H-1B वीजा पर अमेरिका का नया दांव, नियम और भी ज्यादा सख्त करने वाली है ट्रंप सरकार
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अमेरिका में नौकरी करने का सपना देखने वाले भारतीयों के लिए एक बड़ी खबर है. डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन H-1B वीज़ा के नियमों को और भी कड़ा बनाने की योजना बना रहा है. पहले ही $100,000 (लगभग 83 लाख रुपये) की भारी-भरकम फीस बढ़ाने की बात चल रही थी, लेकिन अब सरकार इससे भी आगे जाकर कई नई पाबंदियां लगाने की तैयारी में है.

क्या हैं नए बदलाव के प्रस्ताव?

अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (DHS) ने H-1B वीज़ा प्रोग्राम में सुधार के लिए कुछ नए प्रस्ताव दिए हैं. सरकार का कहना है कि इसका मकसद अमेरिकी कर्मचारियों की नौकरियों और सैलरी की सुरक्षा करना है. इन बदलावों में कुछ खास बातें शामिल हैं:

  1. छूट की समीक्षा: अभी कुछ संस्थानों जैसे यूनिवर्सिटी और नॉन-प्रॉफिट रिसर्च सेंटर्स को वीज़ा की सालाना लिमिट से छूट मिलती है. अब सरकार इस छूट की समीक्षा करेगी, जिससे इन संस्थानों के लिए विदेशी कर्मचारियों को नौकरी पर रखना मुश्किल हो सकता है.
  2. नियम तोड़ने वालों पर सख्ती: जो कंपनियां पहले H-1B वीज़ा के नियमों का उल्लंघन कर चुकी हैं, उन पर अब और ज़्यादा कड़ी निगरानी रखी जाएगी.
  3. थर्ड-पार्टी प्लेसमेंट पर नज़र: कई कंपनियां थर्ड-पार्टी के ज़रिए कर्मचारियों को काम पर रखती हैं. अब ऐसे मामलों पर भी सरकार की पैनी नज़र रहेगी.

इसका असर किस पर पड़ेगा?

इन बदलावों का सीधा असर उन हज़ारों भारतीय छात्रों और आईटी प्रोफेशनल्स पर पड़ेगा जो H-1B वीज़ा के ज़रिए अमेरिका में काम करने की उम्मीद लगाए बैठे हैं. अगर नियमों में सख्ती होती है, तो वीज़ा मिलना पहले से कहीं ज़्यादा मुश्किल हो जाएगा.

कब तक आ सकता है यह नियम?

रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह नया नियम दिसंबर 2025 तक लागू किया जा सकता है. इसके अलावा, ट्रंप प्रशासन वीज़ा देने के लिए इस्तेमाल होने वाले पारंपरिक लॉटरी सिस्टम को भी बदलने पर विचार कर रहा है. नई व्यवस्था में वीज़ा सैलरी के आधार पर दिया जा सकता है, यानी जिसकी सैलरी ज़्यादा होगी, उसे वीज़ा मिलने की संभावना भी ज़्यादा होगी.

H-1B वीज़ा इतना ज़रूरी क्यों है?

H-1B एक टेम्परेरी वीज़ा है, जो अमेरिकी कंपनियों को दूसरे देशों से स्किल्ड यानी हुनरमंद कर्मचारियों को नौकरी पर रखने की इजाज़त देता है. यह वीज़ा भारतीयों के बीच बहुत लोकप्रिय है क्योंकि यह अमेरिका में लंबे समय तक काम करने और बाद में ग्रीन कार्ड (स्थायी नागरिकता) पाने का एक अहम ज़रिया है.

अमेरिका हर साल केवल 65,000 H-1B वीज़ा जारी करता है. इसके अलावा, अमेरिकी यूनिवर्सिटी से मास्टर या उससे ऊंची डिग्री वालों के लिए 20,000 वीज़ा अलग से होते हैं. दिलचस्प बात यह है कि 2023 में कुल वीज़ा पाने वालों में से लगभग 75% भारतीय थे.