पिछले महीने पाकिस्तान में हुए आम चुनाव में इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. 22 वर्ष पहले अपने राजनीतिक संघर्ष की शुरुआत करने वाले इमरान की पार्टी को पाकिस्तान की आवाम ने प्रधानमंत्री की गद्दी तक पहुंचाया. इमरान खान ने शनिवार को पकिस्तान के 22वें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली. इस दौरान देश-विदेश के कई प्रमुख नेता पाकिस्तान के राष्ट्रपति भवन में मौजूद थे. भारत से पूर्व क्रिकेटर और पंजाब के मंत्री नवजोत सिंग सिद्धू ने भी इस शपथ ग्रहण समारोह में शिरकत की. सिद्धू के अलावा क्रिकेटर से कमेंटेटर बने रमीज राजा, वसीम अकरम, पंजाब असेंबली के नवनिर्वाचित स्पीकर चौधरी परवेज इलाही, गायक सलमान अहमद, अबरारुल हक, अभिनेता जावेद शेख, नेशनल असेंबली की पूर्व स्पीकर फहमीदा मिर्जा और पीटीआई के वरिष्ठ नेता भी मौजूद थे.
बता दें कि इमरान खान को नेशनल असेंबली ने शुक्रवार को पाकिस्तान के 22वें प्रधानमंत्री के रूप में चुन लिया है. डॉन ऑनलाइन की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ ने 176 सीटें जीती, जबकि उनके विरोधी पाकिस्तान मुस्लिम लीग(नवाज) के अध्यक्ष शहबाज शरीफ को केवल 96 वोट मिले. बहरहाल, इमरान खान ने कहा है कि वह अगले 5 साल में एक नए पाकिस्तान का निर्माण करेंगे. वैसे ऐसा करना उनके लिए आसान नहीं होगा क्योंकि उनकी राह में यह सभी चुनौतियां रोड़ा बनकर आएगी.
बढ़ती महंगाई पर काबू:
पाकिस्तान में बढ़ती महंगाई पर काबू पाना इमरान के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी. पाकिस्तान में महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है जिससे जनता त्रस्त हो गई है. नवाज शरीफ की पार्टी की सरकार इस महंगाई को काबू करने में नाकाम हो रही थी जिसकी वजह से लोगों ने इमरान को मौका दिया. पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार कभी भी खत्म हो सकता है. पाकिस्तान में पेट्रोल और डीजल दोनों की कीमत 100 रूपए से ज्यादा है जिसका सीधा असर महंगाई पर पड़ रहा है. पाकिस्तान का एक्सपोर्ट घट रहा हैं और इम्पोर्ट बढ़ रहा है. इमरान खान को इस ओर भी तुरंत ध्यान देना होगा.
अर्थव्यवस्था को उभारना:
इमरान खान की सबसे पहली चुनौती पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना है. पाकिस्तान उन देशों में शुमार हैं जिसपर सबसे ज्यादा कर्ज है. पाकिस्तान ने वर्ल्ड बैंक से तो कर्ज लिया हुआ ही है साथ ही चीन से भी भारी भरकम लोन उठाया है. दूसरी ओर पाकिस्तान की करेंसी में भी लगातार गिरावट आ रही है.
कानून व्यवस्था में सुधार:
पाकिस्तान में कानून व्यवस्था चरमरा गई है. वहां आए दिन आतंकी हमले होते हैं. पाकिस्तान में कानून व्यवस्था की लचरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कराची जैसे बड़े शहर में दिन दहाड़े मशहूर कव्वाली गायक अमजद साबरी को गोलियों से भुन दिया गया. वहां लूटपाट की घटना भी आम हो गई है. इमरान को अगर पाकिस्तान को आगे बढ़ाना है तो सुरक्षाबलों को सशक्त करना होंगा.
सेना से तालमेल:
पाकिस्तान की सियासत में हमेशा सेना का दखल रहा है. पाकिस्तान में सेना काफी मजबूत है और अगर उनके तरीके से सरकार नहीं चली तो वह तख्ता पलट भी कर देते हैं. शायद यह भी एक वजह है कि पाकिस्तान दूसरे देशों से पिछड़ रहा है. इमरान के सामने यह भी चुनौती होगी की वह सरकारी कामकाज में सेना का दखल कम करें. दूसरी तरफ, खुफिया एजेंसी आईएसआई भी काफी मजबूत है और उसका भी पाकिस्तान की राजनीति में काफी दखल रहता है. पाकिस्तान को अगर आगे बढ़ना है तो इन ताकतों को रोकना जरुरी है.
कट्टरपंथियों पर लगाम:
दुनिया में पाकिस्तान की छवि एक कट्टरपंथी देश के रूप में है. वहां कई विकास काम सिर्फ इस लिए नहीं होते क्योंकि कट्टरपंथी ताकतें ऐसा होने नहीं देती. पाकिस्तान की राजनीति में धार्मिक कट्टरपंथी बड़ी संख्या में हैं. वैसे इमरान खान को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है और उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के लिए कट्टरपंथियों की जरुरत पड़ेगी. ऐसे में कट्टरपंथियों को साथ लेकर विकास एक बड़ा चैलेंज होगा.
पड़ोसियों से रिश्ते:
नए पाकिस्तान का निर्माण कुछ हद तक पड़ोसियों से रिश्तों पर भी निर्भर हैं. यदि पाकिस्तान और भारत के संबंधों में सुधार आता हैं तो इससे उनका रक्षा बजट कम होगा जो फिर वहां की अवाम की खुशहाली के लिए खर्च किया जा सकेगा. वैसे जीत के बाद अपने पहले संबोधन में उन्होंने इस बात के संकेत भी दिए हैं. उन्होंने कहा था, "अगर भारत विवाद सुलझाने के लिए तैयार है, तो हम दो कदम बढ़ाने के लिए तैयार हैं, लेकिन उन्हें वह एक कदम उठाना होगा. एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप हमें कहीं लेकर नहीं जाएगा". इमरान खान ने यह भी कहा कि उनकी सरकार अफगानिस्तान के साथ संबंध बेहतर करना चाहती है और उनकी सरकार पड़ोसी देशों में शांति स्थापना के लिए प्रयास करेगी. वहीं, चीन सीपीईसी के रूप में पाकिस्तान में भारी निवेश कर रहा है और वह पाकिस्तान पर अपना दबदबा भी कायम रखना चाहेगा. ऐसे में इमरान चीन के साथ रिश्तों को कैसे आगे ले जाते है वो देखना भी दिलचस्प होगा.
विदेशी निवेश:
पाकिस्तान को आतंकवादीयों का पनाहगार भी माना जाता है. यही वजह है कि विदेशी कारोबारी पाकिस्तान में पैसा लगाने से कतराते है. हाल ही में चीन और पाकिस्तान की महत्वकांशी योजना सीपीईसी पर भी आतंकियों की बुरी नजर पड़ी तो पाकिस्तानी रेंजर्स की कई टुकडिया सुरक्षा में लगानी पड़ी. विदेशी निवेश नहीं होने के कारण पाकिस्तान की विकास की गति बहुत धीमी है. इसी साल अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ पाकिस्तान द्वारा कोई कार्यवाही नहीं किए जाने पर 25 करोड़ 50 लाख डॉलर की सैन्य सहायता राशि को रोक दिया. इमरान खान को देश में ऐसा माहौल बनाना होगा जिससे विदेशी कंपनियां वहां निवेश करें.