वियना में ऐसी महिलाओं को फ्री में सैनिटरी पैड देने की योजना शुरू की गई है जो इस सुविधा से वंचित हैं.ऑस्ट्रियाई सरकार की इस पहल के तहत वियना में 15 हजार महिलाओं को मुफ्त सैनिटरी पैड उपलब्ध कराए जाएंगे. वियना की डिप्टी मेयर कैथरीन गाल के मुताबिक ये पैड महिलाओं के लिए कुछ खास दिनों में इस्तेमाल करने की बुनियादी जरूरत है.
जरूरतमंद महिलाएं दवा की दुकानों से ये पैड हासिल कर पाएंगी.
गाल ने कहा, "हम चाहते हैं कि इस सुविधा से उन महिलाओं को फायदा हो जो वित्तीय समस्याओं का सामना कर रही हैं." यह योजना पिछले सप्ताह लॉन्च की गई थी.
वियना स्थित महिला स्वास्थ्य कार्यालय की प्रमुख क्रिस्टीना हैमेटनर के मुताबिक लगभग 80 युवाओं को युवा केंद्रों और खाद्य बैंकों में जाने वाली उन महिलाओं को कूपन दिए जाएंगे, जिन्हें पैड की सख्त जरूरत है. बाद में ये महिलाएं इसी कूपन को दिखाकर किसी भी मेडिकल स्टोर से ये पैड मुफ्त में ले सकेंगी.
रेड बॉक्स योजना
वियना के एक जिले में रेड बॉक्स परियोजना के तहत 2021 में तीन महीने की अवधि में 80,000 टैंपोन और 95,000 पैड मुफ्त वितरित किए गए.
साल 2020 में स्कॉटलैंड की संसद ने महिलाओं को मुफ्त में सैनेटरी उत्पाद देने की योजना को मंजूरी दी थी. ऐसा करने वाला यह दुनिया का पहला देश था.
स्कॉटलैंड की संसद ने देश की सभी महिलाओं के लिए सैनेटरी उत्पाद को मुफ्त में बांटने की योजना को मंजूरी दी थी. इस कानून के मुताबिक महिलाओं के लिए टैंपोन और सैनेटरी नैपकिन सामुदायिक केंद्र, यूथ क्लब और दवा दुकान जैसे सार्वजनिक स्थानों पर उपलब्ध रहेंगे.
शोध के मुताबिक एक महिला को अपने जीवनकाल में औसतन 17,000 सैनिटरी पैड की जरूरत होती है, जिसकी कीमत लगभग 3,000 यूरो होती है.
विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक स्तर पर इस मुद्दे का सीधा असर लड़कियों की शिक्षा और रोजगार के अवसरों पर पड़ रहा है.
फ्री पैड्स पर भारत में भी बहस
भारत में भी सैनिटरी पैड को फ्री में देने की योजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मामला चल रहा है. जुलाई के महीने में सुप्रीम के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को चेतावनी दी, जिन्होंने स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों के लिए मासिक धर्म से जुड़े हाइजीन पर एक समान नीति बनाने पर अभी तक केंद्र सरकार को अपना जवाब नहीं सौंपा है.
मामला उस याचिका से जुड़ा है जिसमें केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को छठी कक्षा से लेकर 12वीं तक हर छात्रा को मुफ्त सैनिटरी पैड और सभी रेसिडेंशियल और नॉन रेसिडेंशियल शिक्षण संस्थानों में लड़कियों के लिए अलग शौचालयों का प्रावधान सुनश्चित करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया.
एक सामाजिक संस्था दसरा ने 2019 में एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें बताया गया था कि भारत में 2.3 करोड़ लड़कियां हर साल स्कूल छोड़ देती हैं क्योंकि माहवारी के दौरान स्वच्छता के लिए जरूरी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं.
एए/वीके (एएफपी, एपी)