हिग्स बोसोन की खोज करने वाले वैज्ञानिक पीटर हिग्स का निधन हो गया है. उनकी खोज को सदी की सबसे बड़ी खोजों में गिना जाता है.पीटर हिग्स नहीं रहे. हिग्स बोसोन जैसी सदी की सबसे बड़ी खोजों में से एक करने वाले नोबेल पुरस्कार विजेता पीटर हिग्स का 94 वर्ष की आयु में निधन हो गया है. एडिनबरा यूनिवर्सिटी ने बताया है कि पीटर हिग्स ने कुछ समय तक बीमार रहने के बाद सोमवार को अंतिम सांस ली. वह यूनिवर्सिटी में मानद प्रोफेसर थे.
1964 में पीटर हिग्स ने एक ऐसा सिद्धांत दिया, जिससे ब्रह्मांड के बारे में इंसान की पूरी समझ को नया आयाम मिला था. उन्होंने एक नए कण की मौजूदगी की बात कही, जिसे बाद में उन्हीं के नाम पर हिग्स बोसोन के नाम से जाना गया.
क्या है हिग्स का सिद्धांत?
हिग्स ने कहा कि हिग्स बोसोन एटम से भी छोटा एक कण ब्रह्मांड में मौजूद है. वैज्ञानिकों ने इसे ‘गॉड पार्टिकल‘ यानी ईश्वरीय कण कहा. हिग्स का कहना था कि इस कण की मौजूदगी होनी चाहिए क्योंकि इससे ही ब्रह्मांड में छोटे से कणों से लेकर ग्रहों और सितारों तक के भार का होना साबित होता है.
हिग्स के मुताबिक अगर यह कण नहीं है तो पूरे यूनिवर्स को समझाने वाले तमाम भौतिकीय सिद्धांत और उन्हें साबित करने वाले समीकरण गलत साबित हो जाते हैं. हिग्स के इस सिद्धांत ने वैज्ञानिकों की ब्रहमांड के सबसे बड़े सवाल को सुलझाने की दिशा में नया रास्ता दिखाया कि 13.8 अरब साल पहले बिग बैंग क्यों हुआ. अगर हिग्स बोसोन नहीं होते तो आज हम जो भी कुछ अपने आस-पास देखते हैं, उसका वजूद ना होता.
पीटर हिग्स ने 1964 में सैद्धांतिक रूप में यह बात कही थी लेकिन उसकी पुष्टि होते-होते 50 साल लग गए. 2012 में यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संस्थान (CERN) एक विशाल परमाणु प्रयोग के जरिए साबित किया कि ‘गॉड पार्टिकल‘ ब्रह्मांड में मौजूद हैं.
सबसे बड़े प्रयोग का आधार
इसके लिए स्विट्जरलैंड और फ्रांस की सीमा पर 10 अरब डॉलर के खर्च से 27 किलोमीटर लंबी एक सुरंग बनाई गई. इस सुरंग में बनाई गई ट्यूब, जिसे लार्ज हैड्रन कोलाइडर कहा जाता है, के भीतर अणुओं को तोड़कर देखा गया तो पाया गया कि ईश्वरीय कण या हिग्स बोसोन मौजूद हैं.
यह पूरा प्रयोग हिग्स पार्टिकल की खोज के लिए ही डिजाइन किया गया था. इसमें उसी तरह की ऊर्जा का प्रयोग किया गया जैसा बिग बैंग में हुआ होगा. पूरी परिस्थिति वैसी ही थी जैसे बिग बैंग होने के बाद सेकेंड के 10 खरबवें हिस्से में रही होंगी.
इस खोज के बाद 2013 में पीटर हिग्स को बेल्जियम के फ्रांस्वा एंग्लेर्ट के साथ संयुक्त रूप से फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार दिया गया. एंग्लेर्ट ने भी यही सिद्धांत दिया था और इस पर वह हिग्स की नकल करके नहीं बल्कि खुद अपने शोध से पहुंचे थे.
पीटर हिग्स को एडिनबरा यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर पीटर मैथीसन ने एक ‘असाधारण इंसान‘ बताया. उन्होंने कहा कि हिग्स एक बेहद प्रतिभाशाली वैज्ञानिक थे जिन्होंने अपने जगत को समझने के लिए हमारी कल्पना को नए आयाम दिए. मैथीसन ने कहा, "उनकी शानदार खोज ने बहुत से वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित किया है और उनकी विरासत आने वाली कई पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी.”
हिग्स का जन्म 29 मई 1929 को उत्तरी इंग्लैंड के न्यू कासल में हुआ था. लंदन यूनिवर्सिटी के किंग्स कॉलेज से पढ़ने वाले हिग्स को 1954 में डॉक्टेरट मिली. उन्होंने अपना अधिकतर समय एडिनबरा में ही बिताया, जहां 1980 में वह स्कॉटिश यूनिवर्सिटी में सैद्धांतिक फिजिक्स विभाग के अध्यक्ष बने. 1996 में वह रिटायर हो गए.
भावकु इंसान
2013 में वह जेनेवा की उस सर्न प्रयोगशाला में गए जहां हिग्स बोसोन के वजूद को साबित किया गया था. भाषण देते हुए वह भावुक हो गए और उनकी आंखें भर आईं.
सर्न प्रयोगशाला की महानिदेशक फाबियोला जियानोती ने उस पल को याद करते हुए कहा, "वहां माहौल बहुत भावुक हो गया था. पूरे ऑडिटोरियम में एक तरह की जज्बाती लहर थी. पेशेवर जिंदगी का वह एक अनूठा पल था, एक बेहद अनूठा अनुभव."
जियानोती ने कहा, "पीटर बहुत प्यारे इंसान थे. वह बहुत मीठे थे और बहुत गर्मजोश भी. वह हमेशा इसमें दिलचस्पी रखते थे कि दूसरों को क्या कहना है. वह दूसरों को सुन सकते थे. वह खुले, दिलचस्प और दिलचस्पी रखने वाले व्यक्ति थे.”
जियोनाती बताती हैं कि हिग्स बोसोन को ‘गॉड पार्टिकल‘ कहना उन्हें पसंद नहीं था और वह अक्सर इसके बारे में बोलते थे. उन्होंने कहा, "मुझे नहीं लगता कि उन्हें इस तरह की परिभाषा पसंद थी. यह उनका स्टाइल नहीं था."
वीके/एए (एएफपी, रॉयटर्स)