सात साल बाद ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर चीन के प्रधानमंत्री
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

सात साल बाद चीन के प्रधानमंत्री ने ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया है और यह स्पष्ट संदेश दिया है कि तनाव और खराब संबंधों का दौर अब खत्म हो गया है.ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर गए चीन के प्रधानमंत्री ली चियांग ने कहा है कि दोनों देशों के संबंधों को बेहतर बनाने के लिए मतभेदों को दूर करने की कोशिश की जाएगी. पिछले कुछ सालों से ऑस्ट्रेलिया और चीन के संबंधों में लगातार तनाव रहा है लेकिन बीते दो सालों में अल्बानीजी सरकार ने अपने सबसे बड़े व्यापारिक साझीदार के साथ संबंध सुधारने की कोशिश की है.

ली चियांग के रूप में सात साल बाद कोई चीनी प्रधानमंत्री ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर गया है. इससे पहले इसी साल मार्च में चीनी विदेश मंत्री ने भी ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया था. कई साल तक दोनों देशों के नेताओं के बीच संवाद ना के बराबर रहा है. चीन ने ऑस्ट्रेलिया पर व्यापारिक प्रतिबंध लगा रखे थे जिसके कारण उसे सालाना करीब 13 अरब डॉलर का नुकसान हो रहा था.

ली ने ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी और अन्य मंत्रियों के साथ तमाम मुद्दों पर बात की. इनमें दोनों देशों की सेनाओं के बीच अंतरराष्ट्रीय सागर में हाल के सालों में हुए कुछ विवाद भी शामिल थे.

बैठक के बाद मीडिया से बातचीत में ली ने कहा है कि दोनों देशों के बीच संबंध "सुधार और विकास की ओर सही रास्ते पर" आगे बढ़ रहे हैं.

उन्होंने कहा, "हमने कुछ मतभेदों और विवादों पर खुलकर बातचीत की और इस बात पर सहमति बनी है कि इन विवादों को इस तरह सुलझाया जाएगा कि हमारी साझेदारी मजबूत हो.”

बेहतर हो रहे हैं संबंध

अल्बानीजी पिछले साल नवंबर में चीन के दौरे पर गए थे और 2016 के बाद वह ऐसा करने वाले पहले ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री बने. ली चियांग से मुलाकात के बाद उन्होंने कहा कि बातचीत रचनात्मक रही.

अल्बानीजी ने कहा, "ऑस्ट्रेलिया इस तरह साथ काम करने का समर्थक है जिसमें क्षेत्रीय संतुलन कायम रहे, जहां कोई देश किसी पर हावी ना हो. दोनों देशों का इतिहास, राजनीतिक व्यवस्था और मूल्य अलग-अलग हैं. मैंने यह स्पष्ट किया है कि हम चीन के साथ जहां संभव होगा सहयोग करेंगे, जहां जरूरी होगा, असहमति जताएंगे और राष्ट्रहित में हमें रिश्ते कायम करने चाहिए.”

लेबर पार्टी के एंथनी अल्बानीजी 2022 में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री बने थे. तब से दोनों देशों के रिश्तों में काफी सुधार हुआ है क्योंकि उससे पहले के नौ साल, जब देश में लिबरल पार्टी की सरकार थी, तब ऑस्ट्रेलिया और चीन के रिश्तों में काफी तनाव रहा था.

खासतौर पर कोविड महामारी के बाद जब ऑस्ट्रेलिया ने चीन की जिम्मेदारी की अंतरराष्ट्रीय जांच का समर्थन किया तो चीन ने सख्त आपत्ति जताई थी. ऑस्ट्रेलिया के अमेरिका के साथ लगातार क्षेत्रीय मंचों पर चीन का विरोध करने को लेकर भी वह नाराज रहा है. ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के आकुस संगठन को लेकर चीन ने सख्त आपत्ति जताई है.

2020 में चीन ने ऑस्ट्रेलिया के कोयले, वाइन, कपास, जौ और लकड़ी के आयात पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी थीं. इसका ऑस्ट्रेलिया को खासा नुकसान झेलना पड़ा. लेकिन अल्बानीजी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इनमें से अधिकतर पाबंदियां हटाई जा चुकी हैं.

व्यापार प्रतिबंधों पर बातचीत

ली चियांग से मुलाकात से पहले ऑस्ट्रेलिया के कृषि मंत्री मर्रे वॉट ने कहा कि बैठक में वह ऑस्ट्रेलियाई लॉब्स्टर और दो बीफ प्लांट्स से मांस के आयात पर लगे प्रतिबंधों का मसला भी ली चियांग के सामने उठाएंगे.

वॉट ने कहा, "2017 के बाद चीन के प्रधानमंत्री के रूप में देश का दूसरा सबसे ताकतवर व्यक्ति पहली बार ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर आया है, यह बात अपने आप में संवाद को आगे बढ़ाने का और अपने रिश्तों को स्थिर कर अधूरे पड़े मुद्दों को हल करने का बहुत बड़ा मौका है.”

रविवार को ली चियांग ने देश के वाइन उत्पादकों के साथ दोपहर का खाना खाया, जिसमें उन्हें लॉब्स्टर ही परोसा गया. उसके बाद सोमवार दोपहर को खाने में उन्हें वह बीफ परोसा गया, जिस पर चीन ने प्रतिबंध लगा रखा है.

चीन ऑस्ट्रेलिया के खनिज क्षेत्र में और ज्यादा हिस्सेदारी चाहता है. पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में चीन नियंत्रित एक लीथियम खदान के दौरे पर उन्होंने कहा कि इस हिस्सेदारी को सुनिश्चित करना उनके मुख्य लक्ष्यों में शामिल है. लीथियम जैसे ये खनिज इलेक्ट्रिक कारों से लेकर तमाम उन तकनीकों में अहम हैं, जिनके जरिए दुनिया जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटाना चाहती है.

भारत पर असर

चीन और ऑस्ट्रेलिया के रिश्तों में तनाव का भारत को बड़ा फायदा हुआ था क्योंकि उसी दौरान ऑस्ट्रेलिया ने भारत से कई बड़े व्यापार समझौते किए. चूंकि ऑस्ट्रेलिया अपने व्यापार के लिए बहुत हद तक चीन पर निर्भर है इसलिए देश में यह समझ बनी है कि चीन का विकल्प हमेशा खुला होना चाहिए. इसलिए भारत को देश की सरकार और उद्योग क्षेत्र बहुत उम्मीद से देखते हैं और उसके साथ संबंधों को बेहतर करने की कोशिशें लगातार हो रही हैं.

पिछले साल ऑस्ट्रेलिया के प्रतिष्ठित लोवी इंस्टिट्यूट ने अपनी सालाना रिपोर्ट में विभिन्न देशों के प्रति ऑस्ट्रेलिया के लोगों की भावनाओं का आकलन किया था. इस रिपोर्ट के अनुसार ऑस्ट्रेलिया के लोगों को सबसे ज्यादा भरोसा जापान (85 फीसदी) और ब्रिटेन (84) को लेकर है जबकि फ्रांस (79 फीसदी) तीसरे नंबर पर है.

उसके बाद अमेरिका (61 प्रतिशत), भारत (58 प्रतिशत) और इंडोनेशिया (51 प्रतिशत) का नंबर है. रूस और चीन ऑस्ट्रेलिया में सबसे कम भरोसा किये जाने वाले देश हैं. रूस पर मात्र 8 फीसदी लोग भरोसा करते हैं जबकि चीन 15 फीसदी लोगों के भरोसे के साथ नीचे से दूसरे नंबर पर था.

रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)