ईरान-इस्राएल संघर्ष पाकिस्तान को कैसे अस्थिर कर सकता है
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

इस्राएल-ईरान संघर्ष पहले से ही अलगाववाद और आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए नई समस्याएं लेकर आ सकता है.इस्राएल-ईरान संघर्ष के बढ़ने से ईरान के पड़ोसी पाकिस्तान के लिए कई तरह की दूरगामी समस्याएं पैदा होती दिख रही हैं. असल में दोनों पड़ोसियों ईरान और पाकिस्तान के बीच पहले से ही अशांत चल रहे बलूचिस्तान प्रांत की करीब 909 किलोमीटर लंबी सीमा है.

इसी हफ्ते पाकिस्तानी अधिकारियों ने घोषणा की थी कि ईरान के साथ कई सीमा चौकियां अनिश्चित काल के लिए बंद कर दी गई हैं. उन्होंने बताया कि जो पाकिस्तानी नागरिक ईरान से घर लौटना चाहते हैं उनके लिए दक्षिण-पश्चिम बलूचिस्तान में तफ्तान और गब्द-रिमदान में क्रॉसिंग खुली हैं. इसके बाद आमतौर पर ईरान में रहने वाले सैकड़ों पाकिस्तानी देश लौटने के लिए तफ्तान सीमा क्रॉसिंग पर पहुंच गए.

उधर पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने बुधवार को वॉशिंगटन की अपनी आधिकारिक यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से मुलाकात की है. ईरान-इस्राएल संघर्ष के मद्देनजर यह मुलाकात काफी अहम रही. मीडिया रिपोर्टों से पता चला है कि दोनों के बीच ईरान की स्थिति पर खास तौर पर बात हुई.

ईरान के साथ पाकिस्तान के संबंध

सुन्नी बहुल पाकिस्तान और शिया बहुल ईरान के बीच काफी जटिल संबंध रहे हैं. ईरान की सीमा से लगा बलोच इलाका अलगाववादियों के हमलों से प्रभावित रहा है, जो पाकिस्तानी राज्य के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं. बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) पाकिस्तान की केंद्र सरकार पर आरोप लगाती है कि वो उस क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों का अनुचित दोहन करते हैं. बीएलए कई दशकों से इस इलाके में सरकार, सशस्त्र बलों और चीनी पक्ष के खिलाफ हमले करती आई है.

अमेरिका में रहने वाले पाकिस्तानी मामलों के विश्लेषक रजा रूमी बताते हैं कि इस्राएल-ईरान संघर्ष ना केवल मध्यपूर्व की भू-राजनीति के लिए बल्कि पाकिस्तान के लिए भी एक खतरनाक मोड़ है. रूमी ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि इस्लामाबाद के लिए इसके बहुत गहरे मायने हैं. रूमी ने कहा, "खाड़ी के प्रमुख सहयोगियों के साथ घनिष्ठ संबंध और ईरान के साथ जटिल रिश्ते रखने वाले देश के रूप में, पाकिस्तान पर अपने रणनीतिक हितों की रक्षा करते हुए तटस्थता बनाए रखने का दबाव रहेगा."

बुधवार को जब इस्राएल और ईरान के बीच लड़ाई छठे दिन में प्रवेश कर गई, इस्राएल रक्षा बलों ने घोषणा की कि वे ईरान की राजधानी तेहरान पर हमला कर रहे हैं, जिससे इस क्षेत्र में पूर्ण युद्ध की आशंका बढ़ गई है. तेहरान में बढ़ते संघर्ष और इस्लामी शासन के संभावित पतन से पाकिस्तान के लिए गंभीर सुरक्षा चिंताएं पैदा हो सकती हैं. साथ ही, बलूचिस्तान में अलगाववादी हमले पाकिस्तान की सीमा सुरक्षा और आंतरिक स्थिरता को प्रभावित करेंगे, जो कि इलाके की सुरक्षा व्यवस्था के लिए चुनौती बन सकता है.

लंदन में रहने वाले सुरक्षा विशेषज्ञ गफ्फार हुसैन ने डीडब्ल्यू से कहा, "ईरान में बलोच इलाके का मुद्दा पेचीदा है और तेहरान में दरार आने से वहां भी आजादी के दावे तेज हो सकते हैं, जिससे पाकिस्तान में बलोचों का हौसला बढ़ेगा. ईरान और पाकिस्तान पहले भी इस मुद्दे पर एक-दूसरे से भिड़ चुके हैं." राजनीतिक विश्लेषक रूमी के अनुसार, "इस्लामाबाद को सीमा पर निगरानी बढ़ानी होगी और तेहरान के प्रति कूटनीतिक संवेदनशीलता के साथ काम करना होगा."

कायदे आजम विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर मुहम्मद शोएब ने कहा, "पश्चिमी सीमा पर (ईरान के साथ) युद्ध पाकिस्तान के लिए, खासकर उसके अशांत बलूचिस्तान प्रांत के लिए चिंताजनक है." शोएब ने कहा कि वहां की स्थिति में कोई भी बदलाव परेशानी पैदा करने वाला होगा और ऐसे में कमजोर शासन व्यवस्था भी "सुरक्षा चुनौती" पेश करेगी.

आर्थिक प्रभाव और सांप्रदायिक तनाव की आशंका

इस्राएल और ईरान के बीच बढ़ते संघर्ष ने होरमुज जलडमरूमध्य में सुरक्षा पर फिर से ध्यान केंद्रित किया है. यह ओमान और ईरान के बीच एक रणनीतिक जलमार्ग है, जो फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है. रूमी ने कहा कि मध्य पूर्व में व्यापक संघर्ष होरमुज जलडमरूमध्य के आसपास वैश्विक तेल आपूर्ति को बाधित कर सकता है, जिससे कीमतें और बढ़ेंगी.

रूमी ने कहा, "बाकी दुनिया की तरह पाकिस्तान पर भी इसका गंभीर असर पड़ेगा और युद्ध से होरमुज जलडमरूमध्य के माध्यम से होने वाली तेल की आपूर्ति में बड़ी बाधा आ सकती है, जिससे वैश्विक ऊर्जा की कीमतें बढ़ सकती हैं." उन्होंने कहा कि पाकिस्तान पहले से ही मुद्रास्फीति, मुद्रा अवमूल्यन और ऊर्जा की कमी से जूझ रहा है. युद्ध के चलते ईंधन की बढ़ती लागत से बाजार और बिजली उत्पादन, परिवहन और कृषि जैसे प्रमुख सेक्टरों पर बुरा असर हो सकता है. इससे राजकोषीय संकट गहराएगा और कमजोर परिवारों पर और अधिक दबाव पड़ सकता है.

परमाणु बम बनाने से कितना दूर है ईरान

गफ्फार हुसैन ने खाड़ी सहयोग परिषद का हवाला देते हुए कहा, "ईरान के पास होरमुज जलडमरूमध्य को अवरुद्ध करने की क्षमता है या नहीं, यह तो अभी देखा जाना बाकी है.. लेकिन इससे जीसीसी देशों सहित पूरा क्षेत्र उलझ जाएगा." खाड़ी सहयोग परिषद में बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं. हालांकि, प्रोफेसर मुहम्मद शोएब का मानना ​​है कि "ईरानी संघर्ष खास तौर पर बलूचिस्तान प्रांत को प्रभावित करेगा, जहां आबादी का एक बड़ा हिस्सा तेल और अन्य वस्तुओं के अनौपचारिक व्यापार में लगा हुआ है."

रूमी का मानना है कि सुन्नी बहुल पाकिस्तान को सांप्रदायिक तनाव का सामना करना पड़ सकता है, जहां शिया आबादी केवल 15 प्रतिशत है. उनका कहना है कि देश में नए सिरे से दुष्प्रचार, चुन चुन कर किए जाने वाले हमले और प्रॉक्सी हरकतों में तेजी देखने को मिल सकती है. रूमी ने कहा, "अगर युद्ध की कहानी में धार्मिक नजरिया और सांप्रदायिक बयानबाजी शामिल हो जाए तो यह खतरनाक हो सकती है."