अकेला पड़ा ईरान! मुश्किल वक्त में दोस्तों ने छोड़ा साथ, बगदाद से बेरूत तक खामोशी, प्रॉक्सी गुटों ने भी साधी चुप्पी

नई दिल्ली: चार दशकों से भी ज़्यादा समय से, ईरान ने मध्य पूर्व में प्रॉक्सी सेनाओं (अपने बदले लड़ने वाले गुट) का एक गठबंधन बनाया है. इसे वह 'प्रतिरोध की धुरी' (Axis of Resistance) कहता है. इसका मकसद अपनी ताकत दिखाना, अमेरिका और इज़राइल के प्रभाव को कम करना और खुद को सीधे टकराव से बचाना था. लेकिन अब, जब तेहरान अपने ही घर में इज़राइल के अप्रत्याशित हमलों से जूझ रहा है, तो उसके ये सहयोगी अजीब तरह से शांत नज़र आ रहे हैं.

लेबनान में हिजबुल्लाह, फ़लस्तीन में हमास, यमन में हूती और इराक में ईरान समर्थित शिया लड़ाके कहीं नज़र नहीं आ रहे हैं. इनमें से कई कमजोर हो चुके हैं, अंदरूनी तौर पर बंटे हुए हैं और अपनी ही मुश्किलों से जूझ रहे हैं. इससे यह सवाल उठता है: क्या ईरान दशकों में पहली बार अकेला लड़ रहा है.

आइए इसके सहयोगियों पर एक नज़र डालते हैं.

हिजबुल्लाह

हिजबुल्लाह, लेबनान का शिया अर्धसैनिक समूह और ईरान का सबसे शक्तिशाली प्रॉक्सी, ईरानी धरती पर इज़राइल के हमलों के बाद से कोई बड़ी जवाबी कार्रवाई नहीं कर रहा है. एक साल पहले, ऐसा सोचना भी नामुमकिन था. लेकिन 2023 से लगातार हो रहे इज़राइली हमलों ने इस समूह की क्षमताओं, मनोबल और नेतृत्व को गंभीर रूप से कमजोर कर दिया है.

इसके लंबे समय से नेता रहे हसन नसरल्लाह का एक सटीक इज़राइली हमले में मारा जाना एक महत्वपूर्ण मोड़ था.

एक हालिया इंटरव्यू में, हिजबुल्लाह के मौजूदा नेता नईम कासिम एक ईरानी प्रॉक्सी के बजाय लेबनान के राजनेता के रूप में दिखाई दिए. एक रिपोर्ट के मुताबिक, उनके दफ्तर में ईरान का कोई निशान नहीं था और न ही उनकी दीवारों पर अयातुल्ला खामेनेई की कोई तस्वीर थी. हिजबुल्लाह की सैन्य सप्लाई और फंडिंग लाइनें भी दबाव में हैं. 2024 के अंत में सीरिया में बशर अल-असद शासन के गिरने और सीरिया के रास्ते तस्करी के मार्गों के बाधित होने से, समूह का लॉजिस्टिक नेटवर्क सिकुड़ गया है.

हमास

गाजा में फ़लस्तीनी चरमपंथी समूह हमास अब अपनी पुरानी स्थिति में नहीं है. इज़राइल के साथ लगभग दो साल के युद्ध के बाद, गाजा का अधिकांश हिस्सा खंडहर बन चुका है और हमास के कई वरिष्ठ नेता मारे जा चुके हैं. इसके दोनों वरिष्ठ नेताओं इस्माइल हानिया और याह्या सिनवार के मारे जाने और एक अन्य ज्ञात चेहरे, खालिद मशाल के कतर में बैठे होने के कारण, यह पता नहीं है कि हमास का ज़मीनी नेतृत्व कितना मजबूत है या वे ईरान को इज़राइल के खिलाफ युद्ध छेड़ने में मदद करने के लिए कितने सक्षम हैं.

जिन सैन्य ढांचों पर यह समूह निर्भर था, जैसे कि सुरंगें, कमांड सेंटर और रॉकेट फैक्ट्रियाँ, उन्हें व्यवस्थित रूप से खत्म कर दिया गया है.

हालांकि 7 अक्टूबर, 2023 के हमलों की शुरुआत हमास ने ही की थी, जिसने मध्य पूर्व को उथल-पुथल में डाल दिया, लेकिन ईरान की प्रतिक्रिया संयमित रही. तेहरान ने राजनीतिक समर्थन दिया और इज़राइल की निंदा की, लेकिन उसकी सैन्य मदद सीमित थी.

इराक: लड़ाके जो अब व्यापारी बन गए

इराक में, ईरान-समर्थित शिया लड़ाकों का एक समूह लंबे समय से अमेरिकी सैनिकों को परेशान करता रहा है, ईरानी हितों की रक्षा करता रहा है और बगदाद में तेहरान के प्रभाव को बढ़ाता रहा है. लेकिन अब ऐसा नहीं है.

जनवरी से, ईरानी धरती पर इज़राइल के हमलों के बाद, शिया लड़ाकों ने केवल दबी ज़ुबान में निंदा की है. सिर्फ कताइब हिजबुल्लाह ने कार्रवाई करने की एक अस्पष्ट धमकी दी और वह भी केवल तभी अगर अमेरिका ईरान पर हमला करने में इज़राइल का साथ देता है.

इराकी प्रधानमंत्री मोहम्मद अल-सुदानी, जिनके तेहरान और वाशिंगटन दोनों से संबंध हैं, ने भी चुपचाप लड़ाकों के कमांडरों से इस संघर्ष से दूर रहने का आग्रह किया है.

हूती: मौके के इंतज़ार में

यमन के हूती हाल के महीनों में सबसे ज़्यादा सक्रिय ईरानी सहयोगी रहे हैं, जिन्होंने इज़राइल पर कई मिसाइलें दागीं और अपने अमेरिकी-विरोधी और इज़राइल-विरोधी बयानबाजी को बनाए रखा. लेकिन अब वे भी शांत हो गए हैं.

मार्च और अप्रैल में अमेरिकी हवाई हमलों में उनकी कई मिसाइल बैटरियों के नष्ट हो जाने के बाद, यह समूह सतर्क हो गया है. हूती नेतृत्व तेहरान के साथ करीबी समन्वय बनाए रखता है, लेकिन सार्वजनिक रूप से वह खुद को ज़्यादा स्वतंत्र दिखा रहा है.

'अराजकता की चौकड़ी'

मध्य पूर्व से परे, ईरान के सहयोगी न केवल शक्तिशाली हैं, बल्कि "सत्तावादी" होने की प्रतिष्ठा भी रखते हैं. ईरान, रूस, चीन और उत्तर कोरिया के साथ मिलकर एक समूह बनाता है जिसे विदेश नीति के विशेषज्ञों ने 'उथल-पुथल की धुरी' या 'अराजकता की चौकड़ी' जैसे नाम दिए हैं.

रूस, ईरान का समर्थक होने के बावजूद, इस मौजूदा इज़राइल-ईरान संघर्ष में सावधानी से चल रहा है. उसने इज़राइली हमलों की "बिना उकसावे की आक्रामकता" के रूप में निंदा की, लेकिन इसमें गहराई से शामिल होने की कोई इच्छा नहीं दिखाई है.

चीन अमेरिकी प्रतिबंधों वाले ईरानी तेल का सबसे बड़ा खरीदार है और उसने तेहरान के साथ आर्थिक सहयोग गहरा किया है. उसने 2023 में ईरान को शंघाई सहयोग संगठन में शामिल किया. लेकिन बीजिंग भी खुद को एक लड़ाके के बजाय एक मध्यस्थ के रूप में पेश कर रहा है.

उत्तर कोरिया, जो ऐतिहासिक रूप से अलग-थलग और घोर पश्चिमी-विरोधी रहा है, पर लंबे समय से ईरान के मिसाइल और परमाणु कार्यक्रमों में मदद करने का संदेह है.

क्या भारत ईरान का सहयोगी है.

भारत के तेहरान और यरुशलम दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं. भारत कई क्षेत्रों में इज़राइल के साथ साझेदारी करता है, और साथ ही, ईरान का एक रणनीतिक और क्षेत्रीय भागीदार बना हुआ है. 2024 में, भारत ने चाबहार बंदरगाह को विकसित करने और संचालित करने के लिए ईरान के साथ 10 साल के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए.