Sri Lanka Election 2024: श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव की वोटिंग शुरू, 2022 के संकट के बाद देश में यह पहला चुनाव
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नई दिल्ली, 21 सितंबर : भारत के पड़ोसी और चीन के कर्ज जाल की वजह से राजनीतिक अस्थिरता झेल रहे श्रीलंका में शनिवार को राष्ट्रपति चुनाव हो रहे हैं. देश में 2022 में आर्थिक पतन के बाद द्वीप राष्ट्र में यह पहला चुनाव है. देश में राष्ट्रपति पद के लिए कुल 38 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं. इस चुनाव पर भारत और चीन की गहरी नजर रहेगी, क्योंकि यह द्वीपीय देश दोनों देशों के लिए रणनीतिक महत्व रखता है. भारत और श्रीलंका के बीच काफी पुराने पारंपरिक संबंध रहे हैं. इस समय भारत की मुख्य चिंता का कारण श्रीलंका में राजनीतिक अस्थिरता के बीच चीन का बढ़ता प्रभाव है.

श्रीलंका में मतदान सुबह 7 बजे (स्थानीय समयानुसार) शुरू हो गया और शाम 4 बजे समाप्त होगा. वोटिंग के तुरंत बाद मतों की गिनती शुरू की जाएगी और परिणाम रविवार को घोषित होने की उम्मीद है. देश में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों के लिए करीब एक करोड़ 70 लाख लोग मतों का प्रयोग कर रहे हैं. इस चुनाव में राष्ट्रपति उम्मीदवारों ने अपने एजेंडे में अर्थव्यवस्था से संबंधित मुद्दों को प्राथमिकता दी है, क्योंकि देश के लोग मुद्रास्फीति, खाद्य और ईंधन की कमी से जूझ रहे हैं. यह भी पढ़ें : Jasprit Bumrah Milestone: बांग्लादेश के खिलाफ दुसरे टेस्ट में जसप्रीत बुमराह ने पुरे किएं 400 अंतर्राष्ट्रीय विकेट, जय शाह ने भारतीय पेसर को दी बधाई

देश में पुन: चुनाव की मांग करने वाले रानिल विक्रमसिंघे इस चुनाव में सबसे आगे बताए जा रहे हैं. हालांकि उन्हें दो अन्य राजनीतिक दिग्गजों से कड़ी चुनौती भी मिल रही है. इनमें शनिवार के चुनाव से पहले जनमत सर्वेक्षणों में आगे चल रहे जनता विमुक्ति पेरामुना के उम्मीदवार अनुरा कुमारा दिसानायके हैं तो दूसरे पूर्व राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा के पुत्र और मुख्य विपक्षी दल, समागी जन बालवेगया (एसजेबी) के प्रमुख सजित प्रेमदासा हैं.

श्रीलंका का अगला राष्ट्रपति भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा. भारत श्रीलंका में बीजिंग के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंतित है. श्रीलंका भारत का परंपरागत रूप से एक मजबूत सहयोगी रहा है. श्रीलंका इस समय चीन के कर्ज जाल में फंसा है. चीन का बहुत भारी भरकम कर्ज श्रीलंका के ऊपर है, जिसकी वजह से श्रीलंका को अपना हंबनटोटा बंदरगाह चीन को 99 साल के लिए लीज पर देना पड़ा था. साजित प्रेमदासा श्रीलंका में बीजिंग के बढ़ते प्रभाव और भागीदारी के सबसे अधिक आलोचक हैं.