कोई काम जो नुकसान पहुंचाता हो, उसे कोई इंसान बार-बार क्यों करता है? यह मानव मन की ऐसी गुत्थी है जिसे मनोवैज्ञानिक बरसों से समझने की कोशिश कर रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने कुछ जवाब खोजे हैं.रात को बहुत ज्यादा शराब पीने के बाद सुबह सिर दर्द के साथ उठते लोग अक्सर कहते या कम से कम सोचते हैं कि वे दोबारा ऐसा नहीं करेंगे. लेकिन यह बात बेमायने होती है क्योंकि वे ऐसा फिर करते हैं. लेकिन क्यों? अगर लोगों को पता है कि कोई चीज या काम उनके लिए हानिकारक है तो वे क्यों अपने आपको दोहराते हैं? ऑस्ट्रेलिया के मनोविज्ञानियों ने इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश की है.
ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी और वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिकों ने इस बात पर शोध किया है कि जो लोग हानिकारक व्यवहार को दोहराते हैं, वे ऐसा क्यों करते हैं. प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकैडमी ऑफ साइंसेज (पीएनएएस) में छपा यह शोध बताता है कि जो लोग बार-बार गलतियां करते हैं, उनकी खुद को बदलने की इच्छा में कोई कमी नहीं होती बल्कि वे अपने अनुभवों से जो सीखते हैं, उसका सही कारण समझने की कमी के कारण वे उन्हीं अनुभवों को दोहराते हैं.
कैसे हुआ शोध?
सवाल का जवाब जानने के लिए वैज्ञानिकों ने एक प्रयोग किया. उन्होंने कुछ इच्छुक युवाओं को एक साधारण वीडियो गेम खेलने के लिए बुलाया. यह वीडियो गेम ब्रह्मांड में मौजूद अलग-अलग मायावी ग्रहों पर आधारित था. खेलने वालों को दो ग्रहों पर क्लिक करना था जिसके बदले उन्हें अंक मिलते. इन अंकों के आधार पर उन्हें पैसे मिलने थे.
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लेकिन वैज्ञानिकों ने प्रयोग में शामिल युवाओं को यह नहीं बताया था कि जब भी वे किसी ग्रह पर क्लिक करते, तो कुछ नए स्पेसशिप पैदा हो जाते. एक ग्रह पर क्लिक करने से जो स्पेसशिप पैदा हो रहे थे वे उनके अंकों को चुरा सकते थे जबकि दूसरे ग्रह पर क्लिक करने से पैदा होने वाले यान कोई नुकसान नहीं पहुंचाते.
जिन युवाओं ने गेम में अच्छा प्रदर्शन किया, उन्हें वैज्ञानिकों ने संवेदनशील का नाम दिया. ये वे लोग थे जिन्होंने बुरे ग्रह और उस पर क्लिक करने की वजह से पैदा हो रहे पाइरेट शिप में संबंध को समझ लिया था और अपने व्यवहार में बदलाव करके उस बुरे ग्रह पर क्लिक करने से परहेज किया.
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लेकिन वैज्ञानिकों ने पाया कि कई दौर खेले जाने के बाद भी ऐसे लोग थे जो पाइरेट शिप और बुरे ग्रह में संबंध को समझ नहीं पाए थे और नुकसान के बावजूद बार-बार बुरे ग्रह पर क्लिक किए जा रहे थे. जब उन्हें यह संबंध समझाया गया तो ज्यादातर लोगों ने अपना व्यवहार बदल लिया और बुरे ग्रह पर क्लिक करने से परहेज किया. लेकिन वैज्ञानिकों को हैरत इस बात से हुई कि समझाए जाने के बावजूद कुछ लोगों ने बुरे ग्रह पर क्लिक करना बंद नहीं किया.
क्या पता चला?
मुख्य शोधकर्ता डॉ. फिलिप ज्याँ-रिचर्ड-डिट-ब्रेसेल लिखते हैं, "हम इसी वीडियो गेम के जरिए अब तक हुए शोधों के आधार पर यह जानते हैं कि बहुत से लोग इस बात को समझने में नाकाम रहते हैं कि उनके व्यवहार का असर नतीजों पर पड़ रहा है. लेकिन हमारे प्रयोग ने यह पाया कि समझाए जाने के बाद कुछ लोगों का व्यवहार बदल गया लेकिन तब भी ऐसे लोग थे जो अपने व्यवहार में कोई बदलाव नहीं कर पाए थे.”
ऐसे लोगों को वैज्ञानिकों ने कंपल्सिव नाम दिया. शोध में शामिल बिहेवियरल न्यूरोसाइंटिस्ट प्रोफेसर गैवन मैकनैली कहते हैं कि इस प्रयोग को समग्र रूप में देखा जाना चाहिए क्योंकि असल जिंदगी में लोग आमतौर पर इससे ज्यादा लचीले होते हैं. वह कहते हैं कि उनका शोध इस बात पर रोशनी डालता है कि मस्तिष्क के अंदर ऐसी परिस्थितियों में क्या चल रहा होता है.
अब तक खुद को नुकसान पहुंचाने वाले व्यवहार की दो व्याख्याएं उपलब्ध हैं. एक कहती है कि नशीली दवाओं या जुए की लत जैसी आदतों में लोग अपने किए को बाकी सबसे ऊपर समझते हैं इसलिए नुकसान के बावजूद उसे करते जाते हैं. एक और व्याख्या यह है कि उनकी आदत उनके नियंत्रण या समझ से बाहर की चीज होती है.
प्रोफेसर मैकनली कहते हैं, "हम यह दिखा रहे हैं कि उनका व्यवहार के लिए जागरूकता की कमी या नैतिक मूल्यों में कमी जिम्मेदार नहीं है बल्कि वे यह समझ ही नहीं पाते हैं कि उनकी हरकतें उन्हें नुकसान पहुंचा रही हैं. इसे यूं समझ सकते हैं कि वे अनुभवों से गलत बात ही सीखते हैं.”