मरने के बाद क्या होता है? यह सवाल विज्ञान जगत के लिए आज भी अनबूझ पहेली है. लेकिन कुछ वैज्ञानिकों ने इस बारे में नई जानकारियां हासिल की हैं.जो लोग मौत के बहुत करीब तक पहुंचकर लौटे हैं, वे अक्सर बताते हैं कि उन्हें कुछ अविश्वसनीय अनुभव हुए. कई लोग कहते हैं कि उन्हें एक सुरंग नजर आई, जिसके दूसरी तरफ रोशनी की किरण थी. कुछ लोगों को अपने ही शरीर के बाहर हवा में तैरने का अनुभव हुआ तो कुछ को वे करीबी लोग दिखाई दिए, जिनकी पहले मौत हो चुकी है. एक अनुभव अपनी जिंदगी की घटनाओं को सिनेमा के पर्दे की तरह देखने का भी बताया जाता है.
इन कहानियों में इतनी समानताएं हैं और ये इतने विविध लोगों द्वारा सुनाई गई हैं कि विशेषज्ञ मानते हैं कि इस तरह के अनुभव का कोई शारीरिक या मस्तिष्क में मौजूद कारण हो सकता है, जिसे विज्ञान अभी तक खोज नहीं पाया है.
दिमाग और शरीर के बीच रिश्ता ढूंढा वैज्ञानिकों ने
सोमवार को ‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकैडमी ऑफ साइंस' पत्रिका में एक शोध पत्र प्रकाशित हुआ है, जिसमें मिशिगन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने ऐसे अनुभवों का कारण खोजने की कोशिश की है. उन्होंने मरते हुए मरीजों के अध्ययन में पाया कि उस वक्त मस्तिष्क में गतिविधियां बहुत तेज हो गई थीं, जिनका संबंध चेतना से था.
कई नई जानकारियां
यह अपनी तरह का पहला शोध नहीं है लेकिन मुख्य शोधकर्ता जीमो बोरिजिन कहती हैं कि इस बार जो बारीक जानकारियां मिली हैं, वे पहले कभी नहीं मिलीं. बोरिजिन की प्रयोगशाला चेतना के न्यूरोबायोलॉजिकल आधार को समझने पर काम कर रही है.
वैज्ञानिकों के इस दल ने चार ऐसे लोगों के रिकॉर्ड्स का अध्ययन किया जिनकी मौत ईईजी के दौरान हुई थी यानी तब उनकी धड़कनों को दर्ज किया जा रहा था. ये चारों मरीज अपनी मौत से पहले कोमा में थे और डॉक्टरों के सुझाव पर इनका लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटा लिया गया था.
जब वेंटिलेटर हटाए गए तो चार में से दो मरीजों के दिलों की धड़कनें तेज हो गईं और मस्तिष्क में गतिविधियां बढ़ गईं. 24 और 77 साल की इन महिलाओं के मस्तिष्क में गामा फ्रीक्वेंसी की लहरें उठीं, जो मस्तिष्क में सबसे तेज गतिविधि होती है और जिसे चेतना से जोड़ा जाता है.
पहले हुए अध्ययनों में भी मरने से ठीक पहले व्यक्ति के मस्तिष्क में गामा किरणों की गतिविधि देखी गई है. 2022 में 87 वर्षीय एक व्यक्ति की मौत गिरने से हुई थी और उसके मस्तिष्क में भी ठीक ऐसी ही गतिविधियां दर्ज की गई थीं.
क्या देखा-सुना
मिशिगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ता इन गतिविधियों की गहराई में गए. उन्होंने जानना चाहा कि इस दौरान मस्तिष्क के किन हिस्सों में सक्रियता सबसे ज्यादा रही. शोधकर्ताओं ने पाया कि मस्तिष्क के उन हिस्सों में सक्रियता सबसे ज्यादा थी, जिन्हें चेतना से जुड़ा माना जाता है. इनमें पोस्टीरियर कॉर्टिकल हॉट जोन यानी कान के पीछे का हिस्सा शामिल था.
बोरिजिन कहती हैं, "इस हिस्से में सक्रियता इतनी ज्यादा थी जैसे आग लगी हुई हो. यह मस्तिष्क का वो हिस्सा है जो अगर सक्रिय होता है तो उसका अर्थ है कि मरीज कुछ देख-सुन रहा है और शरीर में संवेदनाओं को भी महसूस कर सकता है.”
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मरीजों की मौत तक आखिरी कुछ घंटों में मस्तिष्क और दिल की गतिविधियों पर पल-पल की निगरानी रखी गई थी जिससे विश्लेषण को और गहराई मिली. वैज्ञानिक अभी इस बात का जवाब देने की स्थिति में नहीं हैं कि ये गतिविधियां सिर्फ दो मरीजों के अंदर हुईं और दो अन्य मरीजों में क्यों नहीं हुईं. लेकिन बोरिजिन का अनुमान है कि इन मरीजों को दौरा पड़ने की समस्या रही थी, जिसका कोई असर रहा हो सकता है.
हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए यह सैंपल साइज बहुत छोटा है. और यह जानना भी संभव नहीं है कि मरीजों ने वाकई उस दौरान कुछ देखा, सुना. बोरिजिन उम्मीद करती हैं कि आने वाले समय में इसी तरह का सैकड़ों लोगों का डेटा उपलब्ध होगा, जिससे मृत्यु को और गहराई से समझा जा सकेगा.
वीके/सीके (एएफपी)