इस्राएल सरकार ने सरकारी कर्मचारियों और सरकारी कंपनियों में काम करने वालों को हारेत्ज अखबार का बहिष्कार करने का आदेश दिया है. माना जा रहा है कि यह कदम इस्राएल-हमास युद्ध पर उसकी आलोचनात्मक रिपोर्टिंग के कारण उठाया गया.इस्राएली कैबिनेट ने हाल ही में सर्वसम्मति से देश के सबसे पुराने अखबार हारेत्ज पर रोक लगाने को मंजूरी दे दी. 24 नवंबर को संचार मंत्री श्लोमो करही का लाया ये प्रस्ताव साफ तौर पर इस्राएल और हमास के युद्ध की अखबार की कवरेज और हारेत्ज के प्रकाशक अमोस शॉकेन के एक भाषण के जवाब के तौर पर देखा जा रहा है. अपने भाषण में शॉकेन ने सुझाव दिया था कि अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करने के लिए देश के वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाए जाने चाहिए.
सरकारी प्रस्ताव में इस अखबार को सरकारी विज्ञापन देना बंद किए जाने और उनसे संपर्क ना रखने की बात भी कही गई है. साथ ही आह्वान किया गया कि सरकारी कर्मचारियों और सरकारी मिल्कियत वाली कंपनियों के कर्मचारी भी इस वामपंथी-उदारवादी अखबार की अपनी सदस्यताएं रद्द करें.
इस्राएल और हिज्बुल्लाह के बीच संघर्षविराम लागू
हारेत्ज अखबार हिब्रू और अंग्रेजी में प्रकाशित होता है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी प्रतिष्ठित है. अखबार ने सरकार के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बहिष्कार "इस्राएल के लोकतंत्र को खत्म करने की नेतन्याहू की यात्रा में एक और कदम है. अपने दोस्तों पुतिन, एर्दोआन और ओरबान की तरह, नेतन्याहू एक आलोचनात्मक, स्वतंत्र समाचार पत्र को चुप कराने की कोशिश कर रहे हैं." हारेत्स के उप संपादक नोआ लैंडौ ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "हम डरेंगे नहीं."
हारेत्ज के साथ एकजुटता
इस्राएली मीडिया पर नजर रखने वाले लोगों और पत्रकारिता समुदाय ने इसकी आलोचना की है. इस्राएली पत्रकार संघ के प्रमुख अनत सारागुस्ती ने डीडब्ल्यू से कहा, "यह बहुत चिंताजनक है क्योंकि वे गेटकीपर्स को बर्बाद करना चाहते हैं और मीडिया गेटकीपर है."
सारागुस्ती ने यह भी कहा, "सभी पत्रकारों और सभी मीडिया के बीच एकजुटता है, जो समझते हैं कि यह काफी बड़ी बात है." उन्होंने कहा कि यह प्रेस की आजादी पर रोक लगाने की कई कोशिशों में से एक है, इसमें इस्राएल के सार्वजनिक प्रसारक को बंद करने का कानून और कई पत्रकारों को डराया धमकाया जाना भी शामिल है.
नेतन्याहू और हमास नेता के खिलाफ आईसीसी ने निकाला गिरफ्तारी का वारंट
एक अन्य दैनिक अखबार 'येदिओथ आहरोनॉथ' में अपनी टिप्पणी में पत्रकार नाहुम बरनेया ने लिखा "जब हिज्बुल्लाह की दागी दर्जनों मिसाइलों से हमारा आसमान भरा था, और चिंता में डूबे लाखों इस्राएली शरण लेने के लिए दौड़ रहे थे, हमारी सरकार और उसके मंत्री इस सवाल का जवाब तलाशने में लगे थे कि एक मीडिया आउटलेट को आर्थिक रूप से कैसे जकड़ा जाए."
हारेत्ज के प्रकाशक अमोस शॉकेन ने अक्टूबर में लंदन में एक भाषण दिया था जिसे उनके अखबार ने छापा था. इसमें उन्होंने इस्राएली नेताओं के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाए जाने की मांग की थी. उनके भाषण की कुछ बातों की इस्राएल में और खुद हारेत्ज से जुड़े कई पत्रकारों ने भी निंदा की थी.
आलोचना का मुख्य बिंदु फलीस्तीनी स्वतंत्रता सेनानी शब्द का इस्तेमाल था, जिसे लेकर इसी अखबार में संपादकीय छाप कर प्रकाशक की निंदा भी की गई और लिखा गया कि कोई भी संगठन जो आम नागरिकों पर हमले करता है वह "एक आतंकी संगठन है और उसके सदस्य आतंकवादी, ना कि कोई स्वतंत्रता सेनानी." फिर भी इस अखबार के साथ सरकार इस तरह से पेश आ रही है.
पब्लिक ब्रॉडकास्टर भी निशाने पर
2023 से ही देश में कई न्यायिक सुधार किए जा रहे हैं. इनमें मीडिया परिदृश्य को बदलना भी शामिल है. तभी से माना जा रहा है कि संचार मंत्री करही देश की सार्वजनिक प्रसारण सेवा को बंद करवाना चाहते हैं. साल 2017 से देश में रेडियो और टीवी सेवा कान लॉन्च हुई है. उसके पहले इस्राएल में पुरानी और भारी सरकारी प्रभाव वाली सार्वजनिक प्रसारण सेवा आईबीए ही थी. तबसे यह इस्राएली मीडिया परिदृश्य का अहम अंग बन चुकी है. इसमें इस्राएली समाज के हर हिस्से का प्रतिनिधित्व है, चाहे वे वामपंथी हों या दक्षिणपंथी. सोशल मीडिया पर कान की अच्छी खासी पहुंच है.
प्रधानमंत्री नेतन्याहू और उनके मंत्री शुरु से ही कान का प्रभाव कम करने की कोशिशें करते आए हैं. इसके शुरु होने के एक साल पहले 2016 में एक दक्षिणपंथी अखबार में छपे एक लेख में जिक्र था कि नेतन्याहू इसकी स्थापना के ही खिलाफ हैं और पुराने आईबीए को ही जारी रखना चाहते हैं. इन ताजा प्रयासों को भी उसी मंशा को आगे बढ़ाने के तौर पर देखा जा रहा है.
मई में इस्राएल स्थित अल जजीरा के कार्यालय को बंद करवा दिया गया था. अल जजीरा कानून कहे जा रहे इन नए नियमों के तहत देश में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा माने जाने वाले विदेशी मीडिया को बंद करने का रास्ता साफ किया गया. इस्राएली सेना ने भी मीडिया ऑफिस पर छापे मार कर कई चीजें जब्त की थीं.
विशेषज्ञों का मानना है कि हारेत्ज अपने खिलाफ हुई कार्रवाई के खिलाफ अदालत का दरवाजा जरूर खटखटाएगा. उधर हारेत्ज ने भी सरकारी फैसले का निडरता से सामना करने की बात कही है.