Russia-Ukraine War: रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तब वह यूरोप का प्रमुख ऊर्जा आपूर्तिकर्ता था और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने धमकी दी थी कि अगर यूरोपीय देशों ने उनके देश के खिलाफ प्रतिबंध लगाए तो यूरोप को सर्दियों में ‘भेड़िये की पूंछ’ (प्रसिद्ध रूसी कहानी का संदर्भ)की तरह जमने को छोड़ देंगे. हालांकि, तैयारियों और भाग्य का संयुक्त साथ रहा कि यूरोप ब्लैकाआउट और बिजली कटौती से बचा रहा. इसके बजाय पाकिस्तान और भारत जैसे कम धनी देशों को वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक गैस की कीमत में वृद्धि की वजह से ऊर्जा समस्या का सामना करना पड़ा. वैश्विक ऊर्जा के विश्लेषक इसे वैश्विक तेल गैस संकट से अकसर कम धनी देशों के प्रभावित होने के सबूत के तौर पर देखते हैं.
मेरा मानना है कि और अस्थिरता पैदा हो सकती है. रूस ने पश्चिमी देशों के प्रतिबंध के जवाब में कहा है कि वह एक मार्च 2023 से कच्चे तेल के उत्पादन में पांच लाख बैरल प्रतिदिन की दर से कटौती करेगा. यह मात्रा उसके मौजूदा कच्चे तेल उत्पादन का पांच प्रतिशत या वैश्विक तेल आपूर्ति का 0.5 प्रतिशत है. कई विश्लेषकों को इस कदम की उम्मीद थी लेकिन इससे कई चिंताएं भी पैदा हो गई हैं, मसलन भविष्य में उत्पादन में और कटौती तो नहीं की जाएगी. Taliban Ban Contraceptives: अफगानिस्तान में गर्भनिरोधक दवाओं पर रोक, तालिबान ने कहा- मुस्लिम आबादी रोकना चाहते हैं पश्चिमी देश
यूरोप कैसे अपनी बत्ती गुल होने से बचाएगा
रूस ने 2021 के उत्तरार्ध में यूक्रेन को लेकर अपना रुख स्पष्ट कर दिया था और वर्ष 2022 के शुरुआत में कई सरकारों और ऊर्जा विशेषज्ञों ने आशंका जताई थी कि इसका नतीजा यूरोप में ऊर्जा संकट हो सकता है. लेकिन एक तथ्य पर पुतिन का भी वश नहीं था और वह था मौसम. यूरोप में हाल के महीनों में कम तामपान और अतिसक्रिय रूप से संरक्षण की अपनाई नीति से यूरोप के अहम बाजारों जैसे जर्मनी, नीदरलैंड और बेल्जियम जैसे देशों में प्राकृतिक गैस की खपत में 25 प्रतिशत तक कमी आई.
बिजली और प्राकृतिक गैस की कम जरूरत की वजह से यूरोपीय सरकारें प्राकृतिक गैसों के संरक्षित भंडारों से गैस निकासी में देरी कर सकी जिसे उन्हें वर्ष 2022 की गर्मियों और शरद ऋतु में जमा किया था. इस समय, यूरोपीय महाद्वीप में ऊर्जा संकट की आशंका कम है जैसा कि पूर्वानुमान लगाया गया था.
यूरोपीय गैस का भंडार करीब 67 प्रतिशत भरा है और सर्दियों के बाद भी इसके 50 प्रतिशत तक भरे रहने की उम्मीद है. इससे महाद्वीप को अगली सर्दियों के लिए भी तैयारी करने में मदद मिलेगी. इसी तरह की स्थिति कोयले को लेकर है. यूरोपीय ऊर्जा कंपनियों के पास कोयले का भंडार है और यूरोप ने सर्दियों में बिजली संकट की आशंका के मद्देनजर पिछले साल 26 ताप बिजली घरों को दोबारा चालू किया.लेकिन अबतक महाद्वीप में कोयले के इस्तेमाल में महज सात प्रतिशत की वृद्धि हुई है . दोबारा शुरू किए ताप ऊर्जा संयंत्र केवल अपनी 18 प्रतिशत क्षमता से काम कर रहे हैं.
अमेरिका की भूमिका
अमेरिका ने पिछले साल गर्मियों और वर्ष 2022 के अंत में रिकॉर्ड ऊर्जा का निर्यात किया जिसने यूरोपीय ऊर्जा सुरक्षा को मजबूती दी. अमेरिका ने पिछले साल हर महीने करीब एक करोड़ घन मीटर तरल प्राकृतिक गैस का निर्यात किया जो वर्ष 2021 के मुकाबले 137 प्रतिशत अधिक था और यह यूरोप के कुल एलएनजी आयात का करीब-करीब आधा था.
अमेरिका में प्राकृतिक गैस का घरेलू उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ने से कुछ उत्पादकों को इन्हें उच्च मूल्य वाले वैश्विक बाजार में बेचने का अवसर मिला.इसका नतीजा रहा है कि अमेरिका में गर्मियों के दौरान उत्पादित अतिरिक्त प्राकृतिक गैस स्थानीय बाजार में नहीं रही जो सामान्य परिस्थितियों में होता है. अप्रत्याशित रूप से गर्मियों में अधिक तापमान जिसे ठंडा करने के लिए ऊर्जा की जरूरत बढ़ी और निर्यात में वृद्धि की वजह से अमेरिकी ग्राहकों को वर्ष 2008 के बाद प्राकृतिक गैस की कीमतों में बढ़ोतरी का सामना करना पड़ा.
अमेरिकी गैस पंप में भी दामों में वृद्धि हुई और वर्ष 2022 की शुरुआती गर्मियों में प्रति गैलेन गैस की कीमत पांच डॉलर तक पहुंच गई जो अमेरिकन ऑटोमोबिल एसोसिएशन की ओर से दर्ज सबसे अधिक औसत कीमत है.
अमेरिका का तेल निर्यात 10 लाख बैरल प्रतिदिन तक पहुंच गया जो मुख्यत: मेक्सिको और मध्य अमेरिका के देशों को और कुछ मात्रा फ्रांस को निर्यात की गई और इसके साथ अमेरिका शुद्ध तेल निर्यातक देश हो गया.
आपूर्ति श्रृंखला में आई बाधा और ढुलाई के लिए प्रतिस्पर्धा के बीच वैश्विक उपभोक्ताओं की जरूरत की वजह से अधिकतर यूरोपीय और अमेरिकी ग्राहकों को तेल और प्राकृतिक गैस के लिए अधिक कीमत देनी पड़ रही है. पेट्रोलियम पदार्थों की उच्च कीमत (अमेरिकी राष्ट्रपति जो)बाइडन प्रशासन के लिए वर्ष 2022 की गर्मियों और शरद ऋतु में राजनीतिक सिरदर्द साबित हुई. हालांकि, इन उच्च मूल्यों से यह तथ्य झूठा साबित हुआ कि अमेरिका के घरेलू बाजार में पेट्रोलियम पदार्थ के इस्तेमाल में वृद्धि नहीं हो रही है. पूर्वानुमान लगाया गया था कि वर्ष 2023 में भी पेट्रोलियम पदार्थों की मांग में कमी आएगी क्योंकि अमेरिका में कार की प्रौद्योगिकी में ईंधन के लिहाज से सुधार हो रहा है और इलेक्ट्रिक कारों का विस्तार हो रहा है.
ऊर्जा कीमतों में वृद्धि बोझ है, खासतौर पर निम्न आय वाले परिवारों के लिए. हालांकि,यूरोपीय और अमेरिकी उपभोक्ता यूक्रेन युद्ध की वजह से कीमतों में हुई वृद्धि का सामना करने में सफल रहे हैं और अबतक असंतोष और मंदी की आशंका को दूर रखा है. उनकी सरकारें स्वच्छ ऊर्जा के लिए बड़े आर्थिक प्रोत्साहन की पेशकश कर रही हैं ताकि देश की जीवाश्म ईंधन पर से निर्भरता कम हो सके.
विकासशील देशों की मुश्किल
पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत जैसे विकासशील देशों के ग्राहकों के लिए यह नहीं कहा जा सकता जिन्होंने ऊर्जा कटौती का सामना किया . यूरोप में भी इसकी आशंका थी लेकिन वहां ऐसा नहीं हुआ.
उल्लेखनीय है कि यूरोप द्वारा वर्ष 2022 की गर्मियों में ऊर्जा भंडार बढ़ाने से वैश्विक बाजार में प्राकृतिक गैस की कीमतों में भारी उछाल आया. इसके जवाब में कम विकसित देशों ने प्राकृतिक गैस की खरीद में कटौती कर दी और इसकी वजह से कुछ स्थानों पर बिजली संकट पैदा हो गया.
ऊर्जा स्रोतों की कीमतों में वैश्विक वृद्धि की वजह से वैश्विक दक्षिण के देशों जैसे अफ्रीका, एशिया और लातिन अमेरिका विदेशी आयात पर निर्भरता का पुन: मूल्यांकन करने को मजबूर हुए. कोयले की बढ़ी खपत सुर्खियां बनी लेकिन नवीनीकरण ऊर्जा ने बड़े फायदे की संभावना बनाई है क्योंकि यह अधिक वहनीय है और सरकार इसे अधिक सुरक्षित ऊर्जा के तौर पर पेश कर सकती है, साथ ही यह घरेलू रोजगार का भी स्रोत है.
उदाहरण के लिए भारत नवीनीकरण ऊर्जा क्षमता को दोगुना कर रहा है और उसने भारी उद्योग के लिए हाइड्रोजन ईंधन, नवीनीकरण ऊर्जा का इस्तेमाल और आयातित एनएनजी में कमी करने की योजना पेश की है. कई अफ्रीकी देश जैसे इथियोपिया जल विद्युत परियोजनाओं का विकास तेजी से कर रहे हैं.
ऊर्जा की कीमतें और जलवायु न्याय
रूस-यूक्रेन संकट की वजह से उत्पन्न ऊर्जा संकट के बाद विकासशील देशों ने जलवायु न्याय को लेकर वैश्विक चर्चा का विस्तार किया है. कम जांच की गई स्वच्छ प्रौद्योगिकी प्रोत्साहन योजना अमीर देशों में लागू की गई है जैसे अमेरिका में महंगाई कमी अधिनियम, इसके जरिये वे घरेलू स्तर पर जलवायु वित्त के लिए वित्तपोषण करते हैं.इसका नतीजा है कि कुछ विकासशील देशों के नेताओं ने चिंता जताई है कि स्वच्छ प्रौद्योगिकी ज्ञान का अंतर और बढ़ेगा न की घटेगा क्योंकि इससे ऊर्जा के स्थानांतरण की परिपाटी गति पकड़ेगी.
इस स्थिति को जी-7 समूह के देशों द्वारा युद्ध की वजह से मंहगाई को रोकने के लिए अपनाई गई सख्त मौद्रिक नीति ने बिगाड़ा है. उनके कदमों की वजह से विकासशील देशों के लिए कर्ज लेकर धन को स्वच्छ ऊर्जा में निवेश करना महंगा हुआ है.
नए समाधान की जरूरत है क्योंकि बिना किसी बड़ी प्रगति के अमीर देश विकासशील देशों को ऊर्जा संसाधनों से दूर रखना जारी रखेंगे जिसकी दुनिया के सबसे असुरक्षित लोगों को सबसे अधिक जरूरत है.
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)