अनियमित मासिक (पीरियड्स) और बहुत ज्यादा वजन बढ़ना, पॉलीसिस्टिक ओवरी सिन्ड्रोम (PCOS) के लक्षण हो सकते हैं. प्रसव उम्र की महिलाओं में यह हॉर्मोनल डिसऑर्डर बहुत आम है.16 साल की उम्र में तान्या लाउबे के सीने, चेहरे और पीठ में दाने निकल आए थे. उनका खान-पान भी औसत ही था, फिर भी वजन बढ़ता ही जा रहा था. तान्या के डॉक्टर ने कहा, "मुझे संदेह है कि आपके अंडाशय में सिस्ट्स हैं.”
डॉक्टर ने अल्ट्रासाउंड कराया और उनका संदेह पुख्ता हो गया. यह बात 1980 के उत्तरार्ध की है. डॉक्टर ने तान्या को उनकी बीमारी का नाम नहीं बताया. और तब तक पॉलीसिस्टिक ओवरी सिन्ड्रोम (PCOS) के बारे में लोग बहुत ज्यादा जानते भी नहीं थे. तान्या को भी बाद में पता चला कि उन्हें ये बीमारी है. डॉक्टर ने उन्हें गर्भधारण रोकने वाली एक दवाई दी.
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हालांकि प्रसव की उम्र वाली करीब 13 फीसद महिलाएं PCOS सिन्ड्रोम से प्रभावित होती हैं लेकिन तमाम लोगों को इसके बारे में कुछ भी पता नहीं होता. यह एक हॉर्मोनल डिसऑर्डर है और अनियमित और कम पीरियड्स, शरीर पर अत्यधिक बाल, मुंहासों और ऑव्युलेशन की कमी जैसे लक्षणों से इसकी पहचान की जाती है. इस सिंड्रोम से प्रभावित महिलाओं का वजन बहुत बढ़ने लगता है. इससे पीड़ित करीब 80 फीसद महिलाएं मोटापे का शिकार हो जाती हैं.
सिस्ट्स का बनना बहुत सामान्य है
लाउबे की तरह PCOS से ग्रस्त कुछ महिलाओं के अंडाशय में गांठें यानी सिस्ट्स बन जाती हैं. हालांकि ये इस डिसऑर्डर की बहुत ही महत्वपूर्ण पहचान है, लेकिन सिन्ड्रोम की पहचान के लिए यह जरूरी नहीं है. इस सिन्ड्रोम से पीड़ित किसी महिला की जो एकमात्र मुख्य और जरूरी पहचान है, वो है उसमें एंड्रोजन हॉर्मोन के लेवल का बढ़ जाना. एंड्रोजन लेवल के बढ़ने की जांच खून के माध्यम से की जा सकती है.
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एंड्रोजन को वैसे पुरुष सेक्स हॉर्मोन माना जाता है और इस हॉर्मोन का सबसे प्रमुख उदाहरण है टेस्टोस्टीरोन. पुरुषों में ये हॉर्मोन बहुत ज्यादा मात्रा में पाया जाता है लेकिन ऐसा नहीं है कि महिलाओं में ये नहीं होता, बल्कि थोड़ी मात्रा में महिलाओं में भी एंड्रोजेन पाया जाता है. महिलाओं में एंड्रोजंस का बहुत कम स्तर भी उनमें समस्याएं पैदा कर सकता है, मसलन- सेक्स क्षमता कम हो जाती है या खत्म हो जाती है, थकान होती है और मांसपेशियों में कमी आने लगती है.
लेकिन यदि एंड्रोजन का स्तर बहुत बढ़ जाता है तो इससे कई ऐसे लक्षण आ जाते हैं जिनका इलाज मुश्किल हो जाता है.
बाद के वर्षों में लाउबे ने अपने सिस्ट्स की ओर बहुत ध्यान नहीं दिया. उसे यह अच्छा लग रहा था कि वो बच्चा न होने वाली दवा ले रही है और इसका मतलब है कि वो अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ बिना किसी चिंता के सेक्स कर सकती है.
Diane 35 और Metformin
21 साल की उम्र में वो अपने देश कनाडा से जर्मनी चली गई. यूरोप में पहले साल में वो बर्थ कंट्रोल पिल का इस्तेमाल करने लगीं जो उन्हें कनाडा में प्रेस्क्राइब किया गया था. फिर जब वह खत्म हो गया तो वो जर्मनी में एक प्रसूति विशेषज्ञ से मिलीं जिसने उन्हें Diane 35 नामक गर्भ निरोधक दी. डॉक्टर के मुताबिक, ये दवा ‘बाजार में मिलने वाले सभी दवाइयों से बेहतर थी.'
वो बताती हैं, "मैंने Diane 35 लेना शुरू किया. पहले मुझे माइग्रेन था, बहुत ज्यादा पीरियड्स आते थे, भयानक ऐंठन होती थी, पीरियड्स में इतना खून निकलता था जितने कि मेरे शरीर में नहीं था, लेकिन बिना Diane 35 के मुझे पीरियड्स नहीं आते थे और मेरे बाल झड़ रहे थे.”
Diana 35 हालांकि गर्भनिरोधक के तौर पर तो अब नहीं दी जाती लेकिन PCOS सिन्ड्रोम से पीड़ित महिलाओं को दी जाने वाली बहुत आम दवाई है.
लाउबे जब 26 साल की हुई तो उन्होंने कुछ अलग तरह के उपचार की तलाश की. 1990 के दशक में वो अपने दफ्तर में कुछ चीजों की तह तक जाने के लिए गूगल की मदद लेने लगी थीं. जीवन में पहली बार लाउबे ने अपनी स्थिति के लिए, जिसे वो भुगत रही थीं एक नाम दिया. उसने तमाम डॉक्टरों को मैसेज भेजा और अपनी स्थिति को सामान्य करने में उनसे मदद मांगी.
आखिरकार, उन्हें अमेरिका के एक डॉक्टर से जवाब मिला जिसने उन्हें metformin दवा लेने की सलाह दी. यह डायबिटीज की दवाई है जो अब अक्सर PCOS के मरीजों को भी दी जाती है. अभी भी PCOS के बारे में बहुत ज्यादा जागरूकता नहीं थी, इसलिए ये आईडिया बिल्कुल नया था और लाउबे को जर्मन डॉक्टरों ने यह दवा को न लेने की सलाह दी. फिर भी, लाउबे ने कनाडा में रह रही अपनी मां से मेटफॉर्मिन भेजने के लिए कहा. उन्होंने भेज दी. कुछ ही हफ्तों में लाउबे को पीरियड आने लगे और दो महीने बाद वो गर्भवती हो गईं.
लाउबे बताती हैं कि उसी समय हैम्बर्ग के डॉक्टरों ने उन्हें एसेन शहर के एक डॉक्टर ओनो जैनसन के पास भेजा जो मेटफॉर्मिन के जरिए PCOS सिन्ड्रोम के इलाज पर अध्ययन कर रहे थे. अगले दो वर्षों में, एकसमान लक्षणों वाली करीब दो सौ महिलाओं के साथ जैनसन ने लाउबे को उसकी स्थिति के बारे में बताया.
महिलाओं को साथ लेकर जैनसन और उनके डिपार्टमेंट के कुछ दूसरे डॉक्टरों ने जर्मनी के पहले नेशनल ‘PCOS सेल्फ हेल्प ग्रुप' का गठन किया. लाउबे के पास भी ऑनलाइन तमाम संदेश आने लगे. ऐसी कई महिलाएं थीं जो लाउबे से अपने लक्षणों के बारे में पूछती थीं. ये लक्षण लाउबे के लक्षणों से मिलते जुलते थे. एक डॉक्टर से दूसरे डॉक्टर के चक्कर लगाने वाली महिलाओं को लाउबे से बात करने के बाद महसूस हुआ कि वो अब अकेली नहीं हैं.
PCOS कैसे होता है
लाउबे की स्थिति किसी भी टिपिकल PCOS मरीज से मेल खाती है. वो मूल रूप से अमेरिका की हैं. अफ्रीकी कैरेबियन, नेटिव अमेरिकन और दक्षिण एशियाई महिलाओं में PCOS होने की संभावना बहुत ज्यादा होती है. लाउबे की बेटी में भी ये सिन्ड्रोम है इसलिए डॉक्टरों को लगता है कि ये बीमारी आनुवंशिक है. बेटी को भी वजन बढ़ने, दाने निकलने और बाल झड़ने की दिक्कत है.
लेकिन PCOS के लिए कोई एक बना बनाया ट्रीटमेंट नहीं है. मेटफॉर्मिन से लाउबे को भले ही लाभ हुआ लेकिन दूसरे कई लोगों में इसके साइड इफेक्ट्स भी बहुत होते हैं इसलिए उनके लिए ये दवा उपयोगी नहीं रह जाती. वहीं Diane 35 से लाउबे को कोई फायदा नहीं हुआ जबकि तमाम लोगों को होता है. हर मरीज को इलाज के दौरान कई दर्दनाक परीक्षणों से भी गुजरना पड़ता है जब तक कि रोग का पता न चल जाए.
सिन्ड्रोम के बारे में जागरूकता पर काम कर रहे अमेरिका स्थित एक संस्थान PCOS Challenge की प्रमुख साशा ओटे कहती हैं, "करीब नब्बे वर्षों से PCOS के उपचार के लिए कोई अप्रूव्ड दवा या इलाज नहीं है. हालांकि ये इलाज योग्य है और संक्रामक भी नहीं है. सभी महिलाओं में यह जन्मजात ही होता है.”
हालांकि पिछले दो दशक से इसकी पहचान आसान हो गई है, बावजूद इसके, महिलाओं के इसके इलाज के बारे में सही जानकारी नहीं मिल पाती. ओटे की तरह कुछ महिलाओं को कहा गया कि वो अपना वजन कम करें, उसके बाद इलाज के लिए आएं. जबकि कुछ दूसरी महिलाओं से कहा गया कि वो बांझ हैं. हालांकि यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग में पीसीओएस के एक्सपर्ट कोलिन डंगन कहते हैं कि यह सही नहीं है.
डंकन कहते हैं, "जब मैं अपने क्लिनिक में मरीजों को देखता हूं, तो उनमें से कई महिलाओं को बताया जाता है कि उनके बच्चे नहीं होंगे. लेकिन वास्तव में, पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं को बच्चे हो सकते हैं भले ही वो इसका इलाज भी न कराएं. उनमें अंडे बनते हैं और मुझे लगता है कि लोग इस बारे में बहुत ज्यादा चिंतित हो जाते हैं.”
वजन की समस्या और मानसिक बीमारी
डंकन कहते हैं कि प्रजनन क्षमता तो एक तरफ है, इस सिन्ड्रोम से पीड़ित महिलाओं को सबसे ज्यादा चिंता अपने वजन को लेकर होती है क्योंकि यह अप्रत्याशित होता है और कई बार यह महिलाओं के नियंत्रण से बाहर हो जाता है जिसकी वजह से अक्सर उन्हें गंभीर मानसिक समस्याओं से भी जूझना पड़ता है.
वो कहते हैं, "सवाल ये है कि इस सिंड्रोम से पीड़ित महिलाओं में वजन बढ़ने की संभावना क्यों होती है. इसका उत्तर यह है कि ऐसा बहुत ज्यादा खाने या कम एक्सरसाइज से नहीं होता. बल्कि यह बहुत सामान्य है. यदि आप किसी सिंड्रोम पीड़ित महिला का खान-पान देखेंगे तो अक्सर पाएंगे कि वो सामान्य लोगों की तुलना में ज्यादा नहीं खाती है. और यदि आप उनकी शारीरिक सक्रियता देखेंगे तो भी ऐसा नहीं लगेगा कि अन्य लोगों की तुलना में वो कम सक्रिय हैं.”
वो कहते हैं कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सिंड्रोम से पीड़ित महिलाओं में ऊर्जा की खपत कम होती है और ऐसा उनके भीतर ज्यादा इंसुलिन के कारण होता है.
डंकन कहते हैं, "उनमें कैलोरी जलने की क्षमता कम होती है इसलिए उनकी ऊर्जा खपत कम होती है और इसका मतलब ये हुआ कि यह कोई सामान्य स्थिति नहीं है. उन्हें सामान्य लोगों की तुलना में हर दिन 20 फीसदी ज्यादा एक्सरसाइज करनी पड़ती है और पांच फीसद कम खाना होता है.”
डंकन कहते हैं कि इस वजह से सिंड्रोम से ग्रस्त महिलाओं में कई दूसरी गंभीर समस्याएं आ जाती हैं. खाने की वजह से होने वाली बीमारियों की आशंका उनमें सामान्य लोगों की तुलना में चार गुना ज्यादा होती है और अवसाद की आशंका भी कई गुना ज्यादा होती है. और मेडिकल प्रोफेशनल्स में इस सिंड्रोम को लेकर समझ की कमी स्थिति को और खराब कर देती है.
ओटे कहती हैं, "पीसीओएस से ग्रस्त महिलाओं को कई दुर्भावनाओं का सामना करना पड़ता है. उन पर लोग अविश्वास करते हैं, उनकी बात नहीं सुनी जाती है. कई मरीजों का कहना है कि जब वो डॉक्टरों को अपने खान-पान और अपनी जीवनचर्या के बारे में बताती हैं तो डॉक्टर विश्वास ही नहीं करते और कहते हैं कि तुम झूठ बोल रही हो. वो यह नहीं समझ पाते कि हम सामान्य लोगों की तरह नहीं हैं, हमारा मेटाबॉलिज्म अलग है.”