संबंधित जानकारी की पुष्टि करनी होगी.

नियमों का प्रभाव और दायरा

ई-कॉमर्स, सोशल मीडिया और गेमिंग प्लेटफॉर्म्स को भी डेटा फिड्यूसियरी के दायरे में रखा गया है, और इन प्लेटफॉर्म्स को बच्चों के व्यक्तिगत डेटा के संग्रहण और उपयोग के लिए पेरेंटल कंसेंट प्राप्त करना अनिवार्य होगा.

ड्राफ्ट नियमों के तहत, डेटा कलेक्ट करने वाले संस्थाओं को सहमति प्राप्त करने की प्रक्रिया के दौरान विशेष ध्यान रखना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि डेटा कलेक्शन के उद्देश्य और प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी हो.

अंतिम नियम 18 फरवरी के बाद लागू होंगे

इस मसौदे को 18 फरवरी के बाद अंतिम नियमों के रूप में लागू करने के लिए विचार किया जाएगा. डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 के तहत डेटा फिड्यूसियरी पर ₹250 करोड़ तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान भी है, यदि वे व्यक्तिगत डेटा के प्रोसेसिंग के उद्देश्य और तरीके का निर्धारण करने में विफल रहते हैं.

डिजिटल डेटा सुरक्षा के इस मसौदे से बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा में वृद्धि होगी और सोशल मीडिया, ई-कॉमर्स जैसे प्लेटफॉर्म्स के संचालन को और अधिक जिम्मेदार बनाया जाएगा. हालांकि, उल्लंघन के लिए दंड की अनुपस्थिति इस मसौदे पर सवाल उठाती है, लेकिन फिर भी यह कदम बच्चों और परिवारों के लिए सुरक्षा की दिशा में एक सकारात्मक पहल है.